सिमट गया दिल्ली का पुस्तक बाजार
प्रत्येक रविवार को दिल्ली में दिल्ली गेट के पास महिला हाट के प्रांगण में पुरानी पुस्तकों का बाज़ार लगता है । यहाँ आप मेट्रो तथा यातायात के सभी साधनों से पहुँच सकते हैं तथा पार्किंग की भी सुविधा उपलब्ध है । यहाँ पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी मेट्रो स्टेशन दिल्ली गेट है ,जो कि वायलेट लाइन पर स्थित है ।
इस पुस्तक बाजार का इतिहास बड़ा पुराना है । कभी यह बाज़ार लाल किले के पास लगाया जाता था उसके बाद फिर यह लाल किला से और आगे लगाया जाने लगा धीरे-धीरे यह बाज़ार दिल्ली गेट के पास पहुँचा और वर्तमान में यह दिल्ली के महिला हाट में सिमट गया है। मुझे याद है आज से 5 साल 6 साल पहले भी कम से कम सौ दुकानें पुरानी पुस्तकों की लगा करती थी लेकिन आज यहाँ मात्र 40 से 50 पुस्तक की दुकानें ही दिखाई देती हैं। यह खेद का विषय है और विचारणीय प्रश्न भी कि पुस्तक बाज़ार में दुकानें कम क्यों हो गईं ? जिसका इतना स्वर्णिम इतिहास रहा हो , यहाँ से न जाने कितने लोगों ने पुस्तकें खरीदी होंगी और अपने पुस्तकालय को समृद्ध किया होगा ।
यदि वर्तमान में यहाँ बिकने वाली पुस्तकों की बात करूं तो यहाँ अब मुख्य रूप से प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकें एवं अंग्रेजी उपन्यास की पुस्तके बेची जाती हैं उपर्युक्त होगा यह कहना की बिकती हैं । दुखद यह है कि इस बाजार से अब भारतीय भाषाओं की पुस्तकें नहीं दिखाई देती हैं ।हिंदी और उर्दू की पुस्तकें भी इस पुस्तक बाजार से अब गायब हो गई हैं । यहाँ पहले हर प्रकार की और कई भारतीय भाषाओं की पुस्तकें मिल जाया करती थी । समय बदला , शायद पुस्तकों की माँग बदली और अब स्थिति यह है कि यहाँ पर भारतीय भाषाओं की पुस्तकें देखने को नहीं मिलती हैं ।सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक तो यह लगता है कि जिस देश की राजभाषा हिंदी हो , देश में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा हिंदी हो और इस दिल्ली शहर के विद्यालयों , महाविद्यालयों , विश्वविद्यालयों में भी हिंदी विषय में अध्ययन अध्यापन होता हो उस शहर में लगने वाले पुस्तक बाज़ार में हिंदी की पुस्तकें गायब हों ।
इस बाज़ार में अब केवल एक ही दुकान ऐसी लगती है जो पूर्णतः हिंदी को समर्पित रहती है वह है इमरान अंसारी जी की बुक स्टॉल । इन महाशय को मैं पिछले 10 वर्ष से जानता हूं । ये हिंदी की बहुत सी ऐसी दुर्लभ और सस्ती पुस्तकें प्रत्येक रविवार को बाजार में लेकर आते हैं ।हिंदी की पुस्तकें यदि आप इस पुस्तक बाजार में खरीदना चाहते हैं तो इनसे अच्छा शायद ही कोई दूसरा विक्रेता हिंदी की इतनी विविध पुस्तकें बेचता हो । इनके पास हिंदी साहित्य , हिंदी भाषा एवं अन्य विषयों की पुस्तकें भी हिंदी भाषा में मिलती हैं ।यह एक प्रकार की हिंदी सेवा ही है । हिंदी कहीं इस पुस्तक बाज़ार से गायब न हो जाए इसी को ध्यान में रखते हुए मैं यह निवेदन करता हूं कि जो हिंदी के प्रचार प्रसार में सज्जन लगे हुए हैं , जो संस्थाएं काम कर रही हैं उन संस्थाओं को ऐसे विक्रेताओं को पुरस्कृत एवं सम्मानित करना चाहिए , जो कई सालों से हिंदी की पुस्तकें इस बाजार में बेच रहे हैं । इससे उनका उत्साह बढ़ेगा ,नहीं तो यह जो एक दुकान जो पूर्णता हिंदी को समर्पित बची हुई है वह भी इस दरियागंज पुस्तक बाजार से शायद गायब हो जाएगी ।
मैं उन सभी हिंदी प्रेमी शोधार्थियों ,प्राध्यापकों, अध्यापकों से भी निवेदन करता हूं कि वह इस ओर ध्यान दें कुछ पुस्तकें खरीदें , हिंदी को बाज़ार से गायब न होने दें । आप सभी इनसे संपर्क कर सकते हैं ( अंसारी बुक डिपो ,ये अपनी स्टॉल पर पोस्टर लगाते हैं "पुरानी हिंदी साहित्य पुस्तक "इनका मोबाइल नंबर है 9811045982) इनको आप अपने विषय से संबंधित पुस्तकें बता सकते हैं इनके पास यदि वह पुस्तकें होती हैं तो वह भी बता देते हैं कि उनके पास हैं ।
हिंदी विषय में शोध करने वाले शोधार्थियों के लिए यह एक अच्छा, सस्ता एवं सुलभ पुस्तक स्रोत हो सकता है । दिनांक ०७/०४/२०२१ दिन रविवार की एक आश्चर्यजनक बात बताता हूं ,आज मैं जब इस दरियागंज पुस्तक बाजार में गया और इनकी बुक स्टाल के सामने देखा तो एक महाशय जो कि हरियाणा के महेंद्रगढ़ से आए थे इनकी सारी पुस्तकें खरीद ली थी । मैंने उनसे पूछा कि आप इतनी सारी पुस्तकों को क्या करेंगे तो उन्होंने कहा - " पुस्तकालय के लिए खरीद रहा हूं ।"उन्होंने जो पुस्तकें उन्होंने खरीदी थी उनमें रामचंद्र वर्मा का कोश, नागरी प्रचारिणी सभा के कोश एवं पुस्तकें तथा कई दुर्लभ पुस्तकें शामिल थी ।तथा कई पुराने उपन्यास भी शामिल थे । उनको अधिकांश पुस्तकें ₹70 से लेकर के ₹100 के बीच मिल गई थीं । उन्होंने लगभग 300 किताबें खरीदी थी ।
यह एक अच्छा तरीका है पुस्तकालय खोलने का या समृद्ध करने का । कम पैसे में , पैसा भी कम लगेगा पुस्तकें भी अच्छी और दुर्लभ संकलित हो जाएंगी । जो विद्यार्थी , शोधार्थी , विद्वान हिंदी से सम्बन्धित संकलन करना या पुस्तकालय खोलना चाहते वह इस बाज़ार से सस्ती और दुर्लभ पुस्तकें खरीद सकते हैं ।
- कुलदीप कुमार पुष्पाकर
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