गुजरात में एक युवती के अपने आप से विवाह की घटना सामाजिक बदलाव की ओर इशारा तो करती है, लेकिन विवाह संस्था पर पुनर्विचार की ज़रूरत को भी उजागर करती है। उभयलिंगी लड़के-लड़की के लिए यह एक प्रकार की दैहिक और मानसिक विवशता हो सकती है। पर आज अनेक सामान्य लड़कियाँ भी अगर विवाह नहीं करना चाहती हैं, तो इसके कारण सामाजिक हो सकते हैं। पारंपरिक समाज स्वीकार करे या न करे, सोलोगेमी (एकल या एकाकी या स्व या आत्म विवाह) उसकी दो अलग व्यक्तियों के विवाह की धारणा को चुनौती दे रहा है। यह भी देखना होगा कि ऐसे विवाह की कानूनी वैधता क्या है। यह विवाह विवाह है भी या नहीं? और भी बहुतेरे सवाल हो सकते हैं इस तरह के चलन के प्रभाव को लेकर। पूछा जा सकता है कि इसे वास्तव में विवाह कहा जाएगा या सनक या फैशन!
एक नज़रिया यह भी है कि अपने लिए एकल जीवन चुनना किसी लड़के या लड़की की निजी आज़ादी भी हो सकती है न। समाज या कानून को इससे कुछ भी दिक्कत क्यों होनी चाहिए? किसी उभयलिंगी व्यक्ति को अगर इस तरह विवाह-सुख मिलता है, तो उसे इस खुशी से क्यों वंचित किया जाना चाहिए? लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आत्म विवाह की यह प्रवृत्ति यदि 'आत्म रति'का विस्तार है, तो इसे असामान्य मानसिक विकार या मनो ग्रंथि ही माना जाएगा। कहीं यह कुछ वैसा ही तो नहीं है जैसे कि कोई पुरुष खुद को परमात्मा की प्रेमिका मान कर महिलाओं का परिधान और शृंगार धारण करने लगे!
याद रहे कि गुजरात की इस युवती क्षमा बिंदु ने कहा है कि उसे दुलहन बनना पसंद है, पर किसी दूसरे व्यक्ति से शादी करना नहीं। उसकी यह आत्म स्वीकृति विचारणीय है कि 'लोग ऐसे किसी इनसान से शादी करते हैं, जिससे प्यार करते हों। मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ, इसलिए ख़ुद से शादी कर रही हूँ।'अब यह तो मनोवैज्ञानिक ही बता सकते हैं कि इस तरह 'खुद से प्यार'आम बात हो सकती है, या असामान्य ग्रंथि! क्षमा बिंदु भाग्यशाली हैं कि उनकी मनोग्रंथि को पहचान कर उनके परिवार ने उनके आत्म विवाह को समर्थन दिया है। हाँ, पंडित जी तैयार नहीं हुए, तो मंत्रोच्चार की ज़िम्मेदारी तकनीक ने निभा ली!
इस बीच सयाने बता रहे हैं कि आत्मविवाह भारत के लिए अजूबा हो सकता है, लेकिन अमेरिका, इटली, जापान, ताइवान, यूके और दूसरे कई देशों में यह काफी प्रचलित है। यह जानना मनोरंजक लग सकता है कि जापान और इटली में इस तरह के एकाकी विवाहों के लिए कंपनियाँ बाकायदा दो-तीन तरह के पैकेज ऑफर करती हैं। साज-सिंगार और फोटो शूट से लेकर विवाह की रस्मों और हनीमून ट्रिप तक! इस मामले में जापान सबसे आगे है, फिर इटली और अमेरिका। देखना होगा कि यह प्रवृत्ति क्या भारत में भी सहज स्वीकृत हो पाएगी! हमारे यहाँ बहुत सी लड़कियाँ विवाह के बाद की खिट-खिट और ससुराल की समस्याओं से इतनी आतंकित रहती हैं कि विवाह की इच्छा होते हुए भी विवाह नहीं करतीं। हो सकता है कि ऐसी लड़कियाँ आत्म विवाह की ओर आकर्षित हों। यदि ऐसा होता है तो इसे वर्तमान विवाह संस्था की खामी का परिणाम मानना होगा। यानी, अब समय आ गया है कि भारतीय विवाह या परिवार में पुरुष-वर्चस्व को ढीला किया जाए, ताकि वह विवाहित स्त्री के लिए दमघोंटू न बने। विवाह और परिवार से आनंद झलकना चाहिए, ताकि युवक-युवती विवाह से कतराएँ नहीं!