Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

शिक्षक दिवस पर उनकी स्मृति को नमन/ मुकेश प्रत्यूष

$
0
0

 समय से बड़ा शिक्षक कोई नहीं होता इसे मानने और जानने के बावजूद आज मुझे एक ऐसे शिक्षक की  याद आ रही है जिन्होंने मेरा ट्रैक बदल दिया। वे थे पटना विश्‍वविद्यालय के  हिन्‍दी विभाग के तत्कालीन अध्‍यक्ष डा. रामखेलावन राय। उन्‍होंने  न केवल एक नई राह दिखाई बल्कि जब भी जरूरत पड़ी साथ भी रहे। 


 एम.ए. हिन्‍दी में नामाकन करने के साथ हीअपनी व्‍यक्तिगत लाइब्रेरी के प्रयोग  की सुविधा भी दे दी। रोज आने-जाने लगा। चूकि मैं अखबारों के लिए रोज एक लेख लिखता था।  इसलिए किसी- किसी वि‍षय पर वे मेरे विचार भी जानना चाहते।  विशेष रूप से जब उन्‍हें कोई आलेख तैयार करना होता।  कई बार रात में देर हो जाने पर या सुबह जल्‍दी  जाने पर  खाना भी खिलाते। आने-जाने में होनी वाली इस असुविधा का उन्‍हें पता था। वे  राजेन्‍द्रनगर के रोड नंबर तीन में रहते थे  और मैं मीठापुर में। 


दो नंबर रोड में उनके एक दूर के रिश्‍तेदार का मकान था डुमरांव कोठी। उसकी तीसरी मंजिल पर छत पर सीढ़ी से लगा हुआ एक छोटा-सा कमरा खाली था। उन्‍होंने रामखेलावन राय से भी कहा। वे इस सूचना से इतने खुश हुए कि  उसी शाम मुलाकात होने पर मुझे तत्‍काल उस कमरे में आ जाने के लिए कहा। मेरे पास था ही क्‍या एक फोल्डिंग काट, एक स्‍टोव, कुछ बर्तन, लोटा-बाल्‍टी और काफी संख्‍या में किताबें। बस उन्‍हें कार्टून में पैक करने में जितना वक्‍त लगा। एक ठेले पर पर सब रखवाया और आ गया ।  बाद में एक दिन   मकान मालिक चौधरीजी (पूरा नाम याद नहीं)  ने बताया उनका  एक बेटा था जिसकी मृत्‍यु एक बस से दब कर हो गई थी। यह कमरा उसी ने अपने पढ़ने के लिए बनवाया था । बाथरूम वगैरह बनकर तैयार होता उसके पहले ही उसकी मृत्‍यु हो गई । तब से यह कमरा वैसे ही पड़ा हुआ था। 


चूकि यह ऐसी जगह पर था जिसके इर्द-गिर्द काफी संख्‍या में रचनाकार, पत्रकार, प्रोफेसर रहते थे और छत पर पचीय-तीस लोग आराम से बैठ सकते थे। शाम होते ही कई लोग आ जाते। देर रात  तक कविता-कहानी सुनने-सुनाने का कार्यक्रम चलता। 


रामखेलावन राय  अपने धर में  भी  गोष्‍ठी करते। पटना में  हिन्‍दी के जो भी   विद्वान-अध्‍यापक  पी.एचडी. का वाइवा आदि लेने के लिए आते उनसे मिलवाते। मेरी पढ़ाई पर भी नजर रखते। काव्‍य-शास्‍त्र  उनका प्रिय विषय था जब भी अवसर मिलता बताते।  


कई अन्‍य प्रोफसरों के बच्‍चे भी इस सत्र में थे। हमारी तैयारी देख  उन्‍हें  खतरा महसूस होने लगा। पहली बार पता चला टाप करने के लिए लोग क्या-कुछ  कर्म करते  हैं। अनाप-शनाप समाचार  अखबारों में  छपते। इसमें  स्कूल  के विद्यार्थियों के लिए   कुंजी और गेस पेपर लिखने वाले एक क प्रोफेसर  प्रमुख भूमिका निभा रहे थे।  वे मेरे स्वजातीय थे। मुझसे  कुछ  अपेक्षाएं थी जो पूरी नहीं हो रही थी। सब जानते हुए  भी मैंने उन्हें   नजरअंदाज  किया।  हां कभी-कभी उनकी हरकतों पर खीझ जरुर  होती। 


राय  साहब कहते  हद दर्जे का धूर्त और मक्कार है। यह सब हर साल होता है।  कभी किसी बहाने, कभी किसी बहाने ऐसे लोग अध्‍यक्ष होने के कारण मुझ पर हमला करते  हैं। फिर भी उनकी दाल नहीं गलती।  इस बार उन्हें लग रहा है मैं एक विजातीय के साथ  क्यों हूं। आप यह सब  छोडि़ए और पढ़ाई पर ध्‍यान दीजिए। 


मेरे रिजल्‍ट को देखकर मुझसे ज्‍यादा उन्‍हें खुशी हुई। मिठाई  मंगवाई।  गुरु पिता तुल्य होते हैं।   दूसरे दिन   कहा ए.एन.कालेज पटना के स्‍नातकोत्‍तर हिन्दी विभाग में एक प्राध्‍यापक की जगह खाली है।  अपको अनुशंसित  किया है। मैं क्या कहता धन्यवाद के सिवा। 




( दाएं से डा रामखेलावन राय,  प्रो वेंकटसवरलु काशीनाथ पांडेय और मैं)


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>