श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्री बनने से देश और विदेश में व्यापक स्वागत और खुशियां मनायी जा रही है, किंतु उस क्षेत्र की प्रसन्नता को बयां करना बड़ा कठिन है, जहां विश्वनाथ प्रताप सिंह जन्में पले-बड़े और घर-घर में राजा के नाम से जाने जाते हैं. "राजा"मांडा के इलाके में घर-घर खुशियां मनायी जा रही है, जिसमें आज देश को एक स्तरीय नेता दिया है. उनके उद्गार उमड़ पड़ रहे हैं.
आदर्शवादी, यथार्थ की सीढ़ियां चढ़ते हुए विश्वनाथ प्रताप सिंह ने आज सबसे ऊंची सत्ता पहुंचने का सफर पूरा कर लिया, पर 'मांडा'के राजा तो आज भी जन-जन के 'रजवा'ही हैं. आज से अट्ठावन वर्ष पूर्व 25 जून 1931 को जन्में विश्वनाथ प्रताप सिंह के गृह प्रदेश फूलपुर (इलाहाबाद) में उनके पुराने साथी और कार्यकताओं से मुलाकात करने का मौका मिला तो विश्वनाथ प्रताप सिंह की एक अलग ही तस्वीर सामने आयी.
मेजा तहसील के कोराव ब्लाक पहुंचने पर इस संवाददाता की मुलाकात भूतपूर्व ब्लाक प्रमुख श्री का प्रसाद सिंह से हुई. श्री कामता प्रसाद जी सन् बयालीस के जमाने में भारत छोड़ो आंदोलन के समय से कांग्रेस के सदस्य रहे हैं, किंतु बाद में ससोपा की सरकार के समय ब्लाक प्रमुख थे और 67 में लालबहादुर शास्त्री के साथ कांग्रेस में आ गये थे, किंतु *87 की अगस्त में वी.पी. सिंह के समर्थन में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था.
उनका दावा है कि हर गांव में बी.पी. सिंह थोड़े बहुत कार्यकर्ता हर समय रहे हैं. राजा साहब साल भर में होली मिलन के अवसर पर हम ग्रामीणों के साथ ही रहते हैं. बाकी समय भी आकर राजी खुशी के समाचार पूछते हैं, पर होली पर अपने गांव अवश्य जाते हैं.
श्रीकाता रात के झुटपुटे में छत पर बैठे असें पुरानी बातें याद कर रोमांचित हो उठते हैं. मैंने बी.पी. सिंह के साथ होने के नाते उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानना चाहा, तो वह सचमुच वी. पी. सिंह के खानदान की कहानी सुनाने. बैठ गये, काबाबू के शब्द थे, साहब, हमारे इलाके में महरवारों में पांच खानदान हुआ करते थे-मांडा, विजयपुर, दाहिया, बड़ोचर और कोहहार.
विश्वनाथ प्रताप सिंह के खास पिता भगवती प्रसाद सिंह दहिया की गोद आये थे. जवान हुए तो पनासी गांव के भगवती बाबू की शादी लड़की से तय हो गयी उसके तुरंत बाद ही दहिया का राज मिल गया. किंतु किसी कारणवश शादी हो गयी भीकमपुर में, सो लोगों ने कहा कि राज तो पनासी वाली से मिला है, सो उससे भी शादी करनी होगी. अब भगवती बाबू की दो रानी हो गयीं, पर संतान किसी से नहीं हुई. चार-छः वर्ष हो चले पर संतान ही नहीं हुई. आखिर उन्होंने वरदी खटाई की लड़की से शादी की पर वह भी निःसंतान ही मर गयी.
तभी ज्योतिषियों ने बताया कि आप यह 'कोट'यानी महल बदल दो और दूसरा 'कोट'बनवा लो. 'कोट''जहां बना उस गांव दूसरा का नाम रखा गया 'विश्वनाथ गंज'. भगवान ने भगवती बाबू की प्रार्थना नया कोट बनते ही सुन ली. नये (कोट) महल में जाते ही दोनों रानी फिर गर्भवती हुई. फिर भी पनासी वाली रानी ने एक सप्ताह बाद, दो पुत्रों को जन्म दिया. पहली रानी से पहले पैदा हुए चंद्रशेखर प्रताप सिंह जिनकी डाकुओं द्वारा शिकार के समय हत्या कर दी गयी थी और दूसरी रानी से हुए कुंवर संत बख्श सिंह जो बाद में न्यायाधीश बने. उसके बाद पनासी वाली से विश्वनाथ प्रताप सिंह पैदा हुए और दूसरी रानी से हरबंश सिंह और राजेंद्र प्रसाद सिंह.
जब विश्वनाथ 5-6 वर्ष के थे तभी राजा मांडा श्री राम गोपाल सिंह के यहां चले गये. यह देख राजा मांडा के भाई ने कोर्ट में केस फाईल कर दी कि हमारे बच्चों के होते हुए तुमने गोद क्यों लिया?
कुछ समय बाद राजा रामगोपाल सिंह को अत्याधिक शराब पीने के कारण टी.बी. हो गयी. टी.बी. का इलाज करवाने भवाली गये थे, वहीं उनकी 45 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गयी. उस समय विश्वनाथ नाबालिग थे, सो जायदाद तो कोर्ट ऑफ वार्स हो गयी यानि रियासत सरकार के अधीन हो गयी. उस समय विश्वनाथ 'उदय प्रताप कॉलेज बनारस'में पढ़ रहे थे. 1947 में स्वराज मिल गया और विश्वनाथ 1952 में बालिग हुए तब तक जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हो चुका था, यानि: एक दिन भी जमींदार की कुर्सी पर नहीं बैठे. राजा मांडा कहलाते जरूर हैं, किंतु एक दिन भी राजा की गद्दी पर नहीं बैठे.
विश्वनाथ जब पढ़ाई पूरी कर अपने क्षेत्र में लौटे तब हमारे दक्षिणी इलाके में कहीं कोई पढ़ाई का रिवाज ही नहीं था. हमारे कोराव में भी शिक्षा की कोई संस्था नहीं थी. तो विश्वनाथ ने अपने पिताजी के नाम पर कोराव गोपाल विद्यालय खोला. उस समय स्कूल शुरू करने के लिये पैसा भी नहीं था सो भवन निर्माण के काम में भी खुद ही लगे, खुद ईंटें ढोगी और स्कूल की बिल्डिंग बनवायी. उसके बाद शिक्षकों के वेतन की समस्या आयी तो खुद विश्वनाथ ही पढ़ाने लगे.
उम्र में विश्वनाथ मुझसे छोटे हैं, पर हैं हम लोग साथी. उस समय हम दोनों ही समाजवादी विचारों के थे, सो साथ में काम किया करते थे. हां, उनके भाई संतबख्श सिंह और चंद्रशेखर सिंह भी साथ आया करते थे. धीरे-धीरे गोपाल विद्यालय इण्टर कॉलेज बना, यहीं से पढ़े युवकों ने बाद में इस क्षेत्र में एक-एक कर पांच इंटर कॉलेज स्थापित किए हैं.
गोस्वामी तुलसीदास विद्यालय, कोरॉव, सरदार बल्लभ भाई पटेल इण्टर कॉलेज सिकडोह, शिव जियावन इंटर कॉलेज लडियारी, किसान विद्यालय इण्टर कॉलेज घूस, और चौधरी शिजोखन सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जवाइन.
इन सभी को विश्वनाथ ने हमेशा शिक्षा प्रसार हेतु पूरा सहयोग दिया. एक खास बात बताना तो भूल ही गया- १९५५ की बात है, संत विनोबा यहां आये तो विश्वनाथ ने भू-दान में अपनी सारी जमीन यानि जमुना पार फूलपुर आदि की खेती योग्य जमीनें भू-दान में दे दी. मांडा की रियासत में जो तहसील है, वह जमीन भी इन्हीं की दी हुई है. यहां जो बरनपुर ग्रामदानी गांव है, जहां धीरेंद्र दादा ने भूदी गांव का सफल प्रयोग किया था. विश्वनाथ के साथ मैं भी धीरेंद्र दा के साथ भू-दान के काम में लगे रहते थे. विश्वनाथ ने धीरेंद्र दा के साथ खुद खेतों को जोता, कटायी भी की और पदयात्रा में साथ रहे. रामगोपाल जी के स्वर्गवास होने के बाद विश्वनाथ ने सारी जमीन संत विनोबा भावे को दे दी तो विश्वनाथ के खास पिता भगवती प्रसाद सिंह बड़े नाराज हुए-बोले अब तुम्हारा घर कैसे चलेगा?
विनोबा ने भी विश्वनाथ से कहा कि हम तो छटा हिस्सा लेते हैं, इसलिए बाकी की जमीन तुम वापस ले लो पर विश्वनाथ बोले हम दी हुई जमीन वापस नहीं लेंगे. उधर पिताजी ने विश्वनाथ की पत्नी सीता देवी को बुला कर कहा कि "तुम ही बबुआ को समझाओ, वह तो पगला गया है."सीता देवी का जवाब था "मैं क्या जानू? उन्होंने जो ठीक समझा किया."
आज पसना में कस्तूरबा ट्रस्ट भी उसी भूदानी गांव में स्थित है जहां गरीब और निराश्रित महिलाएं और बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं और शेष जमीन पर खेती होती है. भूमिहीन आज भी गांव में भू-दान की जमीन पर खेती करते हैं. भू-दान यज्ञ समिति ने और गांव प्रधान ने उसके पट्टे दिये हैं, जहां आज भी ग्रामीण लोग खेती कर रहे हैं.
जहां तक विश्वनाथ के पागल होने का प्रमाण और कोर्ट में उसी आधार पर जमीन वापस लेने के प्रकरण का सवाल है वह किस्सा भी बिना सिर पैर का है. पिताजी जरूर कहा करते थे कि हमारा विश्वनाथ तो पगला गया है, जो सारी जमीन-जायदाद दान कर दी. हम तो अपना सारा खसरा-खतौनी रखे हैं, कि आज नहीं तो कल जमींदारी वापस मिलेगी पर इस पगले ने तो सब दान कर दी. अब तो जस्टिस चंद्रशेखर प्रसाद सिंह की पत्नी दहिया की रानी है. उनका उत्तराधिकारी पुत्र विक्रमसिंह है. दहिया ट्रस्ट इन्हीं लोगों का है जिसमें चंद्रशेखर सिंह के परिवार के सदस्य हैं. उन्होंने भी सीलिंग से बचने के लिये ट्रस्ट बनाया हुआ है.
मांडा में इनका जो किला या गढ़ी है उसका पश्चिमी हिस्सा लाल बहादुर शास्त्री सेवा निकेतन को दान कर दिया गया है. गैस्ट हाउस और कचहरी भी राजा की जमीन पर है. लाल बहादुर शास्त्री टेक्निकल विद्यालय को भी एक हिस्सा दिया हुआ है. गढ़ी में सात आंगन है, जिसमें से 6 इनके पास है. विश्वनाथ के दो बेटे हैं अभय प्रताप सिंह और अजय प्रताप सिंह, जो हाल ही अमेरिका से लौट आये हैं. जब अजय प्रताप सिंह विदेश जाने लगा तो कहा-'दाऊ हमें पैसा दो विदेश जाने की कैसे 'व्यवस्था होगी?'
उस समय विश्वनाथ वाणिज्य राज्यमंत्री थे उन्होंने कहा "मैं तो नहीं कर सकता, अपने बड़े दाऊ से कहो."तब अजे चंद्रशेखर प्रसाद से कहा कि- "पैसों की व्यवस्था करो."जज साहब बोले, "अपने बाप से कहो"तो अजय बोला "उन्हीं से तो कह रहा हूं.'
1977 के चुनाव में विश्वनाथ इलाहाबाद से हार गये थे तो बड़े भाई ने पूछा 'अब घर कैसे चलेगा?'तो विश्वनाथ ने कहा था बस ऐसे ही जमींदारी का बांड मिला है, सरकार से 14 सौ मिल ही जायेगा, उसी से काम चलाऊंगा. इस पर जज साहब बोले "खाने का अनाज और एक हजार रुपये महीने में दूंगा, तुम ठाठ से राजनीति करो."
चौधरी शिवजोखन सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्रिंसिपल बावन वर्षीय श्री उदितनारायण सिंह विश्वनाथ प्रताप सिंह के हम उम्र और साथ रह चुके हैं. विश्वनाथ के ये साथी तो थे ही शिक्षण संस्थाओं को विकास जैसे कामों में भी इनका विशेष योगदान रहा है. श्री उदितनारायण सिंह ने ही चौधरी शिवजोखन सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय 1952 में शुरू किया था.
आज जिस शिक्षण संस्था की जिम्मेदारी इन पर है, वह भी विश्वनाथ प्रताप सिंह की 1 पहल पर ही है. इनका मानना है कि यहां के विकास की प्रक्रिया ही वी.पी. के द्वारा शुरू हुयी. अगर इस क्षेत्र में विश्वनाथ जैसी विभूति नहीं होती, तो आज भी जब हम 21 वीं सदी की ओर जाने की तैयारी कर रहे हैं यह पूरा इलाका अशिक्षित और गंवार ही रहा होता. यहां तो हर घर में राजाजी के श्रद्धालु बसते हैं.
जो आदमी अपने ही महल का आधा हिस्सौ लालबहादुर शास्त्री सेवा निकेतन ट्रस्ट को दे कर बैठा हो और उन्हीं के बड़े लड़के इनके खिलाफ चुनाव में खड़े हुए थे. यह आदमी तो संयासी है. हालात यह है कि अब इनके पास कोई खासी स्थायी संपत्ति तक नहीं है.
जूते के विक्रेता अब्दुल अजीज साहब बड़े सुलझे हुए विचारों के हैं कहने लगे "कांग्रेस ने हमारे लिये क्या किया? आजादी मिली तब मैं 8 साल का था, अब तो हमारा उद्धार विश्वनाथ प्रताप सिंह जी ही करेंगे. हमारे आदमी जो हो मेरे नाना अब्दुल करीम साहब ने जवाहर लाल जी के साथ जेल काटी थी पर आज हमें कौन पूछता है? इंदिरा जी के जमाने में पुलिस डकैतों से मिली हुई थी. हमारे तो विश्वनाथ जी है, आज हमें किस बात का डर. शिवशंकर सिंह पटेल जिला बेकपई मेल के संयोजक हैं जिनके भारी सहयोग से मैं राजा मांडा के साथ में घूम सकी. वे खुद भी बी.पी. के बड़े भक्त हैं. मैं तो सिर्फ कांग्रेस का दिखावा सदस्य हूं. दिल से तो हम वी. पी. सिंह के साथ, ही हैं.