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बेबाक काक / श्याम विहारी श्यामल

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 🌺🌺 छोटे-से शब्द में गुंजायमान आधी सदी और कई ज़माने 🌺🌺 


आप यदि कार्टून-रसिया हैं तो आपसे एक सवाल है- क्या आप हरिश्चंद्र शुक्ल को जानते हैं ? 


दूसरा, काक नाम याद है आपको? 


अधिक संभावना यही है कि प्रथम प्रश्न आपको चक्कर में डाल चुका होगा. द्वितीय से आप चहक उठे होंगे.


लंबे समय तक जनसत्ता और बाद में नवभारत टाइम्स के पन्नों पर दैनिक-पाठकों की नियमित जिज्ञासा के केंद्र रहे विख्यात कार्टूनिस्ट काक जी का आज जन्मदिन है. 


उन्होंने 82 को आज छू लिया ! 


फेसबुक ने ही यह सूचना सुबह दी. पहले तो मैंने उनके वॉल पर जाकर अपनी शुभकामनाएं दर्ज की और उसके बाद उनका संपर्क-नंबर तलाशने लगा. नहीं मिला तो मैसेंजर कॉल का सहारा लिया. सौभाग्य से उन्होंने कॉल रिसीव कर लिया. 


पुन: बधाई निवेदित करते हुए मैने उन्हें नब्बे के दशक के दौरान दिल्ली नभाटा-कार्यालय की एक शाम याद दिलाने की कोशिश की. वह पल, जब अग्रज भारत यायावर को और मुझे प्रसिद्ध कथाकार-मित्र बलराम ने काक जी के कक्ष में पहुंचाया और उनसे हमारा विधिवत परिचय कराया था! नभाटा में ही कार्यरत चित्रकार राजकमल भी तब हमारे साथ थे.


काक जी यह सब स्मरण कर भाव,-विभोर ! 


ढाई दशक से भी पहले की बात ने पल भर में हमारे बीच जैसे चिर परिचित-सी आत्मीयता की चमक उड़ेल दी हो. 


पत्रकारिता, साहित्य से लेकर पुराने मित्र, घर-परिवार और बच्चों की सक्रियता तक, अनेक संदर्भ चर्चा में आए और विस्तार पाते चले गए.


प्रसंगवश मैने उनसे उनके मूल-नाम और मौलिक स्थान के बारे में प्रश्न पूछ दिए. 


यह जानना लगभग आश्चर्य से भर गया कि काक नाम से कोई पौन शताब्दी से रेखा-कला-जगत में छाए काक जी का मूल नाम हरिश्चन्द्र शर्मा है ! मूल रूप से वे उत्तर प्रदेश के ही उन्नाव के रहने वाले हैं, यह जानना तो और भी आह्लादित कर गया. महाप्राण निराला और महान आलोचक डा. रामविलास शर्मा के आसपास का क्षेत्र ! वे अपने पूर्वजों और पुर-क्षेत्र के बारे में विस्तार से बताने लगे. 


उन्होंने मेरी लेखकीय गतिविधियों के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें 'कंथा' ( जयशंकर प्रसाद के जीवन-युग पर केंद्रित मेरा उपन्यास : राजकमल प्रकाशन) के हाल ही छपकर आने की सूचना दी. 


काक जी इस बात पर अत्यंत मुदित और किंचित चकित हुए कि मैने जयशंकर प्रसाद के जीवन-युग को उपन्यास का विषय बनाया ! 


वह 'कंथा'की रचना-प्रक्रिया के बारे में पूछने लगे.  मैं उन्हें दो दशक पूर्व शोध-अनुसंधान व इसका लेखन-कार्य शुरू करने से लेकर छह माह पहले पुस्तक छपकर आ जाने तक के प्रसंग बताता चला गया. 


वह एक-एक शब्द और उसकी ध्वनियां जैसे जज्ब करते चले जा रहे हों ! 


मेरे बच्चों के दिल्ली में होने की सूचना पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की और भविष्य में मुलाकात की झिलमिलाई संभावना ने हमें मिलन-सुख की अग्रिम अनुभूति दी. 


🙏🙏🌺🌺   उन्हें जन्मदिन की पुन: आदरपूर्ण बधाई-शुभकामनाएं  🌺🌺🙏🙏


Kaak Cartoonist


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