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अम्बेडकर की वैचारिकी का विस्तार / कृपाशंकर चौबे

 

एकैडमिक पब्लिकेशन, दिल्ली से नौ खंडों में प्रकाशित डॉ. रूपचन्द गौतम की पुस्तक ‘अम्बेडकर जनसंचार’ कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है।

अम्बेडकर के संपूर्ण साहित्य और उनकी वैचारिकी का किस प्रकार विस्तार हुआ है और वह वैचारिकी किस तरह जनसंचार कर बहुजनों को ऐक्यबद्ध, संगठित और शिक्षित करने का निमित्त बन रही है, इसे बताने के लिए लेखक ने ‘अम्बेडकर जनसंचार’ के विभिन्न खंडों में श्रमपूर्वक आधार सामग्री प्रस्तुत की है। यह सामग्री अम्बेडकर की वैचारिकी के संपूर्ण भारत पर पड़े प्रभाव को जानने में बहुत सहायक है।

पुस्तक बताती है कि अनुसूचित जातियों में जनसंचार का विकास कैसे हुआ और अभी भी हो रहा है और डॉ. अम्बेडकर के विचारों को आत्मसात करके हाशिए का समाज कैसे आगे बढ़ रहा है। डॉ. रूपचन्द गौतम लिखते हैं कि गुबरा का राजा अपने राज्य में शाम को खाने से पहले नगाड़ा बजवाता था कि कोई मेरे राज्य में भूखा-प्यासा न सोए, जिसे भोजन न मिला हो; वह मेरे पास आए और भोजन ग्रहण करे। उस समय बौद्ध राजा जनता के दुःख को अपना दुःख मानते थे। प्रत्येक प्रकार की शासन प्रणाली में शासक द्वारा अपने आदेश, निर्देश, सूचनाएं जनता तक पहुँचाने के लिए ढिंढोरा पिटवा कर प्रसारित की जाती थीं। ढिंढोरा पीटने वाले दलित होते थे। यहीं से दलितों में जनसंचार की प्रक्रिया का पता चलता है। उत्सव एवं मेले भी बहुजनों के जनसंचार माध्यम होते थे।

सम्राट अशोक ने कलिंग विजय के उपरान्त अपने साम्राज्य के राजमार्गों पर पत्थर केस्तम्भों पर आचार संहिता अंकित करवाई थी। उक्त आचार संहिता का भी मूलनिवासियों पर जनसंचार का सकारात्मक प्रभाव पड़ा। अशोक के शिलालेखों में ऐसे राजकीय कर्मचारियों का उल्लेख मिलता है जो बहुजन थे। मौर्य काल के आने से सड़कों का निर्माण प्रारंभ हुआ और डाक सेवा शुरू हुई। ये दोनों ही प्रक्रियाएं बहुजन अस्मिता से जुड़ी हैं।

 भारत में मुद्रण कार्य भी बहुजनों से जुड़ा है। मराठी में बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के समाचार-पत्र अम्बेडकर जनसंचार के माध्यम बने। बाबा साहेब का मानना था कि दलितों को जागरूक बनाने और उन्हें संगठित करने के लिए उनका स्वयं का मीडिया अनिवार्य है।

उसी अनिवार्यता को ध्यान में रखते हुए डॉ. अम्बेडकर ने 31 जनवरी 1920 को बंबई से दलितों का अपना समाचार पत्र ‘मूकनायक’ प्रकाशित किया। ‘मूकनायक’ मराठी भाषा में निकलनेवाला पाक्षिक समाचार पत्र था। 'मूकनायक'के 31 जनवरी 1920 के अंक में यानी प्रवेशांक में डॉ. अम्बेडकर ने  मनोगत शीर्षक अग्रलेख में लिखा था, “हमारे बहिष्कृत लोगों पर जो अन्याय हो रहा है और आगे होनेवाली ज्यादतियों से बचाने के लिए तथा भविष्य में होनेवाले उनके उन्नयन के यथार्थ रूप की चर्चा के लिए कोई समाचार पत्र नहीं है। मुम्बई से प्रकाशित समाचार पत्र सवर्णों के हित की रखवाली करनेवाले हैं। उन्हें अन्य जाति के हितों की कोई परवाह नहीं।”‘मूकनायक’ अप्रैल 1923 में बंद हो गया। 3 अप्रैल 1927 को डॉ. अम्बेडकर ने दूसरा मराठी पाक्षिक ‘बहिष्कृत भारत’ निकाला। वह 1929 तक निकलता रहा। अम्बेडकर ने समाज में समता लाने के उद्देश्य से समाज समता संघ के मुखपत्र के रूप में 29 जून 1928 को पाक्षिक अखबार ‘समता’ निकाला। बाबा साहेब ने 24 नवंबर 1930 को पाक्षिक समाचार पत्र ‘जनता’ निकाला। ‘जनता’ बाद में साप्ताहिक के रूप में परिवर्तित हो गया। ‘जनता’ 24 नवंबर 1930 से 28 जनवरी 1956 तक निकलता रहा। उसके बाद उसका नाम बदलकर ‘प्रबुद्ध भारत’ कर दिया गया।‘प्रबुद्ध भारत’ का प्रवेशांक चार फरवरी 1956 को निकला। ‘प्रबुद्ध भारत’ के हर अंक में पत्रिका के शीर्ष की दूसरी पंक्ति में लिखा होता था- डॉ. अम्बेडकर द्वारा प्रस्थापित।‘प्रबुद्ध भारत’ के बाद बहुजनों में पत्र-पत्रिकाएं और पुस्तकें प्रकाशित करने का युद्ध स्तर पर कार्यक्रम चलना प्रारंभ हुआ और अब भी जारी है।

 इन सभी किताबों और पत्र-पत्रिताओं का विस्तृत विवरण डॉ. रूपचन्द गौतम ने इस किताब में दिया है। डॉ. रूपचन्द गौतम बताते हैं कि दलितों ने प्रकाशन खोलने में तनिक भी देर नहीं की। सम्यक प्रकाशन एवं गौतम बुक सेंटर दिल्ली में पुस्तक प्रकाशित करने के क्षेत्र में अग्रणी हैं। इनके माध्यम से दलित साहित्य, संस्कृति, कला एवं अस्मिता के रूप में 50 से अधिक किताबें हर वर्ष प्रकाशित होती हैं। ‘फॉरवर्ड प्रेस’ पब्लिकेशन और ‘दलित दस्तक’ पत्रिका के संपादक अशोक दास ने दास पब्लिकेशन के माध्यम से कई महत्वपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित की हैं। दिल्ली से बाहर भी कुछ ऐसे दलित प्रकाशक हैं जो दस किताबें प्रति वर्ष प्रकाशित करते हैं।

अंबेडकरवादी लेखक-चिंतक एचएल दुसाध अपने दुसाध पब्लिकेशन द्वारा वैचारिक पुस्तकें छापते रहे हैं।अब विश्व पुस्तक मेलों में भी दलित प्रकाशक दस्तक देने लगे हैं। चन्द्र बल्लभ टम्टा ने दैनिक शिल्पकार टाइम्स प्रकाशित करके अम्बेडकर जनसंचार की गति को तीव्र किया। हालांकि इनसे पहले कांशीराम ‘बहुजन संगठक’ पत्र के द्वारा अम्बेडकर जनसंचार की दस्तक दे चुके थे।

कंप्यूटरीकृत युग में अम्बेडकरवादियों ने इंटरनेट को जनसंचार का एक सशक्त माध्यम बना दिया है। इलेक्टॉनिक मेल, वर्ल्ड वाइड वेब, इलेक्टॉनिक व्यापार, ब्लॉग, फेसबुक, ट्विटर, वीडियो कांफ्रेंसिंग, वाट्सएप आदि माध्यमों द्वारा अम्बेडकर जनसंचार गतिशील है।

सिनेमा के क्षेत्र में भी ‘डॉ. अम्बेडकर’, ‘तीसरी आज़ादी’,‘द ग्रेट कांशीराम’ और ‘राइजिंग शूद्रा’ जैसी फिल्में बनाकर अम्बेडकरवादियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। लार्ड बुद्धा टीवी और आवाज़ टीवी चैनल के अलावा अम्बेडकरवादियों के सैकड़ों यू-ट्यूब चैनल हैं।अम्बेडकरवादियों ने जनसंचार के जितने माध्यमों को इस्तेमाल किया है, उन सबका विस्तार से विवरण डॉ. रूपचन्द गौतम ने दिया है। 

‘अम्बेडकर जनसंचार’ के पहले खंड में 21 अध्याय हैं जिनके शीर्षक ही विषय को प्रकट कर देते हैं-संचार से अम्बेडकर जनसंचार, अम्बेडकर जनसंचार और साहित्य, किताबों द्वारा अम्बेडकर जनसंचार, ऑडियो-वीडियो द्वारा अम्बेडकर जनसंचार, हैंडबिल द्वारा अम्बेडकर जनसंचार, पोस्टर द्वारा अम्बेडकर जनसंचार, अम्बेडकर जनसंचार और बुकलेट, पत्रलेखन द्वारा अम्बेडकर जनसंचार, अनुवाद और अम्बेडकर जनसंचार, अम्बेडकर जनसंचार और कैलेंडर, अम्बेडकर जनसंचार और प्रकाशन, समता सैनिक दल द्वारा जनसंचार, भारतीय बौद्ध महासभा द्वारा जनसंचार, वामसेफ द्वारा जनसंचार, पत्र-पत्रिकाओं द्वारा अम्बेडकर जनसंचार, अम्बेडकर जनसंचार और स्मारिकाएं, दलित नेताओं द्वारा प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएं, फिल्मों द्वारा अम्बेडकर जनसंचार, डॉ. अम्बेडकर की मूर्तियों द्वारा जनसंचार, बौद्ध धर्म से जुड़ी पत्र-पत्रिकाएं, सोशल मीडिया द्वारा अम्बेडकर जनसंचार।

‘अम्बेडकर जनसंचार’ के दूसरे खंड में उत्तर प्रदेशऔरतीसरे खंड में दिल्ली से प्रकाशित अंबेडकरी पत्र-पत्रिकाओं का विवरण है। चौथे खंड में उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल से प्रकाशित बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के अनुयायियों द्वारा प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं और उनके सामाजिक सरोकारोंका वर्णन है। अम्बेडकर के जो अनुयायी पत्र-पत्रिका प्रकाशित न कर सके, उन्होंने स्मारिकाएं प्रकाशित करके बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया।पुस्तक के पांचवें खंड में ऐसी 56 स्मारिकाओं का वर्णन है। छठवें खंड में 76 बहुजन कार्यक्रमों की रपटें दी गई हैं। सातवां खंड पत्र-पत्रिकाओं की पहली संपादकीय, भाषाशैली के मूल्यांकन के अतिरिक्त पुस्तक समीक्षा, साक्षात्कार, फीडबैक के इतिहास को समेटता है। आठवें खंड में शोध और वैचारिक आलेख हैं जबकि नौवें खंड में अम्बेडकर जनसंचार के 54 सजग प्रहरियों के मोनोग्राफ हैं। अम्बेडकर जनसंचार का जिस तरह विस्तार हो रहा है, उसे देखते हुए उम्मीद है कि डॉ. रूपचन्द गौतम पुस्तक के और खंड निकालेंगे। ‘

अम्बेडकर जनसंचार’के अब तक प्रकाशित सभी नौ खंड हर शोधार्थी, विद्यार्थी के लिए बहुत उपयोगी हैं। उनमें विपुल सामग्री है। कुल मिलाकर अम्बेडकर जनसंचार हमें यही सिखाता है कि जाति, वर्ण, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र,लिंग,वर्ग आदि शोषणकारी प्रवृत्तियों के प्रति समाज को आगाह कर उसे इन सारे पूर्वाग्रहों और मनोग्रंथियों से मुक्त करने की चेष्टा ईमानदारी से की जानी चाहिए। अम्बेडकर जनसंचार स्वतंत्रता, समता और बंधुता के लिए प्रतिबद्ध है। इन्हीं तीन शब्दों- स्वतंत्रता, समता और बंधुता में बाबा साहेब के जीवन दर्शन का सार निहित है।




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