केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने ताजा रिपोर्ट में कहा कि बांग्लादेश प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत से 27 प्रतिशत आगे निकल गया है लेकिन इसी कोरोना काल में अम्बानी और अडानी की संपत्ति में बेहताशा वृद्धि भी हुई है। जजीडीपी, महंगाई, बेरोजगारी पर क्या ही बात करूं फिलहाल देश की एक बड़ी समस्या पर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं। वैसे मोदी समर्थक आंकड़ों में तो विश्वास नहीं करते हैं क्योंकि वे केवल कहते हैं हिन्दू जनसंख्या घट रही है लेकिन कितने हिन्दू देश छोड़कर भाग रहे हैं और क्यों इसपर आप तो कम से कम एक नज़र डालो।
वर्ल्ड वेल्थ की रिपोर्ट के मुताबित 2000 से लेकर 2014 तक कुल 61 हजार केवल करोड़पति लोगों ने देश छोड़ दिया था। जबकि 2015 से 2019 केवल 4 वर्षों में देश छोड़ने वालों में गजब वृद्धि हुई है जिनमे लगभग 25 हजार भारतीय करोड़पति शामिल हैं। यह आंकड़े केवल अरबपति, करोड़पतियों के हैं जबकि अन्य लोगों के देश छोड़ने का आंकड़ा बहुत ज्यादा है लेकिन यह लोग देशद्रोही की श्रेणी में नहीं आते हैं क्योंकि यह अपना काम चुपचाप करते हैं। देशद्रोही उन्हें कहा जायेगा जो देश मे ही अपने हक अधिकारों के लिए आवाज उठा रहे हैं।
दुनिया भर में अरबपति पलायन करते हैं। चीन के बाद भारत दूसरे नंबर है जिसके अरबपति नागरिकता छोड़ देते हैं। न्यू वर्ल्ड वेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक 2017 में 7000 अमीरों ने तथा 2019 में 5000 अमीर भारतीयों ने अबतक प्यारे और स्वर्ग से सुंदर भारत का त्याग कर दिया। सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस(CBDT) ने वर्ष 2019 के मार्च महीने में पांच लोगों की एक कमेटी बनाई है। यह देखने के लिए कि अगर इस तरह से अमीर लोग भारत छोड़ेंगे तो उसका असर कर संग्रह पर क्या पड़ेगा। इस तरह का पलायन एक गंभीर जोखिम है। ऐसे लोग टैक्स के मामले में ख़ुद को ग़ैर भारतीय बन जाएंगे जबकि इनके व्यापारिक हित भारत से जुड़े रहेंगे। यह रिपोर्ट इकोनोमिक टाइम्स में छपी है। इकोनोमिक टाइम्स ने इसे मुंबई मिरर के आधार पर लिखा है।
2015 और 2017 के बीच 17000 अति अमीर भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी। हम नहीं जानते कि इन्होंने भारत की नागरिकता क्यों छोड़ी, किसी बात से तंग आ गए थे या असहिष्णु थे या दूसरे मुल्क भारत से बेहतर हैं? नौकरी के लिए जाना और दो पैसे कमाने के लिए रूक जाना, यह बात तो समझ आती है मगर जिस देश में आप पैसा कमाते हैं, सुपर अमीर बनते हैं, उसके बाद उसका त्याग कर देते हैं, कम से कम जानना तो चाहिए कि बात क्या हुई? हमारे पास उनका कोई पक्ष नहीं है, पता नहीं अपने दोस्तों के बीच क्या क्या बोलते होंगे? किस बात से फेड अप हो गए? इत्तेफ़ाक़ यह है कि वे ज्यादात्तर अथवा लगभग सभी ऊंची जातियों से ही हैं।
ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री दावा कर रहे हैं कि दुनिया में भारत के पासपोर्ट का वज़न बढ़ गया है, ठीक उसी समय में 17000 अमीर भारतीय भारत के पासपोर्ट का त्याग कर देते हैं, सुन कर अच्छा नहीं लगता है। इस बात का खुलासा ही तब हुआ जब मॉर्गन स्टेनली इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट के मुख्य वैश्विक रणनीतिकार रुचिर शर्मा दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में एनडब्ल्यू वेल्थ सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि अपना देश छोड़ने वाले करोड़पतियों में सबसे अधिक भारत से हैं।
गौरतलब है कि कोई लोन न चुका पाने से भागा है तो कोई भ्रष्टाचार से धन जुटाने के बाद भागा है। जबकि वहीं देश के लाखों, करोड़ों मेहनतकश गरीब किसान-मजदूर बेरोजगारी, निर्धनता की मार से जूझ रहे हैं, अपने गांवों से पलायन कर रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि शासक वर्ग को आखिर क्या हुआ है कि पतली गली से धीरे-धीरे लगभग 23,000 भारत छोड़कर विदेशों में जा बसे हैं। क्या यह समझा जाये कि उन्हें हिंदुत्व से अलगाव हो गया है या फिर यह समझा जाये कि इनकी यही रणनीति और नियति है?
आपको बताते चलें कि बदलते भारत की इस दोहरी तस्वीर ने मूलनिवासी बनाम शासक वर्ग के बीच ऐसी चुगली की है कि बीते डेढ़ दशक के भीतर लगभग 21 फीसदी शासक जाति के लोग दौलतमंद हुए हैं, बाकी 79 फीसदी मूलनिवासी भुखमरी का दंश झेल रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है कि निकट भविष्य में आर्थिक गैरबराबरी काफी भयावह रूप लेने वाली है। स्विटजरलैंड की ज्यूरिख स्थित संस्था क्रेडिट सुईस तो बता रही है कि भारत में 53 फीसदी दौलत एक फीसदी शासक वर्ग धनकुबेरों के पास इकट्ठी हो चुकी है।
देश की सबसे गरीब आबादी को सिर्फ 4.1 फीसदी संपत्ति का हिस्सा ही नसीब हुआ है। बताया गया है कि बीते दशक में वर्ष 2010 से 2015 के बीच देश की गरीब आबादी के हिस्से के संसाधन 5.3 फीसदी से घटकर 4.1 फीसदी रह गए, जबकि इसी दौरान देश की दौलत में लगभग 2.28 खरब डॉलर का इजाफा हुआ है। इस बढ़ोतरी का 61 फीसदी हिस्सा देश के एक प्रतिशत अमीरों के तिजोरी में चला गया है और 10 प्रतिशत हासिल कर लेने के साथ ये आंकड़ा 81 प्रतिशत पहुंच चुका है। आर्थिक असमानता के इस बेखौफ आंकड़े में भारत, अमेरिका से भी आगे निकल चुका है।
ताजा आंकड़े उपलब्ध नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि विदेशों में बसने की इच्छा जाहिर करने वालों में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कोरोना काल खत्म होते ही यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि भारतीय अमीर बड़ी संख्या में देश छोड़ सकते हैं। नेताओं और उधोगपतियों के बच्चे पहले ही विदेशों में सेटल है जबकि उनके व्यापार और राजनीति देश मे चलती रहती है। यह भी बड़ी वजह है कि मीडिया या समाज में राजनीतिक अव्यवस्था को लेकर बड़ा हाहाकार नहीं दिखाई पड़ता है। बाकि आरोपित केवल वही होते रहेंगे जो व्यवस्था को सुदृढ बनाने की बातें करेंगे। #आर_पी_विशाल ।