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बलिया के पत्रकारों के हौसले के सामने लुटियंस और महानगर के तमाम पत्रकार पस्त

 बलिया के पत्रकारों ने लुटियंस और महानगरीय पत्रकारिता को आईना दिखा दिया..!


० 28 दिन बाद आज जमानत पर रिहा हुए तीनों पत्रकार.बोले- हम लडेंगे.

० 30 अप्रैल को यथावत रहेगा जेल भरो आंदोलन


"ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने,

 लम्हों ने खता की थी सदियों ने सज़ा पाई"


@ डॉ अरविंद सिंह

28 दिन के बाद आज सुबह 10 बजे एक तरफ सूरज सिर पर चढ़ आग उगलते जा रहा था, दूसरी तरफ पूरब की खांटी माटी आजमगढ़ के मंडलीय कारागार का फाटक खुलने का बड़ी शिद्दत से इन्तजार हो रहा था. दो दर्जन से ऊपर आजमगढ़ और बलिया के पत्रकारों का जत्था इटौरा स्थित कारागार के मुख्य द्वार पर अपने जिन नायकों का पलक पांवडे बिछा बेसब्री से इंतजार कर रहा था. 

दरअसल वे पत्रकार, कोई मामूली पत्रकार नहीं थे और हैं बल्कि हमारे दौर की पत्रकारिता के नायकों में अपने हिम्मत और दिलेरी से शुमार हो चुके आंचलिक चेतना के फौलादी किरदार थे(हैं),जिन्हें कलेक्टर बहादुर की नकल विहीन व्यवस्था का सच लिखने की सज़ा मिली थी, और जिन पर सिस्टम को नंगा करने का अपराध चलाया गया था. 

बावजूद बलिया का कलेक्टर बहादुर और कप्तान आज 28 दिन बितते-बितते खुद नंगे हो गयें. सिस्टम बैकफुट पर हो गया और देशभर के पत्रकारों के आंदोलन की तपिश और बागी बलिया के तेवर के आगे बेहद आक्रामक रहा जिला प्रशासन, खुद रक्षात्मक मुद्रा में आ गया. 

योगीराज ने माध्यमिक शिक्षा के निदेशक को निलंबित कर दिया और पत्रकारों के खिलाफ संज्ञेय धाराओं में मुकदमा लिखवाने वाले, भीषण जन आंदोलन और जन दबाव के आगे घुटने टेक दिये और गंभीर धाराओं को स्वयं खत्म कराने में लग गयें. तीन अलग-अलग थानों में पत्रकारों को अपराधी बना मुकदमा पंजीकृत कराने वालों ने, अपनी हेकड़ी भूला, विवेचकों पर इतना दबाव बनाया कि- उन्होंने गंभीर धाराओं 420, 471, 467 आदि को समाप्त कर जमानत की जमीन तैयार कर दी. कल 25 अप्रैल को बलिया के जिला जज ने जमानत मंजूर कर दिया था, जिनकी आज रिहाई थी.

 जिन तीन ख़बरनवीशों दिग्विजय सिंह, अजित ओझा और मनोज गुप्ता को पेपर आउट का समाचार छापने की सज़ा देकर संज्ञेय धाराओं में जेल भेजा गया था , कल न्यायालय ने रिहा करने का फैसला सुना दिया.

  सुबह जेल का फाटक जैसे खुला, एक के बाद एक अदम्य उत्साह और ज़ज्बात से लबरेज़ यह त्रिमूर्ति निकल रही थी. पहली बार जब जेल में इनसे मिलने गया था, तो उनमें से एक नौजवान की आंखों में पानी था, तो दूसरे में बेबसी. लेकिन जिस इस्पाती ख़बरनवीश ने बलिया की नकल विहीन परीक्षा व्यवस्था के दावे को अनावृत कर गिरफ्तारी के समय  नारा दिया था- 

'डीएम एसपी चोर हैं..  कलेक्टर नकलखोर हैं.. !' 

वह पत्रकार पाषाण सा गंभीर बना रहा. मानो आत्मविश्वास और ईमानदारी की ताकत ने जेल की ऊंची दीवारों में भी हिम्मत नहीं खोने दिया हो, 

जिस दिग्विजय सिंह का वीडियो सोशल मीडिया पर इतना तेजी से वायरल हुआ, उनके आत्मविश्वास को नमन करने का मन हुआ.उनकि यह वीडियो देश की बाउड्री क्रास कर लोगों के दिलों दिमाग में नाचने लगा. अभिव्यक्ति की आज़ादी पर खतरा और जनतंत्र की जड़ों में मट्ठा डालने वाले जिला प्रशासन के खिलाफ आक्रोश उबाल मारने लगा, बलिया में अभूतपूर्व बंदी और पूर्वांचल में जनाक्रोश फैलता गया. आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, सोनभद्र, वाराणसी, मिर्जापुर, लखनऊ में गिरफ्तारी के विरोध में ज्ञापनों का अंतहीन सिलसिला चल पड़ा. आजमगढ़ में जर्नलिस्ट क्लब ने पहले दिन ही आपात बैठक बुला मामले को प्रेस कांउसिल आफ इंडिया के सदस्य के संज्ञान में लाया. और इस लड़ाई को लड़ने का प्रण लिया.

जेल से छूटने के बाद इन पत्रकारों का माल्यार्पण कर सम्मान किया गया. किसी नायक के मानिंद उन्हें सम्मान दिया गया, मानों उन्होंने केवल बलिया प्रशासन को घुटने टेकने पर मजबूर नहीं किया बल्कि हमारे समय की पत्रकारिता को भी आईना  दिखा दिया कि पत्रकारिता की लड़ाई बड़े कार्पोरेट मीडिया संस्थान और लुटियंस मीडिया नहीं लड़ सकती है, बल्कि कस्बाई, भाषाई, और आंचलिक पत्रकारिता ही सत्ता के सामने तन कर खड़ी हो सकती है. जिसकी रीढ आज भी लुटियंस मीडिया से ज्यादा मजबूत और फौलादी है. अभी लड़ाई यहीं नहीं खत्म हुई है बल्कि कलेक्टर और कप्तान के विरुद्ध कार्रवाई होने तक जारी रहेगी. इसी क्रम में 30 अप्रैल को जेल भरो आंदोलन का आह्वान बलिया ने किया, तबतक योगीराज कलेक्टर और कप्तान के विरुद्ध कार्रवाई करता है या नहीं यह देखने वाली बात है. फिलहाल बलिया प्रशासन, बलिया के बागीपन  से बैकफुट पर है. अगर अब भी देश की मुख्य धारा की पत्रकारिता नही चेती तो उसका हस्र बहुत बुरा होने वाला.


(लेखक शार्प रिपोर्टर का संपादक और जर्नलिस्ट क्लब का संयोजक है)

अफ़लातून अफलू

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