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बापू सेंट स्टीफंस कॉलेज से जामिया तक / विवेक शुक्ला

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सेंट स्टीफंस कॉलेज के प्रिंसिपल के कमरे में एक फोटो को आप देखे बिना नहीं रह पाएंगे। इसमें महात्मा गांधी कॉलेज के अध्यापकों और विद्यार्थियों के साथ बैठे हैं। यह फोटो तब ली गई थी वे 12 अप्रैल 1915 से 15 अप्रैल 1915 के दौरान  कॉलेज में ठहरे थे। वह बापू की पहली दिल्ली यात्रा थी। उनसे सेंट स्टीफंस कॉलेज के अलावा हिन्दू कॉलेज के भी छात्र मिलने आ रहे थे। तब ये दोनों कॉलेज कश्मीरी गेट में हुआ करते थे।



 वे 1918 में फिर इसी कॉलेज में आते हैं! उन्हें यहां इस बार ब्रज कृष्ण चांदी वाला मिलते हैं! वे यहां ही पढ़ते हैं! वे गांधी जी के साथ जुड़ जाते हैं! उन्होंने ही गांधी जी को अंतिम बार स्नान करवाया था!


अब चलिए बाराखंभा रोड के मॉडर्न स्कूल में। यहां के प्रिंसिपल रूम में भी एक चित्र टंगा है। उसमें गांधी जी स्कूल के कुछ विद्यार्थियों से आत्मीयता से बात कर रहे हैं। वे यहां सन 1935 में आए थे। इससे पहले, उन्होंने इसकी 20 अक्तूबर 1920 को आधारशिला रखी थी।



उन्होंने म़ॉडर्न स्कूल के संस्थापक और स्वाधीनता सेनानी लाला रघुबीर सिंह को कहा था कि वे एक इस तरह का स्कूल खोलें जहां भारतीय परम्पराओं के अनुसार शिक्षा दी जाए। बापू अपने परम मित्र हकीम अजमल खान के आग्रह पर करोल बाग में तिब्बिया कॉलेज का 13 फरवरी,1921 को उदघाटन करते हैं। वे तब मौन  व्रत पर थे। 


 और करोल बाग से करीब कुछ ही दूर मंदिर मार्ग पर स्थित सेंट थॉमस स्कूल की छात्राएं तो गांधी जी को रोज ही देखती थीं। ये उन दिनों की बातें जब बापू  1 अप्रैल 1946 से 10 जून 1947 तक वाल्मिकी मंदिर में रह रहे थे। सेंट थॉमस स्कूल और वाल्मिकी मंदिर एक-दूसरे से सटे हैं। बापू की पौत्री तारा गांधी कहती हैं कि जब वह सेंट थॉमस स्कूल में थीं उन दिनों बापू वाल्मिकी मंदिर में ही रहते थे। उस दौरान वह उनसे अपनी सहेलियों के साथ मिलने चली जाती थीं। बापू की वाल्मिकी मंदिर में लगने वाली कक्षाओं में सेंट थॉमस की छात्राएं भी आया करती थीं। बापू से सेंट थॉमस स्कूल की अध्यापिकाएं और छात्राएं उनके यहां आते-जाते वक्त बातें भी करने लगती थीं।


दरअसल गांधी जी की वाल्मिकी मंदिर में क्लास चलती थी। वे अपने छात्रों को अंग्रेजी और हिन्दी पढ़ाते थे। उनकी कक्षाओं में बच्चे-बड़े सब आते थे। वे वाल्मिकि मंदिर कैंपस में कुल 214 दिनों तक रहे थे। वे शाम के वक्त  वाल्मिकी बस्ती में रहने वाले परिवारों के बच्चों को पढ़ाते थे। उनकी पाठशाला में खासी भीड़ हो जाती थी। तब बापू की पाठशाला में हरकोर्ट बटलर स्कूल, रायसीना बंगाली स्कूल, दिल्ली तमिल स्कूल वगैरह के बच्चे भी आ जाया करते थे। कुछ बच्चे करोल बाग और इरविन रोड तक से आते थे।


बापू अपने उन विद्यार्थियों को फटकार भी लगा देते थे, जो कक्षा में साफ-सुथरे हो कर नहीं आते थे। वे स्वच्छता पर विशेष ध्यान देते थे। वे मानते थे कि स्वच्छ रहे बिना आप ज्ञान अर्जित नहीं कर सकते। बहरहाल वह कमरा जहां पर बापू पढ़ाते थे, अब भी पहले की तरह बना हुआ है। इधर एक चित्र रखा है, जिसमें कुछ बच्चे उनके पैरों से लिपटे नजर आते हैं। आपको इस तरह का चित्र शायद ही कहीं देखने को मिले। इस चित्र को देखकर कोई भी भावुक हो जाता है।



बापू की कोशिश रहती थी कि जिन्हें कतई लिखना-पढ़ना नहीं आता वे कुछ लिख-पढ़ सकें। क्या यह किसी को बताने की जरूरत है कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया तो बापू के आशीर्वाद से ही स्थापित हुई थी। इसमें उनका पौत्र रसिकलाल पढ़ा और पुत्र देवदास ने यहां कुछ समय तक पढ़ाया भी।


महात्मा गांधी ने 29 अक्तूबर 1920 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया की बुनियाद रखी  थी। ये सन 1925 में अलीगढ़ से दिल्ली के करोल बाग में शिफ्ट हो गई थी। जामिया के अध्यापक और छात्र पढ़ाई के साथ ही आज़ादी की लड़ाई के हर आंदोलन में हिस्सा लेते थे। जामिया को धन की बहुत कमी रहती थी। इसके चलते ये 1925 में बड़ी आर्थिक तंगी में घिर गई। उस वक्त गांधी जी ने कहा था, ‘‘जामिया के लिए अगर मुझे भीख भी मांगनी पड़ेगी तो मैं मांगूगा।”

 तब गांधी जी के आह्वान पर जमनालाल बजाज, घनश्याम दास बिड़ला और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय आदि ने जामिया की आर्थिक मदद की थी।


Navbharattimes में छपे लेख के अंश. 

फोटो- गांधी जी मॉडर्न स्कूल में.


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