डॉ. होमी जहांगीर भाभा 1950 से 1966 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष और भारत सरकार के सचिव थे। वो कभी भी अपने चपरासी को अपना ब्रीफ़केस उठाने नहीं देते थे। ख़ुद उसे ले कर चलते थे जो कि बाद में विक्रम साराभाई भी किया करते थे। वो हमेशा कहते थे कि पहले मैं वैज्ञानिक हूँ और उसके बाद परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष। एक बार वो किसी सेमिनार में भाषण दे रहे थे तो सवाल जवाब के समय एक जूनियर वैज्ञानिक ने उनसे एक मुश्किल सवाल पूछा। भाभा को ये कहने में कोई शर्म नहीं आई कि अभी इस सवाल का जवाब उनके पास नहीं है। मैं कुछ दिन सोच कर इसका जवाब दूंगा।
ऐसा विलक्षण व्यक्तित्व था भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक का!
डॉ. होमी जहाँगीर भाभा का जन्म मुम्बई के एक पारसी परिवार में 30 अक्टूबर, 1909 को हुआ था। 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने बम्बई के एक हाईस्कूल से सीनियर कैम्ब्रिज की परीक्षा पास की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए। उनकी ज्ञान और प्रतिभा से परिचित कुछ नामी विश्वविद्यालयों ने उनको अध्यापन कार्य के लिये आमंत्रित किया लेकिन उन्होंने 'भारतीय विज्ञान संस्थान' (IISc) बैंगलोर को चुना जहाँ वे भौतिक शास्त्र विभाग के प्राध्यापक के पद पर रहे।
उस वक़्त सर सी. वी. रमन भौतिक शास्त्र विभाग के प्रमुख थे और उन्हें डॉ. भाभा शुरू से ही पसंद थे। उन्होंने डॉ. भाभा को फैलो ऑफ़ रायल सोसायटी में चयन हेतु भी मदद की। बैंगलोर में डॉ. भाभा कॉस्मिक किरणों के हार्ड कम्पोनेंट पर रिसर्च कर रहे थे लेकिन उन्हें देश में विज्ञान की उन्नति के बारे में बहुत चिंता थी।
चूँकि बैंगलोर का संस्थान देश में वैज्ञानिक क्रांति के लिए पर्याप्त नहीं था, उन्होंने परमाणु विज्ञान में रिसर्च करने के लिए एक अलग संस्थान बनाने की सोची और सर दोराब जी टाटा ट्रस्ट से मदद माँगी।
1 जून, 1945 को उनके द्वारा प्रस्तावित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के एक छोटे से रूप का श्रीगणेश हुआ। डॉ. भाभा ने अपनी वैज्ञानिक और प्रशासनिक ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ TIFR की इमारत की भी ज़िम्मेदारी उठायी। उन्होंने इसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में खड़ा करने का सपना देखा। साल 1962 में TIFR पूरी तरह से फंक्शनल हो चूका था।
यह डॉ. भाभा के प्रयासों का ही प्रतिफल है कि आज विश्व के सभी विकसित देशों में भारत के नाभिकीय वैज्ञानिकों की प्रतिभा एवं क्षमता का लोहा माना जाता है।