बिहार के सृजन में संविधान सभा के प्रथम कार्यकारी अध्यक्ष रहे डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा का वही स्थान है, जो बंगाल के नवजागरण में राजाराम मोहन राय का। प्रेसीडेंसी के अधीन बिहार को अलग राज्य के रूप में पहचान दिलाने में बक्सर के सपूत डॉ. सिन्हा की अहम भूमिका रही। बिहार के सृजन की कहानी भी बहुत दिलचस्प है। जब सन् 1893 में डॉ. सिन्हा इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई पूरी कर वापस वतन लौट रहे थे। जहाज में एक अंग्रेज वकील ने उनसे परिचय पूछा, तब उन्होंने अपना नाम बताते हुए खुद को एक बिहारी बताया। सह यात्री ने अचरज जताते हुए सवाल पूछ दिया- कौन सा बिहार, भारत में इस नाम के किसी प्रांत के बारे में तो उन्होंने नहीं सुना है। यही सवाल डॉ. सिन्हा को दिल में जा लगा और उन्होंने पृथक बिहार गढ़ने का निश्चय किया।
तब बिहार बंगाल का हिस्सा हुआ करता था। बावजूद, सांस्कृतिक रूप से पृथक होने के कारण डॉ. सिन्हा अपना परिचय हमेशा एक बिहारी के रूप में ही देते थे। बिहार को बंगाल से अलग करने की मुहिम को तेज करने के लिए उन्होंने 'द बिहार टाइम्स'के नाम से अंग्रेजी अखबार निकाला। इसके पहले बिहार के पत्रकारों में बंगाली पत्रकारों की संख्या काफी अधिक थी। बंगाली पत्रकार बिहार के हितों की बात तो करते थे, लेकिन बिहार को अलग राज्य का दर्जा देने के खिलाफ थे। डॉ. सिन्हा के इनके प्रयास से गर्वनर जनरल लॉर्ड हार्डिंग ने 22 मार्च 1912 को दिल्ली दरबार में अलग बिहार एवं उड़ीसा प्रांत के गठन की घोषणा की।
डॉ. सिन्हा का जन्म तत्कालीन शाहाबाद (भोजपुर, आरा) और वर्त्तमान के बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत चौंगाईं प्रखंड अंतर्गत मुरार गांव में 10 नवंबर 1871 में हुआ। इनके पिता बख्शी शिव प्रसाद सिन्हा डुमरांव महाराज के मुख्य तहसीलदार थे। प्राथमिक शिक्षा गांव में लेने के बाद जिला स्कूल आरा से डॉ. सिन्हा ने मैट्रिक की परीक्षा पास की। महज अठारह वर्ष की उम्र में 26 दिसंबर 1889 को वे बैरिस्टर की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए। वहां से वापस आकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में दस वर्ष तक प्रैक्टिस की। उन्होंने इंडियन पीपुल्स एवं हिंदुस्तान रिव्यू नामक समाचार पत्रों का कई वर्षों तक संपादन किया। इसी दौरान पत्रकारिता के माध्यम से उन्होंने पृथक बिहार की मुहिम छेड़ी। आजादी से पहले वे बिहार के कानून मंत्री व पटना विश्वविद्यालय में उप कुलपति के पद पर पर भी रहे।
9 दिसम्बर 1946 को जब भारत के लिए संविधान का निर्माण प्रारंभ हुआ तो अनुभव और क़ाबिलयत को नज़र मे रखते हुए डॉ सच्चिदानंद सिन्हा गठित सभा के अध्यक्ष बनाए गए। दुर्भाग्य से जब संविधान की मूल प्रति तैयार हुई तब उनकी तबियत काफ़ी ख़राब हो गई। तब उनके हस्ताक्षर के लिए मूल प्रति को दिल्ली से विशेष विमान से पटना लाया गया, 14 फरवरी 1950 को इन्होंने संविधान की मूल प्रति पर डॉ राजेंद्र प्रासाद के सामने हस्ताक्षर किया। इस समय वो भारत के सबसे बुज़ुर्ग लीडर थे। 6 मार्च 1950 को 79 साल की उम्र मे डॉ सच्चिदानंद सिन्हा साहेब की मृत्यु हो गयी।