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लॉक डाउन कथा -3 / कमलेश भारतीय

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 आज सायं नभछोर में : मिलिए राजकुमार सिंह से 

पत्रकारिता व्यापार नहीं हो सकती और ऐसा होने पर प्रतिष्ठा न रहेगी : राजकुमार सिंह 

-कमलेश भारतीय 

अखबार या पत्रकारिता कभी भी व्यापार नहीं हो सकते । यदि दुर्भाग्यवश ऐसा हो जाये तो इसकी प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता नहीं रहेगी। यह कहना है लोकप्रिय समाचारपत्र दैनिक ट्रिब्यून के संपादक राजकुमार सिंह का । वे मूलतः आगरा के निकट बिसावर गांव के निवासी हैं  जो अब हाथरस जिले में है। लेकिन पिता श्री चंद्रभान सिंह नौकरी में थे तो आगरा आ गये । प्रारम्भिक शिक्षा गांव में और उसके बाद एम ए संस्कृत तक की शिक्षा आगरा में हुई । इनके साथ मुझे दैनिक ट्रिब्यून में काम करने का अवसर मिला और चंडीगढ़ जाने पर आज तक पत्रकारिता पर समय समय पर चर्चा । सामने वाले की बात को सुनने वाले संपादक । 

-पत्रकारिता में कैसे आकर्षण हुआ ?

-काॅलेज छात्र के समय से ही अमर उजाला से जुड़ गया और इसके मालिक संपादक अनिल अग्रवाल मेरे प्रेरणा स्त्रोत रहे । तब आपातकाल के बाद का समय था और वैचारिक प्रवाह और परिवर्तन मेरे मन में उमड़ने लगे थे जिसे पत्रकारिता का माध्यम मिल गया ।

-अगली जाॅब ?

-सर्वाधिक लोकप्रिय साप्ताहिक धर्मयुग में । मेरा सपना भी था इसके संपादक धर्मवीर भारती के साथ काम करने का , जो पूरा हुआ।  

-कितने वर्ष काम किया धर्मवीर भारती जी के साथ?

-सन् 1985 से सन् 1989 तक चार साल ।

-कैसे संपादक थे धर्मवीर भारती ?

- अपने समय के महान् साहित्यकार ही नहीं पत्रकार भी जो बहुत दुर्लभ संयोग होता है । हर विभाग में सर्वश्रेष्ठ । बहुत सख्त संपादक लेकिन नये लोगों के प्रशिक्षण में मददगार । बाहर और भीतर गजब का अनुशासन । लगभग एक दर्जन कवर स्टोरीज ऐसी थीं जो सबसे पहले धर्मयुग में ही आईं । 

‌-और क्या क्या गुण आपकी नज़र में भारती जी के ?

-पूर्ण समर्पण, पाठकों-लेखकों से पत्र  व्यवहार और व्यक्तिगत सम्पर्क ।

-धर्मयुग के बाद कहां ?

-संडे आब्जर्वर में उदयन शर्मा के साथ क्योंकि वे भी धर्मयुग की ही उपज थे । जब दिल्ली आए तो मुझे भी कहा कि आ जाओ, आपकी जरूरत है ।  इस तरह उनके साथ पहुंचा दिल्ली सहायक संपादक बन कर । वे भी गजब के संपादक और पत्रकार ऐसे कि संपादक बनने के बावजूद सक्रिय संवाददाता । साम्प्रदायिक सद्भावना उनकी सदैव चिंता रही । नवभारत टाइम्स के संपादक एस पी सिंह को भी याद कर रहा हूं जो बहुत कम बोलते और बहुत कम लिखते थे लेकिन सटीक लिखते थे । उन्होंने ही आज तक को ही नहीं बल्कि टी वी को नया रूप दिया । टीवी का जनक कह सकते हैं  आप उन्हें । 

-दैनिक ट्रिब्यून में कैसे ? 

-जब संडे आब्जर्वर में था तब रमेश नैयर और देवेंद्र चिंतन भी थे जो ट्रिब्यून में काम कर चुके थे और चर्चा में ट्रिब्यून समूह की बड़ी तारीफ करते थे । सन् 1995 में जब सहायक संपादक की पोस्ट निकली तो मैंने ट्राई किया और सहायक संपादक चुना गया । अब संपादक ।

-कोई पुरस्कार?

-प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से सर्वश्रेष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कार/सम्मान।  तब एक घंटे का कार्यक्रम भी दूरदर्शन पर आया मेरे बारे में । 

-कितनी पुस्तकें अब तक ?

- अब तक चार पुस्तकें -समय के चेहरे -समाज के विभिन्न चर्चित चेहरों पर । दूसरी आज़ादी के बाद की हिंदी पत्रकारिता । तीसरी कृष्णदत्त पालीवाल की जीवनी और चौथी ओसामा का अंत । वह ओसामा बिन लादेन पर पहली पुस्तक होगी। 

-आज पत्रकारिता कहां से कहां आ गयी ?

-हर समय में चीज़ें , मूल्य और सरोकार बदलते हैं । स्वतंत्रता पूर्व सामाजिक चुनौतियां और थीं व हम परतंत्र थे । यही स्थिति दूसरे क्षेत्रों में भी थी । स्वतंत्रता के बाद सरोकार बदले । फिर भी पत्रकारिता को प्रोफेशन नहीं मान सकते । यह दूसरे प्रोफेशन्ज से बहुत अलग है । 

-फिर इतना बदलाव कैसे?

- बाजार का दखल बढ़ता गया । बाजार ने सब कुछ नियंत्रित करना शुरू कर दिया । पहले अखबार कौन निकालते थे ? स्वतंत्रतता सेनानी, क्रांतिकारी या समाजसेवी लोग और अब कौन ? व्यापारिक पृष्ठभूमि वाले लोग जो इसे व्यवसाय समझ कर मुनाफा कमाना चाहते हैं । इसलिए पत्रकारिता के सरोकार बदले हैं । मैं साफ तौर पर कहना चाहता हूं कि अखबार कभी व्यापार नहीं हो सकता  ।

-पत्रकारिता के गुण क्या होने चाहिएं?

-मुनाफा कमाना नहीं बल्कि जन सरोकार, प्रतिबद्धता और विश्वसनीयता । सबसे बड़े गुण । 

-लक्ष्य ?

-भूमिका बदल सकती है लेकिन प्रतिबद्धता नहीं । अंतिम समय तक पत्रकारिता।  

हमारी शुभकामनाएं राजकुमार सिंह को । आप इन्हें इस ईमेल पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं : journalistrksingh@gmail.com


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