प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
विभाजन पूर्व देश के बहुत बड़े धन्नासेठ थे गंगाराम। मूलतः वह एक सिविल इंजीनियर व आर्किटेक्ट थे।वो इतने बड़े धन्नासेठ थे कि लाहौर का हाईकोर्ट, लाहौर का सबसे बड़ा अस्पताल, लाहौर का आर्ट्स कॉलेज, लाहौर का म्यूजियम, लाहौर का सबसे बड़ा कॉलेज एचिसन कॉलेज और केवल लाहौर नहीं बल्कि पाकिस्तान में मानसिक रोगियों का सबसे बड़ा अस्पताल फाउंटेन हॉउस भी धन्नासेठ गंगाराम ने अपने धन से ही बनवाया था। उनके द्वारा बनवाए गए उपरोक्त संस्थानों का भरपूर लाभ लाहौर समेत पाकिस्तान वाले पंजाब अर्थात आधे से अधिक पाकिस्तान के नागरिक आज भी ले रहे हैं। गंगाराम तो बिचारे 1926 में ही मर गए थे। लेकिन 1947 में जब भारत विभाजित हुआ तो लाहौर के शांतिप्रिय सेक्युलर समाज ने गंगाराम को उनकी मौत के 21 बरस बाद भी बख्शा नहीं। पाकिस्तान बनते ही सेक्युलर समाज की भीड़ ने लाहौर के मॉल रोड पर लगी हुई गंगाराम की मूर्ति को घेर कर उस पर अंधाधुंध लाठियां बरसाते हुए मूर्ति को बुरी तरह क्षत विक्षत कर दिया। लेकिन उस भीड़ की गंगा जमुनी तहजीब और सेक्युलरिज्म की आग फिर भी ठंढी नहीं हुई तो उसने गंगाराम की मूर्ति पर जमकर कालिख पोती और मूर्ति को फ़टे पुराने जूतों की माला पहना कर अपने सेक्युलरिज्म की आग को भीड़ ने ठंढा किया।
1947 के धार्मिक दंगों के दौरान घटी उपरोक्त घटना का जिक्र उर्दू के मशहूर साहित्यकार सआदत हसनi मंटो ने अपनी बहुचर्चित लघुकथा "गारलैंड"में कुछ इस तरह किया है... "हुजूम ने रुख़ बदला और सर गंगाराम के बुत पर पिल पड़ा। लाठीयां बरसाई गईं, ईंटें और पत्थर फेंके गए। एक ने मुँह पर तारकोल मल दिया। दूसरे ने बहुत से पुराने जूते जमा किए और उन का हार बना कर बुत के गले में डाल दिया। तब तक वहां पुलिस आ गई और गोलियां चलना शुरू हुईं। बुत को जूतों का हार पहनाने वाला जखम हो गया। चुनांचे मरहम पट्टी के लिए उसे सर गंगाराम हस्पताल भेज दिया गया।"
केवल गंगाराम ही नहीं, लाहौर में अपनी पत्नी के नाम से पाकिस्तान का सबसे बड़ा चेस्ट हॉस्पिटल, गुलाब देवी चेस्ट हॉस्पिटल बनवाने वाले लाला लाजपत राय की मूर्ति के साथ भी यही व्यवहार किया गया और उसे उखाड़ कर फेंक दिया गया। हालांकि लाला जी की मृत्यु 19 साल पहले 1926 में ही हो चुकी थी।
तथाकथित "गंगा जमुनी"तहजीब और सेक्युलरिज्म का डांस करने वाले मीडिया का कोई सेक्युलर डांसर क्योंकि आपको धन्नासेठ गंगाराम औऱ लाला लाजपत राय जी की उपरोक्त कहानी कभी नहीं सुनाएगा बताएगा। इसलिए आवश्यक है कि इस कहानी को हम आप जन जन तक पहुंचाएं और उन्हें बताएं कि अपनी "गंगा जमुनी"तहजीब और "सेक्युलरिज्म"की भयानक आग से बंगाल को जलाकर राख करने पर उतारू शांतिप्रिय सेक्युलर नागरिक कितने अहसानफरामोश कितने कमीने, कितने कृतघ्न और कितने जहरीले होते हैं। इसका एहसास सिर्फ कश्मीर से मारे गए हिंदू ही कर पा रहे हैं बाकी लोग तो मस्त सो रहे हैं
अंत में यह उल्लेख अवश्य कर दूं कि #दिल्ली_स्थित_सर_गंगाराम_हॉस्पिटल भी लाहौर के उन्हीं धन्नासेठ गंगाराम ने ही बनवाया था।
सच को पहचाने समझे और एहसास करें कि आप हजारों साल गुलाम क्यों रहे?