क्या देशमुख अकेले खाते पचाते हैं ?
गृहमंत्री अनिल देशमुख को उगाही से सालाना 1200 करोड़ रूपये चाहिए ? इतनी बड़ी रकम क्या वह अकेले खाते या पचा लेते ? अगर नहीं तो किस किस से बांटकर खाते ताकि बात बनी रहती और हाज़मा नहीं बिगड़ता.वह दो साल से महाराष्ट्र के गृहमंत्री हैं.
महाराष्ट्र की सियासत में उछलने वाला यह अगला संभावित सवाल है. संभव है सियासी तोड़जोड़ में यह असली सवाल ही गुम हो जाए. कोई नया गुल खिले और अनिल देशमुख जिनको खिलाने के लिए आतुर थे वही बादशाह बन चमक जाए.
देशमुख का रिकॉर्ड पलट रहा हूं, तो नज़र आता है कि परमवीर सिंह के ख़त बम से पहले भी इनको पोल खोल की चेतावनी मिल चुकी है.बीते साल अप्रैल की बात है.अपनी ईमानदारी का हवाला देते हुए पूर्व आईएएस अधिकारी आनंद कुलकर्णी ने लिखा था. वह उचित समय पर गृहमंत्री देशमुख की किरदानियों को सार्वजनिक करने वाले हैं. कुलकर्णी जी चुप क्यों रह गए. और कौन से उचित समय का इंतजार कर रहे हैं, यह जांच एजेंसीज के लिए जानने का विषय है.आनंद कुलकर्णी महाराष्ट्र विद्युत रेगुलेटरी कमीशन के चेयरमैन रहे हैं.
भ्रष्टतम की दौड़ में शामिल गृहमंत्री देशमुख पहली बार 1995 में निर्दलीय विधायक बन सियासत की मैदान में उतरे.शिक्षा व कल्चर के राज्यमंत्री बने.शिवसेना -बीजेपी से ज्यादा नहीं बनी तो मंत्री पद छोड़ पवार साहब के एनसीपी में शामिल हो गए.
साहेब की कृपा बनी. 2001 में कैबिनेट मंत्री बन खाद्य,आबकारी और ड्रग के आकर्षक कमाई वाला मंत्रालय सम्हाला. आगे पीडब्लूडी जैसे विभाग के मंत्री बने. बांद्रा-वर्ली सी लिंक इनके कार्यकाल में बना लेकिन उद्घाटन से ऐन पहले फेरबदल कर दिए गए. फिर 2014 में अपने भतीजे से विधायकी चुनाव हारे लेकिन साहेब के विश्वासपात्र बने रहे.
प्रतिफल 2019 में मिला. अगाडि की सरकार बनी तो भतीजे अजीत पवार के बजाय गृहमंत्री जैसा अति महत्वपूर्ण पद अनिल देशमुख को देना पसंद किया गया. यह पसंद अब अपनी कीमत वसूल रहा है.