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एक यादगार मुलाकात ललिता शास्त्री जी से, 1987 / विवेक शुक्ला



नईदिल्ली l लालबहादुर शास्त्री की आज 11 जनवरी को पुण्य तिथि है और याद आ रहा है सन 1987 में किया ललिता शास्त्री जी का किया इंटरव्यू। 34 बरस गुजर गए और लगता है कि मानो कल की ही वो बात हो। मैंने ललिता जी का इंटरव्यू हिन्दुस्तान टाइम्स के सांध्य दैनिक Evening News के लिए किया था। उस दौर का बहुत ब़ड़ा पेपर था Evening News । खूब पढ़ा जाता था।


 Evening News के एडिटर श्री बी.एम.सिन्हा ने मुझ से कहा था कि मैं ललिता जी से मिल लूं। उन्होंने शास्त्री जी और ललिता जी के बड़े पुत्र हरिकिशन शास्त्री का फोन नंबर दिया था ताकि मैं उनसे बात करके ललिता जी से मिल लूं। हरिकिशन जी से बात हुई और उन्होंने अगले ही दिन जनपथ वाले अपने घर में बुला लिया था।


शायद कस्तूरबा गांधी मार्ग से 505 नंबर बस पकड़कर मैं ललिता जी के घर गया था। शास्त्री जी की 1966 में मृत्यु के बाद वह बंगला ललिता जी के नाम पर सरकार ने अलॉट कर दिया था। तय समय पर बंगले पर पहुंचा तो हरिकिशन जी गेट के बाहर मालियों के साथ खड़े थे। वक्त रहा होगा दिन के 11 बजे का। उन्होंने लुंगी और बनियान पहनी हुई थी। उनके मुंह में पान था। वे ललिता जी के कमरे में मुझे ले गए। 


उस कमरे में ललिता जी एक पलंग पर बैठी थीं। कमरे में शास्त्री जी के कई चित्र लगे हुए थे। उनके साथ दो-तीन और महिलाएं भी थीं। सब चाय पी रही थीं। मैंने ललिता जी के चरण स्पर्ण किए। उन्होंने पीठ पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। उनमें मैं अपनी मां को देख रहा था। कोई अपनी मां का क्या इंटरव्यू करेगा।


 हरिकिशन जी मेरी स्थिति को समझ रहे थे। वे कहने लगे, अम्मा से बात कर लो। मैं आता हूं। किसी तरह से ललिता शास्त्री जी से बातचीत शुरू की। शास्त्री जी का जिक्र आना ही था।  ललिता जी कहने लगीं कि सरकार को उनकी मौत से जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक कर देने जाने चाहिए।


 बाद के सालों में शास्त्री जी के दो पुत्र क्रमश: अनिल शास्त्री और सुनील शास्त्री  भी अपने पिता की मौत से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग की थी। वे सवाल करती थीं कि ऐसी कौन सी बात हो गई थी कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अयूब खान उनकी मृत देह को लेकर भारत आए? जिस पाकिस्तानी तानाशाह ने 1965 में भारत पर आक्रमण किया था वो भारत और शास्त्री जी के प्रति इतना उदार क्यों हो गया? 


उस इंटरव्यू में ललिता जी ने कहा था कि ताशकंद जाने से पहले शास्त्री जी पूरी तरह से स्वस्थ थे। तो फिर उन्हें वहां पर अचानक से क्या हो गया कि उनकी जान ही चली गई। वे कहती थी कि आप मेरी बात की पुष्टि के लिए शास्त्री जी के निजी डाक्टर डॉ. आर.के.करौली से भी बात कर सकते हैं। डॉक्टर करौली RML को आधुनिक अस्पताल के रूप में स्थापित किया था! 


 डॉ करौली तब राजधानी के विलिंग्डन अस्पताल ( अब राम मनोहर अस्पताल से जुड़े थे)। वे आजकल राजधानी के फ्रेंड्स कॉलोनी में प्रेक्टिस करते हैं। वे संयोग से मेरे पापा जी के परम मित्र रहे हैं।


लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज से पढ़े हुए डॉ करौली भी कहते हैं कि शास्त्री जी ताशकंद जाने से पहले स्वस्थ थे। मैंने उनके स्वास्थ्य की जांच की थी। उन्होंने बताया कि शास्त्री जी की सेहत पर अस्पताल के चीफ डॉ. चुग भी नजर रखते थे। चुग साहब एक सड़क हादसे में मारे गए थे। डॉ. करौली के बाद के दौर में भी शास्त्री परिवार से संबंध बने रहे।


ललिता शास्त्री कहती थीं कि पति की मौत के बाद वे कभी सामान्य नहीं हो सकी। उस चोट से उनका परिवार कभी उबर ही नहीं सकीं। मेरी  बातचीत समाप्त हुई उन्होंने कहा कि बेटा, खिचड़ी खाकर जाना। जाहिर है, ललिता जी के आदेश को टालने का सवाल ही नहीं था। मैंने ललिता जी और उनकी सहेलियों के साथ खिचड़ी खाई। वो बार-बार पापड़ और अचार भी दे रही थीं।


 इंटरव्यू और खिचड़ी खाने के बाद ललिता जी से विदा लेकर निकला तो बाहर अनिल शास्त्री अपनी नई मारुति कार  में बैठे हुए दिखाई दिए। उनसे छोटी सी बात हुई। गेट के पास  हरिकिशन जी फिर मिल गए। कहने लगे, पान खाओगे। तंबाकू वाला है। मैंने कहा, यह तो नहीं खा सकूंगा। 


© विवेक शुक्ल

Vivekshukladelhi@gmail.com

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