कहानी शोध कथा का पुरस्कृत होना बेहद सुखद है. व्यंग्य यात्रा के अंक के निर्णायक श्रीकांत चौधरी जी की टिप्पणी भी शोध कथा पर मिली.
आप भी पढ़िए. प्रज्ञा की "शोध कथा"को मैं व्यंग्य यात्रा ,संयुक्त अंक 64/65 की सर्वश्रेष्ठ रचना मानता हूं!–श्रीकांत चौधरी मित्रो! व्यंग्य यात्रा के शुभचिन्तक जानते ही हैं कि ‘व्यंग्य यात्रा’ के प्रत्येक अंक की सर्वश्रेष्ठ रचना पर 1100 रुपये की पुरस्कार राशि दी जाती है। निर्णायक वे होते हैं जिनकी रचना उस अंकक हिस्सा न हो। अंक 64-65 के हमारे निर्णायक थे संजीदा व्यंग्यकार और व्यंग्य यात्रा के शुभचिन्तक श्रीकांत चौधरी। उन्होंने पुरस्कार के लिए प्रज्ञा के नाम की अनुशंसा की है एवं अंक 64-65 पर विस्तृत टिप्पणी की है। प्रज्ञा को बधाई। श्रीकांत चौधरी का आभार। संपादक प्रेम जनमेजय श्रीकांत चौधरी—-प्रज्ञा-की "शोध कथा "एक लघु उपन्यास की सी पृष्ठभूमि लिए, हुए बहुत सशक्त और सार्थक व्यंग कथा है, ऊपर से बहुत ही सहज और सरल लगने वाली यह व्यंग कथा, विश्वविद्यालय की उच्च शिक्षा के यथार्थ की जटिलता और अंतर्विरोध को बड़ी कुशलता और बारीकी से व्यक्त करती है ;यह व्यंग-कथा उच्च मध्यम वर्ग की मानसिकता के दर्शन भी कराती है, जहां मध्यम वर्गीय बुद्धिजीवी, सच को सच और अन्याय को अन्याय ,चाह कर भी नहीं कह पाता! यह व्यंग रचना विश्वविद्यालयीन शिक्षकों की चारित्रिक जटिलताओं और कमजोरियों को उभार कर बखूबी सामने लाती है और विभिन्न विरोधाभासों और समझौता परस्ती, दब्बूपन और निरीह तटस्थता के पीछे दबे और छुपे हुए आक्रोश और मार्मिक संवेदनाओं को भी इतने तीखे पन के साथ उजागर करती है कि रचना के अंत में, पाठक का मन तीव्र आक्रोश और गहरे अवसाद से भर जाता है! निर्णायक रूप में पीएचडी के लिए वाईवा /मौखिक परीक्षा लेने वाले प्रोफेसर साहब की विशुद्ध हरामखोरी, रिसर्च स्कॉलर की मजबूरी का अनुचित फायदा उठाने की अनीति और शोध छात्रा(रिसर्च स्कॉलर) उसके पति और उसके गाइड का अवसाद आक्रोश और विवश होकर सब कुछ खून का घूंट पी लेने जैसा, यथार्थवादी चित्रण कर, लेखक ने ऐसे भ्रष्ट मानसिकता के ब्लैकमेलर प्रोफेसरों को, जो अपनी शक्ति और पद का पूरा फायदा उठा कर शोषण करते हैं, अनुचित लाभ लेते हैं; लेखिका प्रज्ञा ने इस वर्ग को कटघरे में निर्वस्त्र खड़ा कर दिया है! यह संपूर्ण व्यंग कथा एक चलचित्र की तरह प्रबुद्ध पाठक की आंखों के सामने आ जाती है और उसके दिल दिमाग को झंकृत कर देती है, शिक्षा जगत के इन रोगाणु कोरोनावायरस से छुटकारा पाने की कोई वैक्सीन अभी तक नहीं बनी है, इस अनाचार और अत्याचार शोषण की प्रवृत्ति के प्रति नफरत जगाने का जीवंत दस्तावेज है यह व्यंग रचना, जिसमें व्यंग के साथ करुणा मानवीय संवेदना और चुस्त-दुरुस्त संवाद और यथार्थवादी चित्रण, कथ्य और तथ्य को नापतोल कर संवेदनशील घटनाक्रम,ह्रदय पर कई लकीरें खींच देते हैं, इसलिए यह इस अंक की सर्वश्रेष्ठ व्यंग रचना है! (अपने निर्णय को जांचने के लिए मैंने अपने सहपाठी शहर के 74 वर्षीय अत्यंत वरिष्ठ लेखक और समीक्षक श्री गफूर तायर से भी पूछा था कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी लगती है? तो उन्होंने"प्रज्ञा की शोध कथा "को ही वरीयता दी, जिससे मुझे अपने निर्णय पर संतोष है)