साउथ दिल्ली के फ्रेंड्स कॉलोनी के सी ब्लाक के उस घर का 1972 के म्युनिख ओलपिंक खेलों में इजराईली खिलाड़ियों के कत्लेआम के बाद रिश्ता बना था। अगर उस कत्लेआम के बाद फिर ओलंपिक खेलों में कभी उस तरह का हादसा नहीं हुआ तो उसका श्रेय उस शख्स को जाता है,जो कभी रहता था उस घर में । उनका नाम था अश्वनी कुमार।
फिलिस्तनी गुरिल्लाओं ने दिया था उस आतंकी घटना को अंजाम। उसके बाद अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ ने अश्वनी कुमार से गुजारिश की थी कि वे आगामी शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों की सुरक्षा व्यवस्था को देखें। अश्वनी कुमार तेज-तर्रार पुलिस अफसर थे। वे तब तक सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक नहीं बने थे। अश्वनी कुमार भारतीय पुलिस सेवा के पंजाब कैडर के अफसर थे।
अश्वनी कुमार ने बेहद चुनौतीपूर्ण दायित्व को स्वीकार किया। उसके बाद किसी आतंकी संगठन को ओलंपिक खेलों में किसी तरह का व्यवधान डालने का मौका नहीं मिला। अश्वनी कुमार 5 सितंबर 1972 को म्युनिख में ही थे जब उन्हें पता चला कि आतंकियों ने ओलंपिक गांव पर हमला कर दिया है। उस हमले के बारे में किसी ने ख्वाबों में भी नहीं सोचा था। उस हमले में निशाने पर थी इजराईल की ओलंपिक टीम । आतंकियों ने इजराईल की ओलंपिक टीम के 11 सदस्यों की हत्या कर दी। इस घटना के पीछे 8 आतंकियों का हाथ था।
अश्वनी कुमार ने मांट्रियल (1976), मास्को (1980), लास एजेंल्स (1984), सिओल (1988), बर्सिलोना (1992), अटलांटा (1996) तथा सिडनी (2000) के ओलंपिक खेलों से जुड़े स्टेडियमों, खेल गांवों, मीडिया सेंटरों, वीआईपी और दर्शकों वगैरह की सुरक्षा को खासतौर पर देखा। बहुत कड़क थी उनकी शख्सियत। जैसे ही किसी शहर को ओलपिंक खेल आवंटित होते तो वे वहां पर जाने लगते आयोजन समिति से तालमेल के लिए। फिर वे वहां पर सुरक्षा से जुड़ी व्यवस्थाओं को अंतिम रूप देते।
वे कहते थे कि ग्रीष्मकालीन खेल खिलाड़ियों और दर्शकों की भागेदारी के लिहाज से शीतकालीन खेलों की तुलना में बहुत व्यापक स्तर पर होते हैं। इसलिए इनकी निगाहबानी करना ही चैलेंज होता था। वे बेखौफ पुलिस अफसर थे। वे रणनीति बनाने से लेकर अपराधी से सीधे दो-दो हाथ करने के लिए तैयार रहते थे। उनका मुख्य फोकस ओलंपिक खेलों के पहले दिन और अंतिम दिन की सुरक्षा व्यवस्थाओं पर रहता था। वे मानते थे कि ये दोनों दिन सुरक्षा एजेंसियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इन्हीं दोनों दिनों में आतंकी अपने शिकार पर हमला करने की फिराक रहते हैं। खेलों की समाप्ति वाले दिन तो इसलिए क्योंकि उस दिन सब रीलेक्स मूड में होते हैं। यह सामान्य बात तो नहीं है कि जिस देश को बमुश्किल से एक-दो पदक मिलते हों उसके एक इंसान को समूचे खेलों की सिक्युरिटी की जिम्मेदारी ही मिल जाए। वे आईओसी के दो अध्यक्षों क्रमश: लॉर्ड किलिनन और जे.ए. समारांच के विश्वासपात्र थे।
नेपाल में पकड़ा था कैरों के कातिल को
अश्वनी कुमार को देश ने पहली बार तब जाना था जब उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के हत्यारे सुच्चा सिंह को नेपाल में जाकर पकड़ा था। कैरों राजधानी में कर्जन रोड (कस्तूरबा गांधी मार्ग) में अपने मित्र से मिलकर वापस चडीगढ़ जा रहे थे। रास्ते में सोनीपत के पास राई में उनका सुच्चा सिंह और उनके साथियों ने कत्ल कर दिया था। अश्वनी कुमार नेपाल में सुच्चा सिंह का पीछा करते हुए काफी दूर तक भागे थे। दोनों में हाथापाई हुई। पर अश्वनी कुमार के घूंसों की बौछार ने सुच्चा सिंह को पस्त कर दिया था। इससे पहले, भारत सरकार ने उन्हें 1951 में सौराष्ट्र के खूंखार डाकू भूपत गिरोह को खत्म करने के लिए भेजा था। वहां पर भी वे सफल हुए थे।
बेटी का नाम हॉकी
हॉकी में तो मानों उनकी जान बसती थी। उन्होंने अपनी एक बेटी का नाम ही हॉकी रख दिया था। पंजाब पुलिस में रहते हुए वे भारतीय हॉकी संघ के अध्यक्ष बने। वहां से वे फिऱ भारतीय ओलंपिक संघ से भी जुड़ गए.
अश्वनी कुमार सीमा सुरक्षा बल ( बीएसएफ) के दूसरे महानिदेशक थे और उन्होंने इस बल को खड़ा किया। उन्होंने पंजाब पुलिस और बीएसएफ में दर्जनों खिलाड़ियों को नौकरी दी। उनमें बलबीर सिंह सीनियर,अजीतपाल सिंह, उधम सिंह आदि शामिल हैं। राजधानी के ओलंपिक भवन में जाकर या फ्रैंड्स कॉलोनी में उनके घर के आगे से गुजरते हुए अश्वनी कुमार की याद आ जाती है। उनका साल 2015 में निधन हो गया था।
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Navbharatimes और Haribhoomi में छपे लेखों के अंश
Pictures- Ashwani Kumar and PRATAP SINGH KAIRON