अमिताभ चौधरी जी को मैं तब से जानता था जब जमशेदपुर में एक आईपीएस अधिकारी के तौर पर कई बार समाचारों में उनका नाम आया करता था।उसके बाद रांची के वरीय आरक्षी अधीक्षक के रूप में उनका कार्यकाल बहुत ही चर्चित रहा उनसे इंटरव्यू में करने का अवसर मिला और बातचीत करने के क्रम में उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं से अवगत हुआ उनकी पत्नी निर्मला चौधरी भी अक्सर आकाशवाणी आती थी और बहुत ही सरल स्वभाव की विदुषी महिला थी। अपने बेटे को साथ में लेकर आती थी एक अधिकारी के रूप में अमिताभ चौधरी जितने सख्त और कुशल प्रशासक थे व्यक्तिगत तौर पर बहुत ही दोस्ताना व्यवहार था उनका और उनमें बिहार झारखंड की झलक नहीं होकर किसी यूरोपीय व्यक्तित्व की झलक थी, समानता का व्यवहार करते खुलकर मिलते खुलकर बातें करते और बहुत ही स्पष्ट सपाट उनका व्यवहार था, बिना लाग लपेट के अपनी बात सीधे कहते और जिस तरह से बातें करते उसी तरह का उनका असली व्यक्तित्व भी था ।
एक बार रेडियो के लिए एक इंटरव्यू के सिलसिले में बात करने गया जब वह रानी कोठी में बतौर आईजी सीआईडी बैठते थे तो इन्होंने कहा कि तैयारी क्या करनी अभी कर लीजिए। उनसे व्यक्तित्व आधारित लंबा इंटरव्यू लेने का अवसर मिला और उनकी पसंद के गाने भी आकाशवाणी से प्रसारित किए गए। अपनी पसंद के गाने अपने लैपटॉप में सुरक्षित रखते थे उन्होंने उसकी कॉपी भी मुझे दी कि अगर आपके पास नहीं हो तो आप इसका उपयोग कर सकते हैं । बीच-बीच में उनके कनिष्ठ कर्मचारी आते थे और कुछ लोग ऐसे थे जिन्होंने गलतियां भी की थी उन्हें बहुत ही सख्ती से डांटते भी थे बातचीत करने में जितने विनम्र थे अचानक अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से उनका व्यवहार बहुत ही सख्त हुआ करता था। एक और संस्मरण है जो कभी ना भूलने वाला है बिहार के खेल मंत्री का कार्यक्रम सिमडेगा में था जिसे रांची विश्वविद्यालय ने आयोजित किया था और समापन समारोह को कवर करने के बाद मैं अपने केंद्र निदेशक रोजलिन लकड़ा जी और एक साथी ओली मिंज के साथ लौट रहा था रास्ते में सुनसान जगह पर हमारी गाड़ी को रोक कर लूटपाट की गई । गनीमत रही कि हमारे साथ मारपीट नहीं हुई लेकिन हमारे पास जो कुछ थे यहां तक की पेन तक लुटेरों ने नहीं छोड़ा । बहुत अनुरोध करने पर उन्होंने गाड़ी की चाबी तो लौटा दी हम लोग वहां से बढ़ते हुए रास्ते में कोलेबिरा थाने पहुंचे। थाने की तब बुरी स्थिति हुआ करती थी एक स्टाफ थाने में नहीं था। एक लालटेन जल रहा था और एक चौकीदार वहां सोया हुआ था। हम लोग आगे बढ़े और जैसे ही रांची जिले की सीमा प्रारंभ हुई तोरपा थाना आया वहां थाने में गए और थाना प्रभारी को जैसे ही बताया कि डकैती हुई है जिस फुर्ती और तत्परता से थाना प्रभारी बिना हथियार लिए छापा मारते निकल गए वह प्रभाव था तत्कालीन सीनियर एसपी अमिताभ चौधरी का ।
बाद में पत्रकारों की एक टोली जो दूसरी गाड़ी में पीछे आ रही थी उनकी गाड़ी में मैं हथियारबंद सिपाहियों के साथ पीछे गया कि कहीं अपराधकर्मी बड़ा बाबू पर गोली ना चला दे क्योंकि उनके पास एक भी हथियार नहीं था । बाद में यह बहुत बड़ी खबर बनी इसलिए कि हम लोगों पर बम से भी हमला किया गया था हालांकि बम फटा नहीं था और तत्कालीन आईजी कुमार , ने छानबीन कराई पूरा पुलिस महकमा इतना सक्रिय था जो कि तत्कालीन लालू प्रसाद के राजपाट में बहुत कम देखने को मिलता था ।
एक पुलिस अधिकारी के रूप में अमिताभ चौधरी तमाम बंदिशों के बाद भी अपनी कार्यकुशलता और क्षमता प्रदर्शित करते रहे , निर्भय होकर काम करते रहे और इतिहास रचते रहे। बाद में जब जेएससीए स्टेडियम बना तो उन्होंने इतिहास तो रचा ही बीच-बीच में कभी-कभार उनसे मुलाकात होती थी उनकी बातचीत में कोई अंतर नहीं आया था जो पहले थे बाद में भी वही थे और वह दिखावटी बातें करना या मुंह देखी बातें करना नहीं जानते थे। जिस कारण बहुत सारे लोग उनसे शत्रुता भी रखते थे, उन्हें स्वार्थी भी कहते थे लेकिन कम शब्दों में यह कहा जा सकता है कि वह बहुत ही कुशल शासक थे, कुशल प्रबंधक थे और यारों के यार थे । एक बहुआयामी व्यक्तित्व का असमय चला जाना निश्चित रूप से एक अपूरणीय क्षति है। विनम्र श्रद्धांजलि।