दिल्ली जान निसार करती थी दिलीप साहब पर
विवेक शुक्ला
दिलीप कुमार की अधिकतर फिल्मों को दिल्ली के दर्शकों का भरपूर प्यार मिला । पर लाल कुआं के इक्सेल्सीअर के किंग थे ट्रेजेड़ी किंग। यहां पर मुगले ए आजम, आदमी, सगीना, राम और श्याम और शहीद लगने के बाद उतरने का नाम नहीं लेती थीं। ये सब यहां पर बार-बार लगीं और खूब मकबूल हुईं। अब जबकि दिलीप कुमार हमारे बीच में नहीं रहे, तब एक सवाल का जवाब जानने का मन करता है कि इक्सेल्सीअर में मुगले ए आजम को पहले हफ्ते ठंडा रिस्पांस क्यों मिला था? हालांकि इसकी पृष्ठभूमि मुस्लिम थी और इसमें दिलीप कुमार का खासकिरदार था।
दिलीप कुमार की कोई फिल्म दिल्ली-6 के सिनेमाघरों में हलचल ना मचाए ये अप्रत्याशित ही था। दिलीप कुमार पर जान निसार करती थी दिल्ली। इससे भी बड़ी बात ये है कि वे संभवत: किसी फिल्म में पहली बार एक मुस्लिम किरदार को निभा रहे थे। पर दूसरे हफ्ते से दिल्ली घर से निकली मुगले ए आजम को देखने के लिए। इसके साथ ही सदर बाजार के वेस्टएंड में दिल्ली साहब की आन और नया दौर की टिकटें लेने के लिए भी लंबी-लंबी लाइनें लगी थीं। तब नया दौर के रीलिज होते ही दिल्ली ने गाना शुरू कर दिया था उड़े जब जब जुल्फें...।
यारबाश थे दिलीप कुमार
दिलीप कुमार की शख्सियत का एक पहलू उनका यारबाश होना भी था। वे राजधानी में जब भी आए तो अपने तीन दोस्तों- क्रमश: शायर और दिल्ली के कमिश्नर रहे कुंवर महेन्द्र सिंह बेदी, बिजमेसमैन और सोशल वर्कर सागर सूरी और फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर मदनलाल कपूर से मिले बिना कभी वापस मुंबई नहीं गए।आमतौर पर वे बेदी साहब के ग्रेटर कैलाश या सागर सूरी के सागर अपार्टमेंट्स वाले घरों में ही ठहरा करते थे। पर गुजरे पंद्रह सालों के दरम्यान उनके ये तीनों अच्छे- बुरे वक्त के साथी और साक्षी रहे मित्रों के ना रहने के बाद उनका दिल्ली आना लगातार कम होता गया। पर आपको उनकी अपने इन दोस्तों के घरों में तस्वीरें लगी मिल जाएंगी।
दिलीप साहब,देवदास और मदन लाल कपूर
दिलीप साहब का देवदास के साथ मदन लाल कपूर से रिश्ता बना था। फिर गंगा जमुना, राम और श्याम,विधाता,कर्मा और सौदागर तक मदन लाल कपूर ही उनकी फिल्मों को रीलिज करते रहे। इन सब फिल्मों की सफलता में कपूर साहब की भी भूमिका रही। उन्हें फिल्म वितरण के क्षेत्र का उस्ताद माना जाता था। मदन लाल कपूर की 1997 में मृत्यु से पहले दिलीप साहब उनकी दरियागंज की लाल कोठी में अवश्य पहुंचते थे। कपूर साहब नाज सिनेमा के मालिक भी थे।
क्यों मुगले ए आजम के प्रचार से दूर रहे थे दिलीप साहब
मोरी गेट के मिनर्वा सिनेमा के मैनेजेर के कमरे में दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला की 1961 की एक फोटो टंगी हुई थी। तब ये दोनों यहां गंगा जमुना के प्रीमियर शो के लिए आए। दिलीप साहब ने सूट पहना हुआ है और वैजयंतीमाला सिर पर साड़ी का पल्लू लिए खड़े हैं। दिलीप साहब के तब प्रीमियर पर आने पर दिल्ली को हैरानी हुई थी। वजह ये थी कि दिलीप साहब एक साल पहले हिन्दी सिनेमा की एक बड़ी शाहकार मुगले ए आजम फिल्म के प्रीमियर या प्रचार से दूर रहे थे। उसकी वजह थी उनकी मुगले ए आजम के डायरेक्टर के. आसिफ से अनबन का होना। अब मिनर्वा को बंद हुए भी एक अरसा गुजर गया है। मालूम नहीं कि वह यादगार फोटो कहां होगी?
अदबी महफिलों में मौजदूगी
दिलीप कुमार दिल्ली में नेहरु जी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी से भी मिलने आया करते थे। उनके सभी प्रधानमंत्रियों से आत्मीय संबंध रहे। दिल्ली की अदबी महफिलें भी उनकी शिरकत रहा करती थी। वे दिल्ली पब्लिक स्कूल में आयोजित होने वाले जश्ने बहार मुशायरे में बार-बार बतौर मेहमानें खुसूसी के तशरीफ लेकर आए। जश्ने बहार मुशायरे को आयोजित करवाने वाली कामना प्रसाद जी ने बताया कि दिलीप साहब पहली मर्तबा साल 21 अप्रैल 2000 को हुए मुशायरे में आए थे। उसमें एम.एफ. हुसैन और फारूख शेख भी आए थे।
एक बार सागर सूरी बता रहे थे कि दिलीप कुमार कभी-कभी मुस्कराते हुए कहा करते थे कि उन्हें दिल्ली इसलिए पसंद है क्योंकि यहां ही उनकी पत्नी सायरा बानो और सास नसीम बानो की जिंदगी का कुछ वक्त गुजरा। संयोग से ये दोनों तीस हजारी के पास स्थित क्वीन मेरीज स्कूल में पढ़ीं थीं।
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Picture. DILIP SAHAB, MF Hussain and others AT JASHNE BAHAR MUSHAIRA, DELHI.