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झारखंड का कन - कन स्वाधीनता आंदोलन के संघर्ष से ओतप्रोत /

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 (15 अगस्त, स्वाधीनता दिवस की 75 वीं वर्षगांठ पर विशेष)


झारखंड का कन - कन स्वाधीनता आंदोलन के संघर्ष से ओतप्रोत  


झारखंड का कन -कन स्वाधीनता आंदोलन के संघर्ष से ओतप्रोत है । झारखंड से मातृभूमि की रक्षा के लिए उठने वाली आवाज़ें, आज तक सुनाई पड़ती है।  झारखंड का स्वाधीनता आंदोलन का संघर्ष का इतिहास बहुत ही गौरवपूर्ण है।  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर हजारों  की संख्या में झारखंडियों ने ब्रिटिश हुकूमत की सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था और स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे।  1942 में भारत छोड़ो आंदोलन प्रस्ताव पारित होने के बाद झारखंड के हर जिले से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाजें बुलंद हुई थी । लोग सड़कों पर उतर आए थे । ब्रिटिश हुकूमत के सिपाहियों ने आंदोलनकारियों पर लाठियों से जबर्दस्त प्रहार किया था । झारखंडी स्वाधीनता सेनानियों ने ब्रिटिश हुकूमत की लाठियों का सामना हंसकर किया था।

 भारत छोड़ो आंदोलन और असहयोग आंदोलन को जन जन तक पहुंचाने के लिए झारखंडी आंदोलनकारियों ने अपना सर्वोच्च न्योछावर कर दिया था । इस आंदोलन का  नेतृत्व करते हुए हजारों की संख्या में आंदोलनकारी गिरफ्तार हुए थे।  हजारीबाग के प्रखर स्वाधीनता सेनानी बाबू राम नारायण सिंह ने अंग्रेजो के खिलाफ संपूर्ण झारखंड सहित देश का भ्रमण किया था। वे घूम घूम कर लोगों को जागृत कर रहे थे।  बाबूराम राम नारायण सिंह बहुत जल्द ही ब्रिटिश हुकूमत की नजरों में आ गए थे। वे उनकी हीट लिस्ट में शामिल हो गए थे। बाबू राम नारायण सिंह को तुरंत गिरफ्तार कर हजारीबाग के सेंट्रल जेल में डाल दिया गया था । हजारीबाग के ही शालिग्राम सिंह, कर्मवीर सहित कई स्वाधीनता सेनानियों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जोरदार आंदोलन कर अपनी गिरफ्तारी दी थी।

 ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ झारखंड के आदिवासियों ने भी जबरदस्त विरोध किया था।  बिरसा मुंडा ने जमीदारी प्रथा, सूदखोरी, भूमि कर बढ़ोतरी  और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बिरसा मुंडा ने जोरदार संघर्ष किया था। उन्होंने जो लोगों के बीच  अलख जगाई थी, झारखंडियों को प्रेरणा देती रहेगी।  सिद्धू - कान्हू ने भी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी । सिद्धू - कान्हू के संयुक्त स्वर में इतनी तेज थी कि  ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिल गई  थी ।

झारखंड की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी सरस्वती देवी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वाधीनता सेनानी बनने का संकल्प लिया था।  उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में बहुत ही जोशीला भाषण दिया था । उन्होंने पर्दा प्रथा का विरोध करने के साथ नारी उत्पीड़न के खिलाफ भी आंदोलन किया था। झारखंड से स्वाधीनता संग्राम में गिरफ्तार होने वाली सावित्री देवी पहली महिला थी ।

कृष्ण बल्लभ सहाय झारखंड के एक जाने-माने स्वाधीनता सेनानी थे । वे देश की आजादी के बाद   एकीकृत बिहार के मुख्यमंत्री भी बने थे। इनका संपूर्ण जीवन स्वाधीनता आंदोलन को समर्पित रहा था । उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन की ऐसी अलख जगाई थी, जिसमें हजारों की संख्या में झारखंड के युवा सम्मिलित हुए थे।  1930 में नमक कानून का विरोध करते हुए वे  हजारीबाग केंद्रीय कारा में बंद हुए थे । जेल से छूटने को उसरांत कृष्ण बल्लभ सहाय एक कदम भी पीछे हटे नहीं बल्कि  आजादी के लिए निरंतर संघर्षरत रहे थे।

  पलामू के बनवारी सिंह, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े थे । पलामू  से ही बनवारी सिंह ने स्वाधीनता आंदोलन की शुरुआत किया था।  1927 में जब गांधी जी डाल्टेनगंज आए थे, उस समय उनकी उम्र मात्र 20 साल थी। इस उम्र में भी उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ उग्र आंदोलन किया था ।‌ भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजी सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में डाल दिया था । वे हजारीबाग जेल में करीब डेढ़ वर्ष कैद रहे थे। 

 झारखंड के गुमला निवासी रामप्रसाद ने महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वाधीनता आंदोलन का संकल्प लिया था।  इन्होंने संपूर्ण गुमला में स्वाधीनता आंदोलन का अलख जलाया था । 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय रामप्रसाद, महात्मा गांधी के संपर्क में आए थे। बाद में वे उनके साथ जेल भी गए थे । रामप्रसाद ने  डॉ राजेंद्र प्रसाद, विनोबा भावे जैसे नेताओं को निमंत्रण देकर गुमला बुलाया था। वे गुमला में आजादी के संघर्ष को जन-जन तक पहुंचाने में कामयाब हुए थे।  देश की आजादी के बाद वे विनोबा भावे के भूदान यज्ञ से जुड़ कर सैकड़ों  भूमिहीनों को भूमि दिलवाए थे।  इनका संपूर्ण जीवन स्वाधीनता आंदोलन और समाज सेवा में बीता था।

 लोहरदगा के देशभक्त बुधन सिंह देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वालों के नायक थे।  1940 के रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और मौलाना अबुल कलाम आजाद के साथ कदम से कदम मिलाकर भाग लिए थे।  उनके नेतृत्व में  लोहरदगा से कई लोग इस रामगढ़ अधिवेशन में शामिल हुए थे। इस अधिवेशन में एक खास बात यह हुई थी कि डॉ राजेंद्र प्रसाद ने यह शर्त रखी थी कि जो मेरी गाड़ी वही चलाएगा, उसे जीवन भर खादी वस्त्र पहनना होगा।   देशभक्त बुधन सिंह ने डॉ राजेंद्र प्रसाद की यह शर्त स्वीकार कर लिया था। उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को गाड़ी में बैठा कर अधिवेशन तक लाया था। वे जीवन पर्यंत खादी पहने  थे।

झारखंड के कई स्वतंत्रा सेनानी ऐसे भी हुए थे, जिनकी ज्यादा चर्चा नहीं होती है । ऐसे नायक जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन स्वाधीनता आंदोलन को समर्पित कर दिया था । उन्हीं में एक थे, कोडरमा जिले के शिव प्रसाद लाल।  इन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ जबरदस्त ढंग से संघर्ष का बिगुल फूंका था । शिवप्रसाद, कोडरमा की माइका कंपनी छोटू राम होरील राम में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे।  गांधी जी के आह्वान पर वे आंदोलन में कूद पड़े थे।  आंदोलन में कूदने के कारण उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा था । इसका उन्होंने तनिक भी परवाह नहीं किया था।  सविनय अवज्ञा, असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन और विदेशी कपड़ों के बहिष्कार जैसे आंदोलन में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की थी।  उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाया था । वे झारखंड में स्वाधीनता आंदोलन को मजबूत करने और गति देने का काम कर रहे थे। असहयोग आंदोलन और नमक सत्याग्रह की गतिविधियों में हिस्सा लेते रहे थे।  अंग्रेजी हुकूमत ने उनको गिरफ्तार कर छ: माह के लिए जेल में डाल दिया था । वे देश की आजादी दिलाने की जीद  पर अड़े रहे थे ।

झारखंड के एक नायाब आंदोलनकारी भागीरथ मांझी थे।  वे संताल समाज के थे। वे एक ऐसे अनोखे आंदोलन के प्रणेता थे, जिसने सत्याग्रह, अहिंसा और अपरिग्रह के सिद्धांतों पर आधारित सामाजिक एकजुटता से ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी थी । देश की आजादी की लड़ाई में संथाल समाज की अहम भूमिका रही थी। देश की आजादी के बाद भी वे आंदोलनरत थे। उनके विषय में इतिहास की पुस्तकों में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।  भागीरथ मांझी का संपूर्ण जीवन स्वाधीनता आंदोलन और समाज सुधार में बीता था। झारखंड के सत्याग्रहियों के आंदोलन  का जब भी जिक्र होगा, उसमें उनके अवदान को कभी भी विस्मृत नहीं किया जा सकता है ।

महात्मा गांधी के आह्वान पर झारखंड के हरिवंश टाना भगत ने पीपल के पेड़ पर तिरंगा फहरा कर आजादी का एलान किया था। इनका संपूर्ण जीवन भारत के स्वाधीनता आंदोलन में बीता था। हरिवंश टाना भगत रांची जिला के मांडर के करकरा गांव के थे। उन्होंने आजादी के आंदोलन में टाना भगत बने थे। उन्होंने  टाना भगतों की जीवनशैली से जुड़ी एक किताब भी  लिखी थी । इसमें टाना भगतों के  स्वाधीनता आंदोलन के संघर्ष का विस्तार से चर्चा है।

 बुढ़मू प्रखंड निवासी  नंदू साहू, महात्मा गांधी के आवाहन पर स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े थे । वे 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए थे । उन्होंने टाना धर्म अपनाकर लोगों को जागरूक किया था।  1942 में ही भारत छोड़ो आंदोलन के समय नंदू साहू सर्वसम्मति से बुढ़मू प्रखंड के थाना मंत्री बनाए गए थे। 

 रांची, एचईसी धुर्वा निवासी स्वर्गीय रामरक्ष उपाध्याय ब्रह्मचारी प्रखर  स्वतंत्रता सेनानी व समाजसेवी थे।  इनका जन्म बिहार में जरूर जरूर हुआ था, लेकिन इनका संपूर्ण जीवन झारखंड में बीता था । उन्होंने लोहरदगा में आदिवासियों को शिक्षित करने के लिए हिंदू इंग्लिश हाई स्कूल की स्थापना किया था। उन्होंने चौपारण सत्याग्रह और नमक सत्याग्रह में भाग लिया था। वे देश की आजादी के बाद बिना किसी चाह के आजीवन समाज सेवा से जुड़े रहे थे। वे  लोगों  को सदा जागृत और नैतिकता का पाठ पढ़ाते रहे थे।

झारखंड की पवित्र धरती प्रारंभ से ही राष्ट्र की रक्षा के लिए समर्पित रही है।  झारखंड का कन - कन स्वाधीनता आंदोलन के संघर्ष से जुड़ा है।  आज हर एक झारखंडियों को अपने वीर शहीदों पर गर्व है। उन सबों के  त्याग और बलिदान के बल पर देश को आजादी मिली थी । आज हम सब आजादी की 75 वीं वर्षगांठ बड़े ही धूमधाम के साथ मना रहे हैं। उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यह है कि उन्होंने जो मार्ग प्रशस्त किया, उस पर हम सब चलें।


विजय केसरी

 (कथाकार /स्तंभकार)

पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301 ,।

मोबाइल नंबर :- 99347 99550.


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