जन कल्याणकारी विचारों तथा सामग्रियों के संप्रेषण में नई मीडिया की भूमिका
लेखकः मीनाक्षी अरोड़ा और केसर
सूचना संप्रेषण के व्यापक फलक पर नई मीडिया की उम्र बहुत छोटी है। बहुत कम समय में नई मीडिया ने अपनी पहुंच लोगों तक बनाई है। सूचनाओं के बाहुल्य, सूचनाओं के संप्रेषण में नई मीडिया ने एक बहुआयामी, बहुमाध्यमी आयाम प्रदान किया है। हालांकि बहुत सारी सीमाओं, आशंकाओं, मर्यादाओं, स्वतंत्रता और अराजकता के बीच सूचना संप्रेषण की सहज, सुलभ पहुंच सूचना क्रांति का आभास कराती है।
2 सितम्बर 1969 को ले; क्लेंरोक और यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया लोस एंजेलेस की टीम ने इन्टरनेट से पहले अरपानेट को विकसित किया था, जिसकी शुरुआत दो कंप्यूटर को आपस में जोड़कर हुई थी। 2 सितम्बर को इस प्रयोग को एक कंप्यूटर के डाटा को दूसरे कंप्यूटर पर भेजने के लिए किया गया था। इसके बाद सन् 1972 में रे तोमिल्सन नाम के साइंटिस्ट ने ईमेल के कांसेप्ट को पेश किया था और ईमेल एड्रेस के पहचान के लिए @ को चुना था। बाद में 1974 में विंट सर्फ नाम के साइंटिस्ट ने टी.सी.पी / आई.पी संचार प्रोटोकॉल पेश किया था जिससे कई नेटवर्क्स को जोड़ने में मदद मिली और वास्तविक इन्टरनेट का विकास हुआ। बाद में 1993 में डोमेन नेम सिस्टम को चुना गया था जैसे की '.gov','.com','.edu' etc.....
सन् 1988 में इन्टरनेट के इतिहास का एक दिन ऐसा भी रहा जब पहली बार इन्टरनेट वायरस मौरिस ने हजारों कंप्यूटर को इन्फेक्टेड किया था। बाद में 1990 में बेर्नेर्स ली नाम के साइंटिस्ट ने वर्ल्ड वाइड वेब की खोज की, जिसके कारण अलग अलग लोकेशन में फैले संस्थानों को जो़ड़ने में मदद मिली। इसके बाद 1993 में इन्टरनेट के इतिहास में महत्वपूर्ण क्रांति तब आई जब मार्क अन्देर्सन नाम के साइंटिस्ट ने ग्राफिक्स और टेक्स्ट को एक साथ जोड़ने के लिए वेब ब्राउजर को विकसित किया था। 1994 में मार्क अन्देर्सन और उनकी टीम ने कोम्मेरिसिअल वेब ब्राउजर विकसित करने के लिए नेट्स्केप नाम की एक कंपनी बनाई। इसके बाद 1999 में नापेस्टर नाम के साइंटिस्ट ने म्यूजिक फाइल शेयरिंग सिस्टम को विकसित किया था जिसने आगे चलकर म्यूजिक इंडस्ट्री की दुनिया को बदल डाला। 1998 में अमरीकी सरकार ने गूगल कार्पोरेशन की मदद से ‘Domain name guideline to Internet Corporation for Assigned names and Number’ को विकसित किया था। i
क्या देश में इन्टरनेट की पहुँच बढ़ने का सीधा सम्बन्ध देश की विकास गति से हो सकता है ? सुनने में भले ही अटपटा लगे पर यह सच्चाई है जो दिल्ली में इन्टरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के एक अध्ययन में सामने आई है। अभी तक इन सभी के बारे में यह माना जाता था कि इनसे केवल शहरी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा होते हैं पर अब यह बात सामने आई है कि जिन राज्यों में इन्टरनेट और मोबाइल का जितना अधिक फैलाव होगा भविष्य में उसका सीधा लाभ उस राज्य के विकास पर पड़ता हुआ दिखाई देगा। इस अध्ययन के लिए कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार और सामुदायिक सेवाओं को मानक के रूप में चुना गया। यह सही है कि देश में इन सभी क्षेत्रों में विकास करने की असीम संभावनाएं है और जिस तरह से हमारा देश कृषि प्रधान है अगर इस मूलभूत काम को किसी तरह से इससे जोड़ा जा सके तो आने वाले समय में इसका बहुत बड़ा प्रभाव दिखाई देने लगेगा।
नई मीडिया के कुछ बड़े घरानों को याद करना भी जरूरी है। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर दुनिया के स्तर पर रैंकिंग के हिसाब से गूगल (रैंक नं.1), फेसबुक (रैंक नं.2), यू-ट्यूब (रैंक नं.3), याहू (रैंक नं.4), वायडु- चीन का भाषाई सर्च इंजन (रैंक नं.5), विकीपीडिया (रैंक नं.6), विंडोज लाइव (रैंक नं.7), क्यूक्यू.कॉम-प्रश्नोत्तरी साइट (रैंक नं.8), लिंकडीन (रैंक नं.9), अमेजन डॉट कॉम (रैंक नं.10) विश्व में सबसे ज्यादा प्रचलित साइटें हैं।
भारत में सर्वाधिक प्रचलित साइटों में भारतीय रैंकिंग के हिसाब से इंडियाटाइम्स (रैंक नं.8), फ्लिपकार्ट (रैंक नं. 15), नौकरी.कॉम (रैंक नं. 19), आईआरसीटीसी (रैंक नं. 20), शादी.कॉम (रैंक नं.28), क्विकर.कॉम (रैंक नं.41), वन इंडिया.इन (रैंक नं.53), सुलेखा.कॉम (रैंक नं.57), ईएसपीएन क्रीक इंफो (रैंक नं.63), और दैनिक भास्कर (रैंक नं. 67) पर उपस्थित है।
विज्ञान के विभिन्न आयामों पर फीचर, तकनीक के मामले में दुनिया के स्तर पर रैंकिंग के हिसाब से सबसे चर्चित वेबसाइटों में साइंसडेली (रैंक नं.2), लाइव साइंस (रैंक नं.5), गार्डियन का साइंस व्यूज (रैंक नं.7), नेचर.कॉम (रैंक नं.10), अर्थस्काई (रैंक नं.13), न्यूयार्क टाइम्स का साइंस व्यूज (रैंक नं.18), इसाइंस न्यूज.कॉम (रैंक नं.25), साइंसलिंक्स जापान (रैंक नं.41), न्यू साइंटिस्ट (रैंक नं.46), द वीक इन साइंस (रैंक नं.50) हैं।
पर्यावरण के क्षेत्र में वैज्ञानिक संप्रेषण और सोशल नेटवर्किंग के क्षेत्र में दुनिया के स्तर पर रैंकिंग के हिसाब से कुछ चर्चित वेबसाइटें हैं केयर2.कॉम (रैंक नं.2), मदर नेचर नेटवर्क (रैंक नं.4), गार्डियन का इंवायरमेंट व्यूज (रैंक नं.7), ग्रीस्ट मैगजीन (रैंक नं.9), रायल्स सोसाइटी फॉर दि प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स (रैंक नं.25), इंवायरोलिंक (रैंक नं.32), द इंवायरोमेंटल मैगजीन (रैंक नं.38), इंडीपेंडेंट इंवायरमेंट (रैंक नं.44), वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी (रैंक नं.51), इंवायरमेंटल न्यूज नेटवर्क (रैंक नं.64)।
उपर्लिखित सभी साइटों के पाठक/यूजर सामान्यत: मासिक रूप से एक करोड़ से ज्यादा हैं।
पानी-पर्यावरण के क्षेत्र में भारत में कई साइटें हैं। इंडिया वाटर पोर्टल (रैंक नं.1), इंडियाइंवायरमेंट पोर्टल (रैंक नं.2), डाउन टू अर्थ (रैंक नं.3)। हिंदी भाषा में हालांकि कुछ ब्लॉग और वेबसाइटें जरूर हैं। पर सामग्री के मामले में अभी वे काफी कमजोर हैं। उनमें कुछ प्रमुख हैं। हिंदी इंडिया वाटर पोर्टल (रैंक नं.1), पर्यावरण डाइजेस्ट (रैंक नं.2), पर्यानाद आदि।
पाठक भी यूजर भी, बहुआयामी भूमिका
प्रिंट और टीवी मीडिया में आदमी पाठक या दर्शक होता है। पर वेब मीडिया में कई भूमिकाओं में हो सकता है। अगर न्यूज साइट देख रहा है, तो वह पाठक हो सकता है; अगर यू-ट्यूब साइट देख रहा हो तो दर्शक हो सकता है; अगर कोई पॉडकॉस्ट साइट पर होगा तो रेडियो के मजे लेता श्रोता हो सकता है; और यदि फेसबुक या ट्वीटर जैसी किसी साइट पर होगा तो माइक्रोब्लॉगिंग करता हुआ वह यूजर हो सकता है।
याहू ऐंसर जैसी साइट पर वह अपनी उत्कंठाओं के बारे में प्रश्न पूछ सकता है। या विकीपीडिया जैसी साइट पर वह एक विद्वान लेखक हो सकता है। अपनी वर्चुअल यूनिवर्सिटी इंटरनेट पर खड़ा कर सकता है।
जरूरत के हिसाब से इंटरनेट सूचनाओं के संप्रेषण का नया रूप ग्रहण करता है। बहुरूपिया इंटरनेट मनोरंजन और सहूलियत के लिए कई-कई भूमिकाएं निभाता है।
टेक्सट नहीं अब हाइपर टेक्सट
वेब की दुनिया में टेक्सट अब सामान्य टेक्सट नहीं रह गए हैं। कई बड़े लेखकों के मुंह से सुना है कि वो एक-एक शब्द सोच-समझकर लिखते हैं। एक-एक शब्द के गहरे अर्थ होते हैं।
यानी एक-एक शब्द की गागर में अर्थों का सागर भरा जा सकता है। वेब की दुनिया में टेक्सट अब हाइपर टेक्सट हो गए हैं। शब्दों की गागर में सिर्फ सागर ही नहीं महासागर भरा जा सकता है। और वह भी केवल अर्थों के संदर्भ में ही नहीं बल्कि सूचना, प्रयोग, चित्र, फिल्म और यहां तक कि लाखों पेज की कोई वेबसाइट भी।
इन्टरनेट पर टिकट, फोनिंग ...........
घंटों रेलवे टिकट के लाइन में लगकर टिकट लेने के बजाय इंटरनेट से टिकट लेना मजेदार होता है। मंहगे इंटरनेशनल टेलिफोन कॉलिंग के बजाय स्काईप पर फ्री में बात करना सुकून देता है। दर-दर भटकने के बावजूद भी सही इलेक्ट्रानिक गैजेट्स की तुलनात्मक अध्ययन की बजाय फ्लिपकार्ट पर एक दूसरे गैजेट्स की तुलनात्मक अध्ययन करके खरीदना राहत देता है।
किसी पुराने गायक का कोई गाना ढूंढना रेगिस्तान में सूई खोजने के बराबर ही है। पर गूगल या विंग पर मिनटों में पा जाना आनंद देता है। डाक विभाग के मनीऑर्डर सिस्टम से मुंबई से बलिया पैसा भेजना महीनों का काम है और मिले, न मिले इसकी कोई गारंटी नहीं पर इंटरनेट से ट्रांजेक्शन आपके बात करते-करते हो जाता है।
आजकल इन्टरनेट के बिना दुनिया अधूरी सी है। आदमी की जरूरत को इंटरनेट भांप लेता है। उसी के आधार पर अपने यहां कोई न कोई तकनीक ईजाद कर लेता है इसीलिए आदमी की जरूरत बनता जा रहा है।
समस्या नहीं समाधान का हिस्सा
वैसे तो वेब मीडिया ने कई समस्याओं को भी जन्म दिया है। निष्क्रिय रूप से लगातार कम्प्यूटर पर बैठे रहना शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की बीमारियां पैदा कर रहा है। वेब मीडिया ऐसी मायालोक रचती है कि लोग भूलोक के बजाय वर्चुअल लोक में विचरण करने लगते हैं। अश्लील, रद्दी, कॉपीपेस्ट, भाषा आदि की समस्याएं वेब मीडिया के लिए बड़ी चुनौतियां हैं। बावजूद इसके समाधानों की फेहरिस्त काफी लंबी है;
डिजि क्लास बनाम विद्यालय
यू-ट्यूब नया क्लास रूम बनता जा रहा है और ऐसा ही एक केस है अमेरिकी एजुकेशन गुरू सलमान खान का। भास्कर में छपे अपने एक लेख में कायला वेबली बता रही हैं -
अमेरिका में ईस्ट पालो आल्टो, केलिफोर्निया के एक स्कूल में पांचवीं ग्रेड के बच्चे अपनी डेस्क पर नेट बुक लेकर बैठे हैं। शिक्षक उन्हें गणित के एक सवाल की बारीकियां समझा रहे हैं। उधर, सात हजार मील दूर अकरा, घाना में अफ्रीकी स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के छात्र भी गणित पढ़ रहे हैं। उनके शिक्षक वे ही हैं जो केलिफोर्निया में गणित के टिप्स दे रहे हैं। छात्रों के दोनों समूह ऑनलाइन वीडियो देखकर पढ़ते हैं। स्क्रीन पर गुणा भाग और डायग्राम दिखते हैं पर लेक्चरर का चेहरा नहीं दिखता है। केवल एक धीर-गंभीर आवाज सुनाई पड़ती है।
यह आवाज है, 35 वर्षीय सलमान खान की। वे पहले हेज फंड मैनेजर थे। अब दुनिया भर में लाखों लोगों को यू ट्यूब पर पढ़ाते हैं। खान अकादमी के ऑनलाइन संग्रह में 3250 डिजिटल वीडियो हैं। टेक्नॉलॉजी के महारथियों, शिक्षाविदों और हाईस्कूल छात्रों के लिए वे किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं हैं। क्रेब्स साइकिल (साइट्रिक एसिड साइकिल) और सैल मेटाबॉलिज्म (ऊतकों के चयापचय) पर उनके 18 मिनट के लेक्चर को छह लाख पछत्तर हजार बार देखा जा चुका है।
बाहर हो जाएंगी किताबें
वैसे, शिक्षा व्यवस्था में सुधार करना बेहद कठिन है। पढ़ाई की टेक्नोलॉजी केन्द्रित एप्रोच को लेकर हर स्तर पर संदेह जताया जाता है। रिसर्च फर्म गार्टनर के अनुसार अमेरिका में पिछले साल शिक्षा की टेक्नोलॉजी पर 3. 61 लाख करोड़ रुपए खर्च किए गए। फिर भी कई विद्वानों का मानना है, इससे फायदा होने के ठोस प्रमाण नहीं हैं। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में थामस अल्वा ने भविष्यवाणी की थी, ''स्कूलों से किताबें जल्द ही बाहर हो जाएंगी। छात्रों को दृश्यों के जरिए पढ़ाया जाएगा''। 1920 में रेडियो से पढ़ाई होने लगी थी।1990 के दशक में कंप्यूटरों ने दस्तक दे दी। 1984 में अमेरिकी पब्लिक स्कूलों में प्रति 92 छात्रों पर एक कंप्यूटर था। 2008 में हर 3.1 छात्र पर एक का अनुपात हो गया।
क्लिक करो, पढ़ो और सीखो
इधर, माउंटेन व्यू केलिफ. में चाय की दुकान के ऊपर एक दफ्तर में सलमान खान अपने ऑनलाइन श्रोताओं के लिए नया ले तैयार करने जा रहे हैं। उनका दफ्तर ही क्लासरूम है। उसमें पाठ्यपुस्तकें और उपन्यास भरे पड़े हैं। उनका चाकबोर्ड काले रंग का वैकॉम कंप्यूटर टेबलेट है। यह टेलीफोन के पुराने खंभों से निर्मित डेस्क पर रखा है। वे खान अकादमी के वीडियो की पहचान बन चुके रंगीन डायग्राम और इक्वेशन, टेबलेट पर खींचते हैं। आज का पहला पाठ मेक्रोइकॉनॉमिक्स पर उनकी सीरिज का हिस्सा है। इसमें मार्केट में उतार-चढ़ाव के दौरान मानवीय भावनाओं के आशा से निराशा के बीच झूलने, फिर दहशत छाने और अंत में राहत मिलने पर चर्चा शामिल है। खान दो मिनट तक गूगल पर रिसर्च करते हैं। कुछ ग्राफ खोजते हैं। इकॉनॉमिक्स की एक किताब के चंद पन्ने पलटते हैं। फिर बटन दबाकर रिकॉर्डिंग शुरू कर देते हैं। वे स्क्रीन पर बिजनेस चक्र का स्कैच बनाते हैं। साथ में माइक्रोफोन पर लेक्चर चलता है।
सब कुछ मुफ्त
खान का मेक्रोइकॉनॉमिक्स का वीडियो कॉलेज छात्रों के लिए है। उनकी पाठशाला में एस्ट्रोनॉमी, केमिस्ट्री, कंप्यूटर साइंस से लेकर सब कुछ है। खान के लेक्चर ऑनलाइन हर किसी के लिए मुफ्त में उपलब्ध हैं। बहरहाल, वे इससे आगे बढ़कर सोच रहे हैं। उनका विचार है, छात्रों को आयु के हिसाब से ग्रेड, क्लास में बांटने की जरूरत नहीं है। वे इसके बजाय अपनी मर्जी से पढ़ें। पिछले पाठ को पूरी तरह समझने के बाद ही दूसरे पाठ को हाथ में लें। वे वीडियो पर होमवर्क करें। फिर क्लास में जाकर सबके सामने पढ़ाई का ब्योरा पेश करें। इस प्रक्रिया में शिक्षक को क्लास में लेक्चर देने की जरूरत नहीं रहेगी। उनकी भूमिका गाइड के समान होगी। वे लेक्चर देने की बजाय छात्र पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान केन्द्रित करेंगे। iii
जनकल्याणकारी विचारों का संप्रेषण.....
हमने जाना कि कैसे इंटरनेट ने रोजमर्रा के जीवन में प्रवेश करके उसे न केवल सरल बना दिया है बल्कि समय की भी बहुत बचत की है। जिन कामों को करने में कईं दिन लगते थे अब वही एक क्लिक मात्र से हो जाते हैं।
रोजमर्रा के जीवन को सरल बनाने के साथ साथ इंटरनेट ने जनकल्याणकारी विचारों के संप्रेषण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज के समय की मुख्य समस्या हवा और पानी की आजादी की है। हमारा पर्यावरण दिन ब दिन इतना दूषित होता जा रहा है कि न तो सांस लेने के लिये शुद्ध हवा है और न ही पीने के लिये साफ पानी। हमारे जल स्रोत क्यों और कहां गुम हो रहे हैं? कहां जा रहा है हमारा पानी? क्यों दूषित हो रहे हैं जल स्रोत? क्यों जहरीली हो गई हैं हवाएं? जैसे बहुत सारे सवाल हमारे सामने आ खड़े हुए हैं। हमें पता नहीं हैं इनके समाधान के लिये कहां जाएं, क्या करें?
ऐसे में इंटरनेट ने सूचना क्रांति के लिये दरवाजे खोल दिये। ज्ञान अब एक दिमाग तक सीमित नहीं रहा। गांव ग्लोबल विलेज हो गए हैं। हमारे सवालों के समाधान इंटरनेट पर मौजूद हैं जरूरत है उनको जीवन में अपनाने की। सामाजिक सरोकारों का संप्रेषण करती ऐसी ही एक भारतीय वेबसाइट है हिंदी इंडिया वाटर पोर्टल। जिसने इंटरनेट की दुनिया में न केवल भाषाई चुनौतियों को पार किया है बल्कि पानी और पर्यावरण के मुद्दों पर हिंदी भाषा में सबसे बड़ा ज्ञानकोष भी बन गई है। इस वेबसाइट पर पानी के विभिन्न आयामों पर विभिन्न विद्वानों के विचारों के अतिरिक्त सौ वर्षों का मौसम विज्ञान डाटा भी उपलब्ध है। दो सौ से अधिक वीडियो और विषय को बेहतर और आसानी से समझाने के लिये सरल प्रेजेन्टेशन भी यहां उपलब्ध कराए गए हैं। इसकी सामग्री पर कोई कॉपीराइट नहीं रखा गया है। निःशुल्क कोई भी डाउनलोड कर सकता है, इस्तेमाल कर सकता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह वेबसाइट एकतरफा ज्ञान थोपती नहीं है बल्कि मत-प्रतिमत को भी स्थान देती है।
जल बचाने की विभिन्न तकनीकों के अलावा यहां जल संग्रहण की तकनीकें भी बताई गई हैं। जल गुणवत्ता कैसे बनाई रखी जाए और विभिन्न जल संबंझी समस्याओं से कैसे उबरा जाए आदि...सामाजिक सरोकार की जानकारी के संप्रेषण का काम यह वेबसाइट बाखूबी कर रही है।
इंटरनेट ने सिर्फ संप्रेषण का ही काम नहीं किया है बल्कि संकट की घड़ी में, विभिन्न नीतियों के संबंध में जनमत जुटाने और लोगों को एक करने का काम भी किया है। गंगा का आंदोलन हो या फिर अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार को लेकर आंदोलन हो यह नई मीडिया ही थी जिसने इन आंदोलनों को भारत से निकालकर अमरीका, लंदन जैसे देशों तक पहुंचा दिया था।
नई मीडिया की इस जनमत संग्रह और लोगों को एकजुट करने की इस भूमिका को दरकिनार नहीं किया जा सकता। यह सही है विज्ञान वरदान ही है। वैज्ञानिक सोच हो तो, सही दिशा होगी ही। रास्ता लंबा है निश्चित ही, पर नई मीडिया के द्वारा सूचना और ज्ञान के संप्रेषण के क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है। जन कल्याणकारी विचारों तथा सामाजिक सरोकारों वाली सामग्रियों के संप्रेषण के हर मंत्र को संबोधित कर रही है नई मीडिया।
स्रोत -
[1]परी कथाओं जैसा रोमांचक रहा है इन्टरनेट का सफर (इन्टरनेट के ४० साल), मनोज बिजनौरी, 20 नवम्बर 2009, साइंस ब्लॉगर एसोशिएशन
[2]परी कथाओं जैसा रोमांचक रहा है इन्टरनेट का सफर (इन्टरनेट ने ४० साल), मनोज बिजनौरी, 20 नवम्बर 2009, साइंस ब्लॉगर एशोशिएशन
[3]दुनिया के 20 हज़ार लोग अटेंड करते हैं सलमान खान की यह क्लास, कायला वेबली, 15 जुलाई 2012, दैनिक भास्कर