नेहरु जी का पहला घर और ससुराल / विवेक शुक्ला
पंडित जवाहरलाल नेहरु और तीन मूर्ति को जोड़कर देखा जाता है। यह सही है। वे दिल्ली में तीन मूर्ति में ही रहे। यह बात सही नहीं है। देखिए देश में 2 सितंबर,1946 को अंतरिम सरकार का गठन हुआ और उसके प्रधानमंत्री बन गए पंडित जवाहर लाल नेहरु। अब उन्हें दिल्ली में रहना था,तो उन्हें 17 यार्क रोड ( अब मोती लाल नेहरु मार्ग) का बंगला आवंटित हुआ। यह सोनिया गांधी के 10 जनपथ वाले बंगले से कुछ ही आगे है।
नेहरु जी का यह दिल्ली में पहला घऱ था। इससे पहले आजादी के आंदोलन के दौरान नेहरु जी का जब भी दिल्ली में आना-जाना होता, तो वे यहां पर अपने मित्रों के घर में ही ठहरते। उनका अपना निजी आवास तो इलाहाबाद में था।
सबसे अहम बात ये है कि पंडित जी के बंगले के बाहर किसी तरह का कोई सुरक्षाकर्मी नहीं होता था। कोई भी शख्स उनके बंगले के अतिथि कक्ष तक जा सकता था। आज के दौर में तो इसकी कल्पना करना भी असंभव है।
अंतरिम सरकार का मुखिया बनने के बाद उनके यार्क रोड के बंगले में भी कभी-कभी कैबिनेट की बैठकें होने लगीं। देश आजाद हुआ तो नेहरु जी यहां से ही लाल किला गए देश को पहली बार संबोधित करने। हां, दिल्ली में 1947 में जब सांप्रदायिक दंगे भड़के तो उनके निजी सचिव एम.मथाई ने बंगले के बाहर कुछ पुलिसकर्मी खड़े करवा दिए थे। उन्होंने अपना एक तंबू बंगले के भीतर बना लिया। उस दिन जब नेहरु जी शाम को घर लौटे तो उस तंबू को देखकर मथाई से सारीबात पूछी। मथाई के जवाब से असंतुष्ट नेहरु जी ने उन्हें निर्देश दिए कि उनके घर से पुलिसवालों को चलता कर दिया जाए। उसके बाद मथाई ने उन पुलिसकर्मियों को बंगले की पिछली तरफ तैनात करवा दिया। नेहरु जी से इधर राजधानी में दशकों पहले से बसे हुए कश्मीरी भी मुलाकात करने के लिए आते थे। एक बार कश्मीरी बिरादरी ने उन्हें भोज के लिए आमंत्रित किया। वो उस भोज में शामिल भी हुए। उस भोज का आयोजन दिल्ली के प्रमुख कश्मीरी काशी नाथ बमजई के घर पर हुआ था। बमजई पत्रकार थे। इसमें कश्मीरी हिन्दू और मुसलमान शामिल हुए थे। उस भोज में सीताराम बाजार में गली कशमीरियान में रहने वाले दर्जनों कश्मीरी परिवार शामिल हुए थे।
वरिष्ठ पत्रकार और नेहरु जी के सचिव रहे सोमनाथ धर ने अपनी किताब ‘डेज विद नेहरु’ में लिखा है, "एक बार मैंने देखा था कि नेहरु जी 17 यार्क रोड बंगले के विशाल बगीचे के एक कोने में एक बड़े से पेड़ के नीच लेडी माउंटबैटन के साथ गप कर रहे थे।"लेडी माउंटबैटन 17 यार्क रोड के बंगले में नियमित रूप से आती थीं।
और 1947 के अंत से कुछ पहले ही नेहरु जी चले गए तीन मूर्ति भवन में रहने के लिए।
ससुराल नेहरु जी की
इस बीच, नेहरु जी से जुड़ा पुरानी दिल्ली का एक घर गुमनामी में ही रहा। कायदे से देखा जाए तो इसकी भी कम अहमियत नहीं है इस नेहरु-गांधी परिवार के लिए। पंडित जवाहर लाल नेहरूइधर ही कमला जी से शादी करने बैंड,बाजा,बारात के साथ 8 फरवरी 1916 को आए थे? ये घर सीताराम बाजार में है। पंडित नेहरु इधर शादी के बाद कभी नहीं आए। पर इंदिरा जी तो अपनी मां के घर से अपने को भावनात्मक स्तर पर जुड़ा हुआ महसूस करती थीं। जाहिर है कि दिल्ली-6का यह घर उनकी मां कमला नेहरू का था। इधर ही उनकी मां पली-बढ़ीं और फिर पंडित नेहरू की बहू बनकर इलाहाबाद के भव्य-विशाल आनंद भवन में गईं।
अगर श्रीमती इंदिरा गांधी को छोड़ दिया जाए तो माना जा सकता है कि परिवार के अन्य सदस्यों का इसको लेकर रवैया बेरुखी भरा ही रहा। शायद ही इसमें कभी इधर राजीव गांधी या संजय गांधी आए हों। राहुल गांधी, प्रिंयका गांधी और वरुण गांधी की तो बात ही मत कीजिए।
अब गांधी-नेहरू परिवार से जुड़ा घर जर्जर हो चुका है। बंद पड़ा है। पर कभी यह गुलजार रहता था। इधर स्वाधीनता आंदोलन के दौर में स्वाधीनता सेनानियों की बैठकें निरंतर होती थीं। कमला जी का परिवार दिल्ली की कश्मीरी पंडित बिरादरी में नामचीन था। काफी कुलीन माना जाता था। घर में कवि सम्मेलन और मुशायरे लगातार आयोजित होते थे।
राजधानी में 19 वीं सदी के मध्य में कश्मीर से काफी तादाद में कश्मीरी पंडितों के परिवार आकर बस गए थे। तब उत्तर प्रदेश के दो शहरों क्रमश: इलाहाबाद और आगरा में भी बहुत से कश्मीरी पंडितों के परिवार आ गए थे। इनके कुल नाम हक्सर ,कुंजरू, कौल, टिक्कू वगैरह थे। कमला जी का भी परिवार उसी दौर में इधर आकर बसा था। यहां पर आए तो इधर ही होकर बस गए। कश्मीरी जुबान तक कहीं पीछे छूट गई। उसकीजगह ले ली हिन्दुस्तानी ने।
कमला जी ने जामा मस्जिद के करीब स्थित इंद्रप्रस्थ स्कूल से शिक्षा ग्रहण की थी। ये स्कूल अब भी चल रहा है। इसे आप दिल्ली का पहला लड़कियों का स्कूल मान सकते हैं। इसी स्कूल का मैनजमेंट इंद्रप्रस्थ कालेज भी चलाता है।
इंदिरा जी के ननिहाल वालों ने अपने घर को 60 के दशक में बेच दिया। बस,तब ही से इसके बुरे दिन शुरू हो गए। फिर इसे देखने वाला कोई नहीं रहा।
और अब तो नेहरु जी के ससुराल का रास्ता बताने वाला भी आपको दिल्ली-6 में मुश्किल से ही कोई मिलेगा। हां, कुछ बड़े-बुजुर्गों की ख्वाहिश है कि गांधी-नेहरू परिवार से जुड़े इस घर को स्मारक का दर्जा मिल जाए। इधर एक पुस्तकालय बन जाएं जहां पर आकर लोग पढ.सकें।
इंदिरा जी चुनाव प्रचार के दौरान इस घर के पास आकर अवश्य ही ठहर जाती थीं या कहें कि ठिठक जाया करती थीं। वे दिल्ली-6 में होने वाली चुनावी सभाओं में वे यह भी बताना नहीं भूलती थीं कि उनकी ननिहाल सीताराम बाजार में ही था। वे साल 1980में फिर से प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी मां के घर आईं थीं। उनके साथ उनके सचिव आर.के. धवन और दिल्ली के उस दौर के शिखर नेता हरिकिशन लाल भगत भी थे। जाहिर तौर पर उनके अपने घर आने के खबर से वहां पर भारी भीड़ एकत्र हो गई थीं। करीब 30-40 मिनट वो अपनी मां के घर ठहरीं थीं। घर के एक-एक हिस्से को उन्होंने करीब से देखा। अफसोस होता कि नेहरु-गांधी परिवार से जुड़ी इस हलेवी के बाहर यह तक किसी शिलालेख पर नहीं लिखा कि इस घर का किस तरह का इतिहास रहा है।
कई अखबारों में पब्लिश लेखों के अंश.
विवेक शुक्ला