एहसास राम चंदर उर्फ़ जुगनू शारदेय
गुमनामी के अंधरो में खो गया एक तीक्ष्ण प्रतिभाशाली पत्रकार लेखक ,समीक्षक", जुगनू शारदेय"
( जुगनू जी के बाल सखा अनिल जी फिलहाल मुंबई में हैं औऱ मेरे अनुरोध पर उनका यह संस्मरण जस का तस पेश हैं )
कल्ह ही मेरे भांजे अनामी शरण बबल ने ,शारदेय के दुःखद मौत की सूचना से सम्बंधित वरिष्ठ पत्रकार ने अपने ब्लॉग में अपने उदगार लिखा था और कई टिप्पणियों से जुगनू शारदेय का पुनः एक नए व्यक्त्व का परिचय मिली ।
हम जिसे बच्चपन का दोस्त सिर्फ रामचन्दर के नाम से ज्यादा परिचित थे ,जिसे नाट्य संगीत के साथ लेखन में विशेष रुचि थी ।
बिहार औरंगाबाद शहर के शाहपुर के संकरी गली में रहता था।प्रिय दोस्तो में प्रिय भी था,उनदिनों बच्चपन के बालपन और चुहलबाजी में अव्वल ।
पटना हमारी मुलाकात ,जहाँ तक मुझे स्मरण है 1983-85 ,में हुई और हमने खुल कर एक दूसरे से हर पहलू पर बात भी ।उनदिनों वे पूरी सक्रियता से अपने लेखन और पत्रकारिता के साथ ,समाजवादी बड़े नेताओं के साथ रहकर समाजसेवा की बात हमे सुनाया ।
हमारे आपसी विचार हमेशा मिलतें रहे,इसी कारण प्रिय दोस्त भी थे ।
बृद्धा आश्रम में मौत की जानकारी सुनकर, हमें भी दुःख के साथ बहुत अफसोस हुआ ।
क्या उसके परिवार में कोई नहीं था?