अगस्त क्रांति और पूर्वी उत्तर प्रदेश / अरविंद कुमार सिंह
महान अगस्त क्रांति 1857 के बाद पूर्वी उत्तरप्रदेश की जनक्रांति थी.वैसे तो राज्य के सभी इलाके और उत्तराखंड में आंदोलन हर कोने तक था, लेकिन पूर्वी up में इसका खास जोर था. सारे प्रमुख नेता जेल में थे लेकिन ज़मीन पर लड़ाई आम लोगों, किसानों, मजदूरों और छात्रों ने लड़ी. अलीगढ को छोड़ लाहौर से मद्रास तक सारी शिक्षा संस्थान बंद कर दिए गए. पूर्वी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद,BHU और काशी विद्यपीठ के छात्रों ने गावों की ओर रूख किया और हवा बदल दी.
Up में 1942 के आंदोलन में 500 से अधिक लोग पुलिस या फ़ौज की गोली से शहीद हुए, 230 बुरी तरह घायल हुए, 50 लोगों को फांसी की सजा दी गयी. इस दौरान 15142 लोगों को सजा दी गई और 5317 लोग बिना मुकदमा चलाये नजरबन्द रहे. आंदोलन में शहीद लोगों के परिवार जनों को पुलिस ने भारी प्रताड़ित किया.
इलाहाबाद में कांग्रेस दफ़्तर पर पुलिस ने कब्ज़ा कर लिया. विश्वविद्यालय के छात्रों के जुलुस पर गोली चली और छात्र नेता लाल पदम धर सिंह शहीद हो गए. पुलिस की बर्बरता को देख डिप्टी कलेक्टर अमीर रजा इतने व्यग्र हुए कि नौकरी से त्यागपत्र दे आंदोलन में कूद पड़े. छात्र नेता हेमवती नंदन बहुगुणा और रोशन लाल चतुर्वेदी ने पर्चे और परिपत्र बाँट आंदोलन को छात्रों में एक दिशा दी. उसी दौरान इंदिरा गाँधी ने गुप्त रूप से कांग्रेस बुलेटिन निकलना जारी रखा, जिसके वितरण में महादेवी वर्मा और महिला विद्यापीठ की छात्राओं की अनूठी भूमिका रही.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञान के छात्रों ने आंदोलन को गति देने को ट्रांसमीटर भी चालू रखा था.
पूरब के जिलों में बलिया सबसे आगे था जहाँ अंग्रेजी राज का निशान भी मिट गया.आजमगढ़, गाजीपुर, जौनपुर, बस्ती,फ़ैजाबाद, वाराणसी, गोरखपुर और हर इलाके में देहात शहर में आंदोलन ने अंग्रेजों को संकेत दे दिया कि अब उनकी विदाई की वेला आ गयी है. ये काम नेतृत्व विहीन लोगों ने किया.
अगस्त क्रांति के ज्ञात अज्ञात शहीदों और सेनानियों को नमन. नयी पीढ़ी को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि उनकी कितनी पीढ़ियां आजादी के जंग में होम हो गई और ये आजादी कितनी कीमती है..