आखिर पुलिस बता क्यों नहीं देती कि उसके संरक्षण में कहाँ कहाँ काम चल रहा है, पत्रकार वहाँ नहीं जाएंगे। पत्रकार पर जितनी जल्दी कार्रवाई पुलिस द्वारा की जाती है उतनी जल्दी को यदि रिकार्ड किया जाए तो पुलिस को तमाम पुरस्कार मिल सकते हैं जबकि बाकी मामलों में लोगों को प्राथमिकी दर्ज कराने में ही पसीना आ जाता है। पत्रकारों के मामले में जांच भी नहीं हो रही है, लगता है कि पुलिस माने बैठी है कि पत्रकारिता से बड़ा कोई अपराध है ही नहीं। पत्रकार को इस तरह जेल भेज देना लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं है। जेल भेजने से बेहतर है कि पुलिस अपना अवैध रेग्यूलेशन वैध करे और पत्रकारों को सूचित कर दे कि अमुक काम अब पुलिस करेगी अथवा सरकार से सिफारिश करे कि पत्रकारिता को समाप्त कर दिया जाए ताकि अधिक से अधिक युवा पुलिस में भर्ती हो सकें।
लगता है कि पत्रकारिता आज दिशाहीन है, पुलिस उसे जेल भेजकर दिशा दे रही है ताकि पत्रकार अपनी दशा को समझ सकें।
बंद होनी चाहिए यह मजाक।
पत्रकार पर सरकारी हमला लोकतंत्र पर हमला है।