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मुंबई की पत्रकारिता श्रीवर्षा औऱ टिल्लन रिछारिया

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 1 मई 1981 , चर्चगेट , दिशा 'श्रीवर्षा '!...जब हिंदी एक्सप्रेस का सफर समापन की ओर बढ़ने लगा तो अधिकारी जी को हमने बताया। वे बोले इसमें क्या चिंता हमेशा बिस्तर बाँध कर रखिये सफर के लिए , कल से आ जाइये  करंट में । ... 1 मई 1981 की सुबह साढ़े 10 बजे मैं चर्चगेट स्टेशन पर 10 मिनट खड़ा सोचता रहा। ... श्री वर्षा जाऊं या करंट ।कदम श्रीवर्षा की ओर बढ़ चले, फ़्लोरा फाउंटेन  पहुच कर देखा कि यहां भारी भीड़ है । आज 1 मई है , महाराष्ट्र दिवस , आज ही के दिन 1960 मे यह राज्य अस्तित्व में आया था । संघर्ष में काफी लोग शहीद हुए थे ।आज यहां उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है ।फ़्लोरा फाउंटेन अब  हुतात्मा चौक के नाम से जाना जाता है  ।


... फ्लोरा फाउंटेन  का नाम रोम के समृद्धि के देवता के नाम पर पड़ा, इसका निर्माण 1869 में सर बार्टले फरेरे के सम्मान में किया गया, जिन्होंने इस खूबसूरत दिखने वाली आज की  बम्बई के निर्माण में बहुत सहयोग दिया था। अब यह फाउंटेन उस क्षेत्र में है, जहां महाराष्ट्र राज्य के लिए शहीद होने वालों की याद में स्मारक बनाया गया है।


.. श्रीवर्षा के ऑफिस पहुच कर ज्वाइनिंग की फार्मेलिटी पूरी की । सम्पादकीय प्रमुख सुरेश सिन्हा जी से भेंट पहले हो चुकी है , अमृत प्रभात के हमारे मित्र शैलेश जी पिछले दिनों बम्बई आये थे , यहीं चर्चगेट पर किसी गेस्टहाउस पर रुके थे तब उस मुलाकात में सुरेश सिन्हा जी भी साथ थे । सुरेश जी श्रीवर्षा आने से पहले 'नवनीत 'पत्रिका में थे ।


... दोपहर डेढ़ बजे अधिकारी को फोन पर बताया पंडित जी मैं रास्ता भटक कर श्री वर्षा आ गया।  बहुत प्रसन्न हुए बोले शाम को आइए प्रेस क्लब पार्टी करेंगे ।


...मराठी के अच्छे सरकुलेशन  वाले 'श्री 'साप्ताहिक की अपार लोकप्रियता के बाद कमलेश्वर जी को 'श्रीवर्षा 'की जिम्मेदारी सौपी गई थी । इसी बीच कमलेश्वर जी के सामने एक बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ी , दूरदर्शन के अतिरिक्त निदेशक की ।सरकार कांग्रेस की थी और प्रधानमंत्री थीं इंदिरा ग़ांधी । । श्रीवर्षा के साथ सिर्फ 2 साल ही रहे कमलेश्वर जी ।फिर दूरदर्शन । ये 2 साल 1979औ 80 के थे । अब जिस दौर में हम श्रीवर्षा में आये हैं तो सम्पादकीय प्रमुख की जिम्मेदारी सुरेश सिन्हा की है । इनके अलावा सम्पादकीय विभाग में   मेरे अतिरिक्त  अभी आलोक भट्टाचार्य हैं । जयशंकर आने वाले हैं । ...श्रीवर्षा का दफ्तर इनदिनों फ़्लोरा फाउंटेन में बिल्ट्ज़ के सामने की बिल्डिंग में है  । 


ये शहर का बड़ा लोकप्रिय और प्रतिष्ठित  इलाका है , इसे हुतात्मा चौक भी कहते हैं । नेशनल म्यूजिम , एसियाटिक सोसाइटी , बॉम्बे हाईकोर्ट  , स्टॉक एक्सचेंज , जहांगीर आर्ट गैलरी सब आसपास ही हैं । यहीं बॉम्बे हाउस की  ऐतिहासिक इमारत है जो कि निजी स्वामित्व वाली टाटा समूह के मुख्य कार्यालय है । यह फ्लोरा फाउंटेन के पास स्थित है भवन 1924 में पूर्णतः तैयार हुआ  ।  यह भवन एक सुंदर चार मंजिला औपनिवेशिक मलाड पत्थर से निर्मित संरचना है और वास्तुकार जॉर्ज विटेट, जो बाद में टाटा इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड के प्रमुख बने द्वारा डिजाइन किया गया है।

 

 एशियाटिक सोसायटी ऑफ बॉम्बे।  यह बॉम्बे की लिटरेरी सोसाइटी में अपनी उत्पत्ति का पता लगा सकता है जो पहली बार 26 नवंबर 1804 को मुंबई में मिला था, और सर जेम्स मैकिनटोश द्वारा स्थापित किया गया था। इसका गठन "उपयोगी ज्ञान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया था, विशेष रूप से जैसे कि अब तुरंत भारत के साथ जुड़ा हुआ है"। 1823 में रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड को लंदन में स्थापित किया गया था, बॉम्बे की साहित्यिक सोसायटी इसके साथ संबद्ध हो गई और बॉम्बे शाखा के रूप में जाना जाता था। 1830 से रॉयल एशियाटिक सोसाइटी  1873 में बॉम्बे जियोग्राफिकल सोसाइटी का विलय हो गया, उसके बाद 1896 में एंथ्रोपोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ बॉम्बे। 1954 में, इसे रॉयल एशियाटिक सोसाइटी से अलग कर दिया गया और एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बॉम्बे का नाम बदल दिया गया।

  

सोसायटी के पुस्तकालय में एक लाख से अधिक किताबें हैं, जिनमें से 15,000 को दुर्लभ और मूल्यवान के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसमें अनमोल कलाकृतियां और फारसी , संस्कृत और प्राकृत में 3,000 से अधिक प्राचीन पांडुलिपियां हैं, जो ज्यादातर कागज पर हैं लेकिन कुछ ताड़ के पत्ते पर हैं। 11,829 सिक्कों के संख्यात्मक संग्रह में कुमारगुप्त I का सोने का सिक्का, एक दुर्लभ सोना मुहूर का अकबर और सिक्के शिवाजी जारी किए गए हैं। इसके मानचित्र संग्रह में 1300 मानचित्र शामिल हैं। सोसाइटी के संग्रह में शामिल हैं। 


...मैंने अक्सर रतन टाटा को फ्लोरा फाउंटेन के इलाके में पैदल चहलकदमी करते देखा है । वे अक्सर यहां फुटपाथ पर बैठे बूट पालिस वालों से प्रेम से बतियाते देखे जाते हैं । ये इलाका हर तरह के खानपान और खरीदारी के लिये बड़ी मौजू जगह । पैदल चलते चलते विंडो शॉपिंग का मज़ा मैँने खूब लिया है । फ़्लोरा फाउंटेन से जहांगीर आर्ट गैलरी तक का यह बाज़ार मेरा पसंददीदा है ।ब्रांडेड सामान और कपड़ों के अच्छे शो रूम है ।... एक शोरूम से आकर्षक कपड़े झांक रहे थे , एक सफारी शूट  अच्छा लगा , दाम पूछा तो 90 रुपये बताया गया । तुरत लिया । 


यहां अच्छी बुकशॉप हैं , लिटरेचर , फैशन , ग्लेमर , हिस्ट्री , ट्रेवल पर अछी किताबें और मैगज़ीन उपलब्ध रहती हैं । मैं यहां से जेंटिलमैन , जी एफ क्यू , सोसाइटी , आनलुकर और बाल ठाकरे के कार्टून्स से सजी मार्मिक जरूर लेता ।मार्मिक से थोड़ा बहुत मराठी जुमले सीखने को मिलते ।...जेंटिलमैन के पेज पलटते हुए एक खूबसूरत लेखक के चेहरे पर मेरी निगाह हमेशा टिक जाती , वे थे शशि थरूर लिए  । लङके लेख वाली मैगज़ीन में जरूर ले लेता । हालांकि  अब काफी बाद अहसास हुआ मैं जिस खूबसूरत चेहरे को झोंक में शशि ठाकुर पढ़ जाता दरअसल वी शशि थरूर हैं । जेंटिलमैन की एक स्टोरी  अभी तक याद है , राजीव ग़ांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कवर स्टोरी बनाई गई थी .. .हू रन्स इंडिया ।


फ़्लोरा फॉण्ट से श्रीवर्षा  की ओर जाते हुए एक खूबसूरत डिपार्टमेंटल  स्टोर है अकबरअलीज़ यहां अक्सर तफरीहन जाता था । कई  बार यहां क्रिकेटर संदीप पाटिल और कई जाने पहचाने चेहरे दिख जाते । 


हमारे कर्वी चित्रकूट के राधेश्याम कौशल अक्सर श्रीवर्षा में आ जाते । ये जानी पहचानी शख्सियत हैं एक बार आप इन्हें  देख लें तो पहचान जाएंगे , कई फिल्मों में ये पहचानी जाने वाली भूमिका में हैं । ये कर्वी के तरौंहा के हैं , काफी समय से यहां हैं , अंधेरी में रहते । याद कीजिये फ़िल्म जानी मेरा नाम का वह दृश्य जिसमें  मंदिर से मूर्ति की चोरी होती है । वहां जो पुजारी की भूमिका हैं वे कौशल जी ही हैं । काल का पहिये घूमे रे भैया , राम कृष्ण हारी वाले गीत में भी ये पहचाने जाते हैं ।...फिल्मों के खून किस्से  बताते हैं , बताते है कि कई प्रोडक्षन हाउस तो ऐसे हैं कि  वहां कोई  भी फ़िल्म बने हमारे लिए कोई न कोई छोटा मोटा रोल लिखा ही जायेगा । आप यहां फिल्मी सर्कल में पंडित जी नाम जाने जाते हैं ।...बातचीत के दौरान फ़िल्म अभिनेता राजकुमार के बारे में चर्चा चल रही थी तो बताने लगे कि बड़े सज्जन और व्यहार कुशल हैं , कहि उनके घर जाओं तो खुद ही दरवाजा खोलते और बाहर तक विदा करने आओ ।साहित्य , संस्कृति के बड़े जानकार और बड़े संयमित जीवनशैली वाले आदमी  हैं । उनके यहां जाओं तो सीधी साधी सामान्य बातें करो , ज्यादा ज्ञान विज्ञानं और लिटरेचर सिनेमा पे बात छेड़ोगे तो फि वे आपका इम्तिहान लेने लगेगें । मैने कहा , मेरे पसंददीदा हैं । बोले , कभी मौका मिला तो ले चलेंगे ।


श्रीवर्षा में आते ही मैंने एक  तगड़ी क्राइम स्टोरी 'पुलिस के संरक्षण में पलते हुए अपराध '  लिखी ।अब्दुररहमान नए नए मुख्यमंत्री बने थे , उनके आते तमाम आपराधिक अड्डों पर धड़पकड़ चली थी ।वे 9 जून 1980 से 12 जनवरी 1982 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। पर सीमेंट घोटाले के आरोपों के कारण उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।


अंतुले तक लोगों का पहुंचना आसान हुआ करता था। वह पहले राज्यसभा और फिर रायगढ़ सीट से दो बार लोकसभा के लिए चुने गए थे। अंतुले के नाम से विवादास्पद बयानों का सिलसिला जारी रहा। एक खास बात यह रही कि अंतुले ने कभी किसी बयान का खंडन नहीं किया। इंदिरा गांधी से निष्ठा की कसम खाने वाले अंतुले की राजीव गांधी से नहीं बनी।


... कमलेश्वर  जी के समय श्रीवर्षा टैबलायड आकर प्रकार में था । अब पत्रिका शेप  में है । पत्रिका सामान्य गति से चल रही है । बम्बई के मराठी भाषी समाज को हिंदी पत्रिका के प्रति आकर्षित करने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है ।


दूरदर्शन मे अपनी नियुक्ति को  ले कर कमलेश्वर जी बताया था कि  इस बात का मुझे खुद भरोसा नहीं था कि क्यों इंदिरा जी मुझे ये जिम्मेदारी देना चाहती हैं. कमलेश्वर जी ने बताया था कि दूरदर्शन के एडीजी पद के लिए इंदिरा सरकार के प्रस्ताव से वो हैरान थे. इस सिलसिले में जब कमलेश्वर जी इंदिरा जी के सामने पहुंचे तो उन्होंने पूछा- "क्या आपको मालूम है कि मैंने ही 'आंधी'लिखी थी?"इंदिरा जी का जवाब था- "हां, पता है."तुरंत ही उन्होंने यह भी कहा- "इसीलिए आपको ये जिम्मेदारी दे रही हूं."इंदिरा जी ने कहा- "ऐसा इसलिए ताकि दूरदर्शन देश का एक निष्पक्ष सूचना माध्यम बन सके."कमलेश्वर ने दूरदर्शन के लिए दो साल तक काम किया ।


...श्रीवर्षा में मैं सीट के बगल में ही पेजमेकर सौदागर बैठते । उनका लेआउट और पेज मैकिंग देखता रहता । एक दिन पूछ बैठा की ये 15 परसेंट और 20 परसेंट स्क्रीन क्या होती है ।  बोले नहीं बताएँगे , देखते रहिये । देखते दिखाए ज्यादा बेहतर जानकारी पाएंगे । वैसे जब पूछ रहे हैं तो 0 परसेंट स्क्रीन मतलब सफेद कागज एयर 100स्क्रीन मतलब एकदम काला कागज । 


यहीं सामने ब्लिट्ज का ऑफिस हैं । वहां जाता तो वहां भी बनते हुए पेज देखता रहता । जाते ही नॉटियाल जी बोलते , अरे आओ आओ तुम्हें ही याद कर रहा था । उनसे ज्ञान लाभ मिलता और कई साथी थे वहां  हमारे उनसे भी गपशप या बकझक होती ।


 वहीं हमारे एक साथी राजेन्द्र शर्मा आते थे । ये अंडमान से हैं । आदि छपते रहए हैं ब्लिट्ज में ।एक दिन बोले कि मेरे काफी लेख अंडमान के ऊपर छप चुके है । इनकी किताब बनवा दो । ...लेख इक्कठा किये रूप रेखा बनाई ।इसी दौरान उप राष्ट्रपति वेंकट रमण जी की एक खबर पर मेरी निगाह पड़ी ।खबर बैंगलूर से थी , वे किसी पुस्तक का विमोचन कर रहे थे । खबर के मुताबिक वे कह रहे थे कि पत्रिकाओं की  तरह किताबों में भी विज्ञापन छापे जाने चाहिए, इससे लेखन प्रकाशन को बड़ी राहत मिलेगी ।... मैंने कहा , लो अब छप जाएगी तुम्हारी किताब । अंडमान के शासन प्रशासन की विभिन्न संस्थाओं के नाम पत्र बनाओ विज्ञापन के लिए और उसके साथ इस खबर की फोटो कॉपी भी लगा दो , कल्याण होगा । कल्याण हो भी गया करीब 45 हजार के विज्ञापन मिल गए । बढ़िया किताब छपी ।


....इसके बाद मैं जबलपुर चला गया... । समय गुजरा ,  इस बीच बम्बई आने पर अधिकारी जी ने ताना मारा , क्या यार लोग लखनऊ , इलाहबाद से बम्बई आते हैं और आप यहां से जबलपुर जा बैठे , आइये सब समेट  कर करंट को पत्रिका बनाना है। ... जबलपुर से लौटते  ही संयोग कुछ ऐसा बना कि बातों बातों में  धर्मयुग में आसन लग गया। ... फिर जल्दी  ही  अधिकारी से किये वायदे और आकर्षण ने करंट में ला खड़ा कर दिया


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