लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी का वो विवाद जिसकी वजह से इन दोनों ने क़रीब चार वर्ष तक साथ में गाने नहीं गाये।
अपनी आवाज से लाखों दिलों पर राज कर चुकी लता मंगेशकर को सन २००१ में देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न'दिया गया था। लता मंगेशकर ऐसी जीवित हस्ती हैं जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं। लता मंगेशकर के लिए गाना पूजा के समान है इसलिए रिकॉर्डिंग के समय वो हमेशा नंगे पैर ही गाती हैं। आज भी लोग उन्हें पूजते हैं। वहीं हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध गायक रफी के गाने सुनना उतना ही अच्छा लगता है, जितना भोर के समय कोयल की तान। रफी साहब में वो ख़ासियत थी जिसको पाने कि लिए शायद आज भी गायक लोग लालायित हैं। मस्ती भरा गाना हो या फिर दुख भरे नग्मे, भजन हो या कव्वाली, हर अंदाज में रफी साहब की आवाज दिल को छू जाती है। लता और रफी ने एक साथ कई सुपरहिट गाने गाए। आज हम आपको लता मंगेशकर का मोहम्मद रफी संग वो विवाद बताने जा रहे हैं जो बिल्कुल भी शालीन नहीं था।
''मोहम्मद रफी स्वयं ईश्वर की आवाज''किताब में प्रयाग शुक्ल लिखते हैं लता ने यह बात कही है कि रफी के नाम का जिक्र आते ही वे उन दिनों में लौटने को मजबूर हो जाती हैं, जब एक सिंगर को, किसी गीत पर रॉयल्टी मिले या न मिले, के सवाल पर उनसे अपनी असहमति जाहिर की थी। एक गायिका के रूप में स्वर-साम्राज्ञी का दर्जा हासिल करने वाली लता, कई मामलों में लगातार अपने को असुरक्षित महसूस करती रही हैं। और उनका अहं भी ऐसा है कि जो भी उन्हें जरा-सा भी प्रतिद्वंद्वी नजर आया है, उसके प्रति वह उदार नहीं रही हैं, और इसमें अपनी बहन आशा भोसले तक को उन्होंने नहीं बख्शा है।
दरअसल गाने की रॉयल्टी के भुगतान के मुद्दे पर लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी के बीच इस कदर मतभेद उत्पन्न हो गए थे कि इन दोनों गायकों ने करीब चार वर्ष तक एक साथ गाना नहीं गाया। लता मंगेशकर का यह विचार था की सिंगर्स को रॉयल्टी मिलनी चाहिए, तो वहीं मोहम्मद रफ़ी ने जोर देकर कहा था कि एक बार गीत के रिकॉर्ड हो जाने के बाद, सिंगर का कोई अधिकार उस पर नहीं रह जाता। बहुत-से लोग ऐसे हैं, जो यह मानते हैं कि कलाकार के अधिकारों के लिहाज से लता अपनी जगह सही थीं। तो कईयों ने रफी का साथ दिया था।
लता रॉयल्टी का भुगतान किए जाने के पक्ष में थीं और इस विषय को निर्माताओं के समक्ष भी उठाया। उन्हें उम्मीद थी कि इस विषय पर रफी उनका समर्थन करेंगे जो उचित भी था। लेकिन मोहम्मद रफी ने वो कह दिया जो किसी को उम्मीद ही नहीं थी। वह तो लता ही थीं, जिन्होंने यह निर्णय ले लिया था कि अब वह रफी के साथ नहीं गाएंगी, जो निस्संदेह उस वक्त देश के श्रेष्ठतम पुरुष गायक थे। इस बारे में रफी ने एक सधा हुआ जवाब दिया था कि अगर उनको मेरे साथ गाने में दिलचस्पी नहीं है, तो फिर मुझे भी कोई ऐतराज़ नहीं है।
रफी और लता दोनों ही साधारण आर्थिक स्थितियों वाली पृष्ठभूमि के थे। जब भुगतान की राशि बड़ी हो, तो उसे नजरअंदाज करना आसान नहीं था। जहां तक मोहम्मद रफी का सवाल है, उनके लिए सहानुभूति और संवेदना ही बड़ी चीजें थीं। स्थिति तब और बिगड़ गई, जब दो दिग्गजों ने एक-दूसरे के साथ गाना बंद कर दिया। जब लता की जगह सुमन कल्याणपुर को जगह मिलने लगी तो लता जी परेशान हुईं और उन्होंने शंकर-जयकिशन से संपर्क किया कि वह रफी के साथ उनका समझौता करा दें। बाद में दोनों की करीब चार साल की लड़ाई खत्म हुई और इस घटनाक्रम के बाद दोनों ने फिल्म 'पलकों की छांव में'एक साथ गाना गाया।
विवाद तब और गहराया जब लता मंगेशकर ने मोहम्मद रफी के इंतक़ाल के बाद ये कहना शुरू किया कि रफी ने उनसे लिखित माफी मांगी थी। रफी के बेटे शाहिद को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने कहा कि मेरे वालिद साहब तो इतने पढ़े-लिखे थे ही नहीं कि ऐसी कोई चिट्ठी लिखते, वह तो कभी कुछ पढ़ते भी नहीं थे, सिवाए उन गीतों के जो एक कागज़ पर लिखकर उन्हें दे दिए जाते थे, गाने के लिए। शाहिद ने यह भी कहा कि अगर ऐसी माफी वाली कोई चिट्ठी लता के पास है भी तो वह उन्हें दिखानी चाहिए नहीं तो वह उन पर मानहानि का मुकद्दमा दायर करेंगे।
अपूर्वा राय (amarujala.com)