बलात्कार, जनाक्रोश और दिल्ली पुलिस
इस बार हमने नए साल का जश्न नहीं मनाया. न तो किसी को नए साल के सुखद और मंगलमय होने की शुभकामनाएं दी और नाही इस तरह के संदेशों का जवाब दिया. मैंने ही क्या दिल्ली की समूची पत्रकार बिरादरी ने और प्रेस क्लब आफ इंडिया ने भी राजधानी दिल्ली में पैरा मेडिकल छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार की बर्बर वारदात के शोक और आक्रोश में शामिल होते हुए नए साल के स्वागत के नाम पर होने वाले जश्न, समारोहों से दूर रहने का ही फैसला किया था. कमोबेस पूरी दिल्ली और आसपास के इलाकों में, पांच सितारा होटलों में भी यही आलम था. इसके बजाय हजारों की संख्या में छात्र-युवा, बच्चे, स्त्री-पुरुष जंतर मंतर पर जमा होकर कैंडल मार्च आदि के जरिए उस बहादुर युवती को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ ही इस बात की दुआ करते नजर आए कि नए साल में किसी दामिनी या कहें निर्भया के साथ ऐसा कुछ ना हो जिसके खिलाफ दिल्ली में इंडिया गेट, राजपथ, राष्ट्रपति भवन और जंतर मंतर पर या फिर देश के अन्य हिस्सों में सड़कों पर जनाक्रोश उबलना पड़े. लेकिन अफसोस कि नए साल में भी कोई भी दिन ऐसा नहीं बीत रहा है जिसमें दिल्ली और इससे लगे हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के इलाकों से महिलाओं के साथ बलात्कार, व्यभिचार और उत्पीड़न की घटनाएं मीडिया की सुर्खियां नहीं बन रही हों. इस बीच सामूहिक बलात्कार की इस घटना और उसके खिलाफ उबल पड़े जनाक्रोश से जुडे़ तथ्यों और विभिन्न पहलुओं के परत दर परत उधड़ते जाने के साथ ही दिल्ली पुलिस का एक ऐसा चेहरा उजागर हो रहा है जो न सिर्फ भ्रष्ट, अमानुषिक बल्कि भयावह भी है. दिल्ली में अदालतों की बार बार की झिड़कियों के बावजूद बड़े, संपन्न, प्रभावशाली एवं मन बढ़ू लोगों की कार-बसों में काला शीशा लगाकर चलने पर मनाही का कोई लाक्षणिक असर देखने को नहीं मिलता. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अल्तमश कबीर को भी कहना पड़ा कि अगर बस-कारों में शीशों पर लगी काली फिल्मों को हटाने पर सख्ती से अमल हुआ होता तो सामूहिक बलात्कार की यह वारदात शायद नहीं होती. बलात्कार पीड़ित युवती के साथ बस में सवार उसके मित्र (जो इस जघन्य घटना का चश्मदीद गवाह भी है) का बयान है कि काले शीशों से ढकी बस में वे दोनों डेढ़-दो घंटों तक बर्बर दरिंदों के साथ जूझते, प्रतिरोध करते रहे लेकिन उनकी आवाज बहार किसी ने नहीं सुनी. यही नहीं कंपकंपाती ठंड में नंगा कर बुरी तरह से घायल अवस्था में उन्हें मरने के लिए सड़क पर फेंक दिया गया. सड़क पर भी वे काफी देर तक कांपते-कराहते रहे लेकिन किसी ने भी वहां रुक कर उनका हाल जानने, अस्पताल पहुंचाने की बात तो दूर उनके नंगे शरीर पर कपड़ा ढांकने की जरूरत भी नहीं समझी. पुलिस की गाड़ियां उधर से गुजरीं, रुकीं भी लेकिन यह कह कर आगे बढ़ गईं कि यह मामला उनके इलाके का नहीं है. युवती के दोस्त का साक्षात्कार एक खबरिया चैनल पर प्रसारित हुआ है जिसमें उसने कहा है कि वह कई दिन तक थाने में यों ही पड़ा रहा. किसी ने उसकी सुध नहीं ली. इन सब बातों के सार्वजनिक होने के बाद किसी तरह का प्रायश्चित करने, संबद्ध पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कार्रवाई करने के बजाय दिल्ली पुलिस ने उस टीवी चैनल को ही तलब कर उसके खिलाफ मुकदमा कर दिया जिसने उसका साक्षात्कार दिखाया था. दिल्ली पुलिस का इसी तरह का चेहरा सामूहिक बलात्कार की इस पाशविक घटना के विरुद्ध नई दिल्ली की सड़कों पर उबल पड़े जनाक्रोश के विरुद्ध भी उजागर हुआ. पुलिस ने शांतिपूर्ण-निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर न सिर्फ लाठी, आंसू गैस के गोले, पानी की तेज बौछारें दागीं, इंडिया गेट पर प्रदर्शनकारियों के पीछे दौड़ रहे एक जवान सुभाष तोमर की मौत को हत्या का मामला घोषित कर आठ लोगों के खिलाफ हत्या के प्रयास का मुकदमा दायर उन्हें हिरासत में ले लिया. इनमें से दो भाइयों ने मेट्रो रेल के क्लोज सर्किट टीवी फुटेज से साबित कर दिया कि जिस समय तोमर के साथ ‘घटना’ हुई, दोनों भाई मेट्रो रेल में सफर कर रहे थे. जिस बस में युवती के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ, उसके पास पिछले छह महीनों से कोई वैध परमिट नहीं था. उसके मालिक नोएडा निवासी दिनेश यादव की दर्जनों बसें दिल्ली और एनसीआर में दौड़ती हैं. उनके लाइसेंस-परमिट के लिए दिल्ली में बुराडी का जो पता दिया गया था वह फर्जी था. सामूहिक बलात्कार की घटना और उसके विरोध के बीच भी नई दिल्ली में ही एक क्लस्टर बस में सवार बच्ची से कंडक्टर के साथ चल रहे एक और कंडक्टर ने, जो उस समय ड्यूटी पर नहीं था, दुष्कर्म किया. उसे पकड़ा गया. बाद में उस बच्ची ने बताया कि घर में उसका सौतेला भाई उसके साथ महीनों से जबरन व्यभिचार कर रहा था. दिल्ली में क्लस्टर बसें दिल्ली परिवहन निगम ठेके पर लेकर चलाता है. अधिकतर क्लस्टर बसें उत्तर प्रदेश के शराब माफिया कहे जाते रहे, खरबपति व्यवसाई चड्ढा बंधुओं में से हरदीप की बताई जाती हैं. पिछले दिनों एक फार्म हाउस पर कब्जा जमाने के लिए आपसी गोली बारी में हरदीप और उसके भाई पोंटी चड्ढ़ा की जानें गई थीं. पता चला है कि उनके क्लस्टर बसों के धंधे में दिल्ली सरकार के एक मंत्री की साझेदारी भी है. उनकी बसों को दिल्ली में संचालन का लाइसेंस-परमिट तब मिला था जब वह दिल्ली सरकार में परिवहन मंत्री थे. सामूहिक बलात्कार की इस घटना के विरोध में दिल्ली और देश के विभिन्न हिस्सों में उबल रहे जनाक्रोश का इतना असर तो जरूर हुआ है कि इसकी सुनवाई के लिए त्वरित अदालत गठित की गई है. अपराधियों को समय रहते हिरासत में लेने में सफल पुलिस ने उनके विरुद्ध अभियोगपत्र दाखिल कर दिया है. बलात्कारियों को कठोर दंड के प्रावधान हेतु कानून में संशोधन के सुझाव देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे एस एस वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति ने काम शुरू कर दिया है. दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश उषा मेहरा की अध्यक्षता में एक आयोग अलग से बना है जो इस बात की जांच कर है कि सामूहिक बलात्कार की इस घटना में पुलिस से कहां क्या चूक हुई. दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी के लिए एक विशेष कार्यबल भी गठित किया गया है. इस सब के बावजूद बलात्कार और महिलाओं के साथ अत्याचार-उत्पीड़न की घटनाओं में कमी नहीं आ रही. जैसे बर्बर बलात्कारियों-अपराधियों के मन से पुलिस, कानून और अदालतों का डर ही गायब हो गया हो. दरअसल, बलात्कार की बढ़ती और बर्बर रूप धारण करते जा रही घटनाओं के पीछे सिर्फ कानून और व्यवस्था का ही सवाल नहीं है. सबसे बड़ी समस्या महिलाओं के बारे में हमारे सामाजिक सोच की भी है. इस सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद महिलाओं और उनके साथ हो रही ज्यादतियों के बारे में हमारे राजनीतिकों, समाज के ठेकेदारों के जिस तरह के बयान आए हैं उनका विश्लेषण करने पर औरत के विरुद्ध हमारे पुरुष प्रधान समाज की सोच ही उजागर होती है. अभी ताजा बयान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत का है जिसमें उन्होंने कहा है,‘‘ इस तरह के बलात्कार की घटनाएं 'इंडिया' में होती हैं, 'भारत' में नहीं.’’ हमें नहीं मालूम कि इंडिया और भारत के बारे में उनकी परिभाषा क्या है. अगर उनका इशारा शहरी और ग्रामीण भारत की ओर है तो इतने बड़े सामाजिक-राजनीतिक संगठन को संचालित करने वाले श्री भागवत को शायद यह पता ही नहीं है कि औरत के विरुद्ध इस तरह की बर्बर और पाशविक घटनाएं देश में चहुंओर हो रही हैं. संभव है कि शहरी इलाकों में जिन्हें श्री भागवत ‘इंडिया’ करार देते हैं, इस तरह की ज्यादातर घटनाएं मीडिया के जरिए सामने आ जाती हैं जबकि ग्रामीण इलाकों में आमतौर पर ज्यादातर घटनाएं पुलिस और समाज के ठेकेदारों के द्वारा दबा दी जाती हैं. दूर क्यों जाएं, सामूहिक बलात्कार की इस घटना और इसके विरोध की सुर्खियों के दौरान ही ग्रेटर नोएडा के एक गांव में एक बच्ची के साथ गांव के दबंग युवाओं ने बलात्कार किया. पुलिस उसकी प्राथमिकी तक दर्ज करने को तैयार नहीं हुई. बाद में दबाव बढ़ने और मेडिकल जांच में बलात्कार की पुष्टि के बाद प्राथमिकी तो दर्ज हुई लेकिन फिर गांव की पंचायत ने बलात्कारी युवकों के पिताओं को महज माफी मांग लेने की सजा सुनाकर मामले को रफा दफा- करने की कोशिश की. पंचायत ने बलात्कार पीड़ित युवती और उसके घर वालों पर दबाव बढ़ाया कि वे अब इस मामले में आगे कोई कार्यवाही ना करें अन्यथा उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा. उन्हें तमाम तरह की धमकिया दी गईं. भागवत जी की सुविधा के लिए बता दें कि पंचायत में मुख्य भूमिका निभाने वाले सरपंच भारतीय जनता पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष थे.