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शोले की अंतर्कथा / पर्दे के पीछे की बातें

 रमेश सिप्पी निर्देशित ‘शोले’ हिन्दी सिनेमा की एक ऐतिहासिक फिल्म है। ‘शोले’ ने सिनेमा निर्माण को नई दिशा दी। फिल्म दो दोस्तों जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेंद्र) की कहानी है जिन्हें ठाकुर (संजीव कुमार) ने डाकू गब्बर सिंह (अमजद) से बदला लेने के लिए रखा था। फिल्म के एक-एक डायलॉग से लेकर सीन तक लोगों को याद हैं। ऐसी यादगार फिल्म बनाने वाले रमेश सिप्पी का 23 जनवरी को  74वां जन्मदिन था। तो उनके जन्मदिन के मौके पर बताते हैं ‘शोले’ के कुछ ऐसे किस्से जिनके बारे में शायद कुछ लोगों को पता हो और शायद कुछ लोगों को नहीं ...


मुंबई के मिनर्वा थियेटर में ‘शोले’ 1975 से 1980 तक लगातार 5 साल तक चलती रही। किसी फ़िल्म को लेकर दर्शकों की दीवानगी किस कदर थी इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है।


फिल्म को सलीम ख़ान और जावेद अख्तर ने लिखा था, जो उस वक्त सलीम-जावेद के नाम से फिल्म लेखन का काम करते थे। इसके लिए उन्हें 10 हजार रुपये दिए गए। 1970 में यह बड़ी रकम होती थी।


फ़िल्म में ठाकुर का किरदार धर्मेंद्र करना चाहते थे। फिल्म की स्क्रिप्ट सुनने के बाद उन्हें लगा इसकी कहानी ठाकुर और गब्बर के इर्द-गिर्द ही है। पर निर्देशक रमेश सिप्पी ने उन्हें बहुत होशियारी के साथ मनाया। रमेश सिप्पी ने धर्मेंद्र को बताया कि अगर संजीव कुमार वीरू का रोल करते हैं तो आखिर में वह हेमा मालिनी के साथ होंगे। उस वक्त धर्मेंद्र और हेमा जी का रोमांस जोरों पर था। और दूसरी ओर संजीव कुमार भी हेमा जी को प्रपोज कर चुके थे। उन्हें हेमा के साथ वक्त बिताने का और मौका मिल जाता।


बहुत कम लोगों को पता होगा कि जय के रोल लिए पहली पसंद शत्रुघ्न सिन्हा थे जिसे बाद में अमिताभ बच्चन ने किया था। सलीम खान ने जय के किरदार के लिए अमिताभ बच्चन का नाम सुझाया था। सलीम खान पहले ही फिल्म ‘जंजीर’ के वक्त अमिताभ बच्चन से मिल चुके थे। वहीं धर्मेंद्र ने भी अमिताभ के नाम की सिफारिश की थी।


फ़िल्म का वह सीन काफी लोकप्रिय हुआ जिसमें जया बच्चन लैम्प बुझाती हैं, और उस समय अमिताभ बच्चन माउथ ऑर्गन बजा रहे होते हैं। उस सीन को शूट करने में 20 दिन लग गए थे। दरअसल 'रमेश सिप्पी'और सिनेमैटोग्राफर 'द्वारका दिवेचा'सीन में सूरज डूबने और रात होने के खास पल को फ़िल्म में दिखाना चाहते थे।


गब्बर का रोल पहले डैनी डेंजोंगपा को अप्रोच किया गया था लेकिन वह उस वक्त अफगानिस्तान में ‘धर्मात्मा’ की शूटिंग रहे थे जिस वजह से उन्होंने फ़िल्म करने से मना कर दिया था।


गब्बर के जिस रोल ने तहलका मचा दिया और आज भी उसके डायलॉग इतने हिट हैं। आपको हैरानी होगी कि फिल्म में गब्बर के केवल 9 सीन हैं।


सलीम खान के पिता पुलिस में थे उन्होंने गब्बर नाम के एक डाकू की कहानी उन्हें सुनाई थी जो कुत्ते पालता था और पुलिस की नाक काट देता था। तो इस तरह गब्बर सिंह का नाम सलीम जी को सुझाई पड़ा।


‘शोले’ उस वक्त की सबसे महंगी फिल्मों में से थी। पहले इसके बजट का अनुमान 1 करोड़ था लेकिन बाद में यह 3 करोड़ तक पहुंच गया।


साभार : लाइव हिन्दुस्तान (श्रीलता)


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