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दिल्ली दरबार १८७७

 


सन् १८७६ में महारानी विक्टोरिया ने, ग्रेट ब्रिटेन एवं आयरलैंड की रानी के अतिरिक्त, 'भारत की महारानी'की पदवी ग्रहण की। उनकी ओर से वाइसरॉय लार्ड लिटन को संपूर्ण भारत में इसकी घोषणा करने के लिए कहा गया। इस प्रयोजन से उन्होंने १ जनवरी १८७७ को दिल्ली में एक शाही सभा का आयोजन करने का निर्णय लिया। इस ऐतिहासिक सभा में सभी राज्यपालों, उप-राज्यपालों, शासन प्रमुखों, सत्तारूढ़ सामंतों, राजाओं एवं रईसों को आमंत्रित किया गया। इस समारोह की भव्यता का पता इस बात से चलता है कि इसमें वाइसरॉय ने जितने लोगों के उपस्थित होने का अनुमान लगाया था, उससे भी अधिक लोगों ने समारोह में हिस्सा लिया।


इस सभा का आयोजन खुले मैदान में लगे मंडपों में हुआ T मंडप में आगमन पर वाइसरॉय का शाही सलाम के साथ स्वागत हुआ एवं वे अपने लिए बीच में बनाए गए वाइसरॉय सिंहासन पर बैठ गए। राज्यपाल, शासन प्रमुख, सत्तारूढ़ सामंत, भारतीय मूल के सामंत एवं अन्य उच्च अधिकारी सिंहासन की ओर मुँह करके एक अर्ध-गोलाकार रूप में बैठ गए।


सभा में उद्घोषणा पहले अंग्रेजी और फिर उर्दू में पढ़ी गई और इसके बाद १०१ तोपों की सलामी दी गई। इसके बाद वाइसरॉय ने सभा की संबोधित किया और महारानी की ओर से प्रत्येक राजा को एक स्वर्ण पदक एवं एक पताका प्रदान किया।


स्वर्ण पदक पर एक ओर महारानी की प्रतिमा उत्कीर्ण की गई थी और दूसरी ओर अंग्रेजी, उर्दू एवं हिंदी में एक अभिलेख था जिसमें 'विक्टोरिया भारत की महारानी, १ जनवरी १८७७'लिखा था। पताका पर एक ओर राजाओं के आयुधांक एवं दूसरी ओर एक अभिलेख था जिसमें लिखा था कि यह भारत की महारानी की ओर से एक भेंट है।


इस दरबार में दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए - पहला, प्रिवी काउंसिल का गठन और दूसरा वाइसरॉय एवं अन्य राजाओं के लिए तोपों की सलामी की संख्या।


ब्रिटिश भारत में महामहिम रानी एवं महारानी के लिए एक सौ एक और भारत के वाइसरॉय के लिए ३१ तोपों की सलामी तय थी। भारत के अन्य प्रभावशाली राजाओं को उनके अंग्रेजों के साथ संबंधों के अनुसार २१, १९, १७, १५, एवं ९ तोपों की सलामी दी जाती थी।


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