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जादूगरी ( हाथ ) की सफाई में माहिर अशोक गहलौत

 

खरी खरी / शिशिर सोनी 

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तब युवा अशोक गहलोत पहली बार NSUI महासचिव का चुनाव लड़ा था। हारे थे। संजय गांधी ने 26 की उम्र में पहली बार लोकसभा की टिकट दी। हारे थे। फिर जोधपुर से जीते।  इंदिरा गांधी के करीब आये। केंद्र में नागरिक विमानन उप मंत्री बना दिये गए। 


पिता जादूगर थे। उनसे सीखी जादूगरी काम आई। इंदिरा गांधी के पोते, पोती, राहुल, प्रियंका को जादूगरी दिखा कर मनोरंजन किया करते थे। गांधी परिवार में अच्छी खासी घुसपैठ हो गई। बीच में ऐसा समय आया जब कांग्रेस की राजनीति में गांधी परिवार एक्टिव नहीं था। नरसिंह राव अध्यक्ष थे। पीएम भी बने। राव ने अशोक गहलोत को कपड़ा मंत्री बनाया। उस समय चंद्रास्वामी की धमक थी। राव की सरकार उनके आश्रम से चलती थी। उन्होंने ही राजनीति से सन्यास का मूड बना रहे नरसिंह राव के पीएम बनने की सार्वजनिक घोषणा की थी। राव पीएम बने तो चंद्रास्वामी के अहसान तले दबे सरकार चलाने लगे। मंत्री उनके पाँव छु कर दिन की शुरुआत करते। 


एक हवाई यात्रा के दौरान स्वामी के साथ गहलोत भी यात्रा कर रहे थे। मगर, उन्होंने स्वामी के पाँव नहीं पड़े। स्वामी की वक्र दृष्टि पड़ी। पीएम राव ने उनसे इस्तीफा ले लिया। वो राजस्थान निकल लिए। सुबाई सियासत तब मदेरणा, जोशी, नटवर सिंह सहित दर्ज़न भर बड़े नेता थे। सभी से शह और मात खेलते रहे। एक के बाद एक बाजी जीतते रहे। 


कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बने। तब तक सीता राम केसरी को अध्यक्ष पद से हटाने के बाद सोनिया गांधी पूरी शक्ति के साथ पार्टी अध्यक्ष पद पर विराजमान थी। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 200 में से 153 सीटों का प्रचंड बहुमत मिला। उस समय जाट समुदाय के मदेरणा जैसे भारी भरकम नेता के बदले सोनिया गांधी ने सियासी रूप से अप्रभावी माली समुदाय के गहलोत पर भरोसा किया। बलराम जाखड़ ने अपने संबंधी मदेरणा को सोनिया गांधी के कहने पर समझाया। अशोक गहलोत राजस्थान के पहली बार सीएम बने। 


चालीस सालों के राजनीतिक सफर में अशोक गहलोत ने वो सब पाया जिसकी ख्वाहिश किसी भी राजनेता को रहती है। अब वे कांग्रेस अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। राव और केसरी के बतौर कांग्रेस अध्यक्ष गांधी परिवार का अनुभव कोई अच्छा नहीं रहा फिर भी गांधी परिवार का विश्वास ही है कि उन्हें इस पद के लिए चुना जा रहा है। अब राजस्थान में गहलोत समर्थक विधायक सचिन पायलट को सीएम नहीं बनने देना चाहते। जाहिर है गहलोत के इशारे के बिना कांग्रेस के विधायक अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को सौंप नहीं सकते। 


तो क्या माली अशोक गहलोत अपनी लगाई बगिया को उजड़ने देगा? मेरे ख्याल से नहीं। ऐसा नहीं होगा। अशोक गहलोत माली हैं तो जादूगर भी तो हैं! उनको राजस्थान के मोह से निकलना होगा। जादूगरी दिखानी होगी। 


मेरे ख्याल से राजस्थान में अगला सीएम तय करने में सार्वजनिक रूप से अजय माकन और खड़गे को भेजना जल्दबाजी में उठाया गया कदम है। अशोक गहलोत के पार्टी अध्यक्ष बनने और सीएम पद से इस्तीफ़ा देने के बाद ऐसी बैठकें होनी चाहिए थी। अशोक गहलोत को सीएम सोनिया गांधी ने बनाया था तो अब भी सोनिया गांधी ही अगला सीएम तय करेंगी, ये गहलोत को भी पता है।


इस्तीफों के ऐसे दबाव से सचिन पायलट के मंत्रिमंडल में मंत्रियों का चेहरा गहलोत खेमे से तय किया जा सकता है, गहलोत समर्थक सीपी जोशी विधानसभा अध्यक्ष बने रहें ये मोलभाव भी हो सकता है, मगर सीएम विधायक तय करें ये सिर्फ कहने को होता है। सत्य यही है कि विधायकों को एक लाइन के मेसेज पर साइन करना होगा -"विधायक दल सोनिया गांधी को अगला सीएम तय करने को अधिकृत करती है। "



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