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सतसंग DB शाम RS 25/02

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 राधास्वामी!! 25-02-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:- 

                                   


(1) सुरतिया हरष रही। निरखत गुरु चरन बिलास।।

 भँवरगुफा धुश सुन गई आगे। निज सूरज सँग मिला अभास।। -

(राधास्वामी मेहर दृष्टि से हेरें। प्रेम दुलार होय खाससुल्खास।।)

(प्रेमबानी-4-शब्द-12- पृ.स. )

                                                 

(2) सतगुरु मेरे पियारे। गुरु रुप धर के आये।

एक छिन में आप मुझको। चरनन लिया जगाय।।-

( करमों के अपने बस हो।

 देह ली मैं अब निरस हो।

चरनों की ओर ताकूँ।

 जल्दी लेओ बुलाये।।)

( प्रेमबिलास-शब्द-11-पृ.सं.)           

                                    

(3) यथार्थ प्रकाश

-भाग दूसरा-कल से आगे।।    

                                                    

  सतसंग के बाद- यू० पी० आर० एस० ऐ० की कव्वाली:-                                            

  (1) हर सू है आशकारा जाहिर जहूर तेरा।

 हर दिल में बस रहा है जलवावनूर तेरा।।

(प्रेमबिलास-शब्द-136-पृ.सं.200)  

                                                     

 (2) डा० जोशी बहन जी की कव्वाली:-                                                             

 बधाई हे बधाई बधाई है बधाई।

पावन घडी आई है । पावन घडी आई।।                                                    

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी l l 25-02 -2021-

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे:-( 164 )

-आप संसार में ऐसी वस्तु का दृष्टांत पूछते हैं जो एकरस हो और उसमें लहर पैदा हो जाय। कदाचित आपको यह ज्ञात नहीं है कि संसार का सब मसाला क्षणभंगी है अर्थात् इसमें प्रतिक्षण परिवर्तन होता है। पर हाँ, अपने शास्त्रों से क्यों नहीं पूछते कि उसे एकरस ब्रह्म में क्रिया कैसे हुई? 

                                                            

  ( 165)- प्रश्न ४ का उत्तर ऊपर आ गया ।सृष्टि के आरंभ में कुल मालिक था किंतु वह कर्तारूप न था । वह रचना की क्रिया आरंभ होने पर कर्तार बना। जैसे समुद्र और समुद्र की लहर परस्पर विरुध नहीं होती ऐसे ही मालिक और मालिक की मौज भी विरोधी बातें नहीं हैं। 

                                            

(166)- प्रश्न ५- शब्द से यहाँ तात्पर्य उस आवाज से नहीं है जो जानदारों के मुंह से या चीजों के टकराने या चलायमान होने से उत्पन्न होती हैं। आपके शास्त्रों में इसी स्थूल शब्द को आकाश का गुण बतलाय है। तदनुसार वैशेषिक दर्शन में लिखा है कि "श्रोत( कान) से ग्रहण किया जाता जो अर्थ है, वह शब्द है" ( २/२/२१)। पर सृष्टि के आदि में जो शब्द प्रकट हुआ वह चेतन शब्द था, वह स्थूल कान से सुनाई देने वाला शब्द न था। सुरत-शब्द-योग के वर्णन में एक शब्द के विषय पर और अधिक प्रकाश डाला जायगा। इस समय इतना ही बता देना पर्याप्त होगा कि वह शब्द चेतन शक्ति का आदिम आविर्भाव था।।                                                

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


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