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चलो दिलदार चलो......

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 संगीत प्रेमियों के कानों में ‘पाकीज़ा’ के गीत आज भी किसी ताज़ा हवा की मानिंद तैरा करते हैं. “चलो दिलदार चलो”, “इन्हीं लोगों ने ले लीना” और “चलते चलते मुझे कोई मिल गया था” भारतीय सिनेमा संगीत के मील के पत्थरों में शुमार होते हैं. ‘पाकीज़ा’ में दिया गया ग़ुलाम मोहम्मद का संगीत अमर हो चुका है.


उन्होंने अनिल बिस्वास और नौशाद सरीखे संगीत निर्देशकों के साथ काम किया. ‘संजोग’ से लेकर ‘आन’ तक वे नौशाद के असिस्टेंट रहे. नौशाद के संगीत में उनके बजाए तबले और ढोलक के पीसेज़ एक तरह से मोटिफ़ का काम करते थे.


‘आन’ के बाद ग़ुलाम मोहम्मद ने स्वतंत्र काम करना शुरू कर दिया. ‘पारस’, ‘मेरा ख्वाब’. ‘टाइगर क्वीन’ और ‘डोली’ जैसी फिल्मों से ग़ुलाम मोहम्मद ने अपनी जगह बनाना शुरू किया. उन्होंने ‘पगड़ी’, ‘परदेस’, ‘नाजनीन’, ‘रेल का डिब्बा’, ‘हूर-र-अरब’, ‘सितारा’ और ‘दिल-ए-नादान’ में भी संगीत दिया. अगर उनकी धुनों को सरसरी सुना जाए तो उनमें एक तरह का दोहराव नज़र आता है पर संजीदगी से सुनने पर उनके गीतों की खुसूसियत ज़ाहिर होना शुरू करती है. उनकी उत्कृष्टता के नमूनों के तौर पर ‘कुंदन’ का गाना “जहां वाले हमें दुनिया में क्यों पैदा किया …” और ‘शमा’ का “दिल गम से जल रहा है पर धुआँ न हो …” के ज़िक्र अक्सर किया जाता है.


फ़िल्मी गीतों में मटके को बाकायदा एक वाद्य की तरह प्रयोग करने वाले ग़ुलाम मोहम्मद पहले संगीतकार थे. ‘पारस’ और ‘शायर’ फिल्मों के गीतों में इनका स्पष्ट प्रयोग देखा जाता है.


फ़िल्म ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ के लिए उन्हें राष्ट्रपति सम्मान दिया गया. सिचुएशन-फ्रेंडली धुनें बनाना ग़ुलाम मोहम्मद की विशेषता थी.

लेकिन उनका सबसे बड़ा शाहकार थी ‘पाकीज़ा’. बदकिस्मती से यह फ़िल्म उनकी मौत के बाद जाकर रिलीज़ हो सकी.


साभार.

https://www.kafaltree.com/ghulam-mohammad-bollywood-music-director/


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