आगा खां पैलेस, पुणे-आजादी की लड़ाई का यह मौन गवाह आज भी अपनी भव्य निर्माण कला एवं ऐतिहासिक महत्व को समेटे खड़ा है।
8 अगस्त 1942 को जब भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत हुई तो अंग्रेजों ने 9 अगस्त को गांधी जी को उनकी पत्नी कस्तूरबा और कई अन्य समेत इसी महल में कैद कर लिया। गांधी जी करीब 21 महीने यानी 6 मई 1944 तक यहां कैद रहे। इस दौरान कस्तूरबा और गांधी जी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई का निधन हो गया।
रोचक बात यह है कि इस महल का निर्माण आगा खां तृतीय यानी सुल्तान मोहम्मद शाह ने 1892 में शुरू किया। वे खोजा इस्माइली संप्रदाय के 48वें गुरु थे। मकसद यह था कि सूखे से प्रभावित इस क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिल सके। तब पांच साल में 12 लाख रुपये की लागत से यह महल बना था और एक हजार लोगों को रोजगार मिला। आजादी के बाद 1969 आगा खां के परिजनों ने यह विशाल महल गांधी स्मारक बनाने के लिए सरकार को सौंप दिया।
महल आज गांधी म्यूजियम के रूप में है। भूतल के जिन छह कमरों को जेल के तौर पर इस्तेमाल किया गया था वे आज छह वीथिकाओं में बदल चुके हैं। वीथिका 5 वह कमरा है जहां गांधी जी और बा को रखा गया था। वहां आज भी गांधी जी की कुर्सी, स्टूल और यहां तक कि शीशे का वह गिलास रखा है जो उन्हें बतौर कैदी पानी पीने के लिए दिया गया था। इस कमरे को चार नंबर की वीथिका की दीवार में लगे शीशे से देखा जाता है।
इसी परिसर में गांधी और कस्तूरबा की समाधि भी बनी है। इस जगह पर आकर और आजादी के आदोलन के बारे में जानकर आखें नम हो जाती हैं, सिर स्वत ही आजादी के नायकों के सम्मान में नमन के लिए झुक जाता है।