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रवि अरोड़ा की नजर से......

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चलो किसी बहाने हिल्ले तो लगे /  रवि अरोड़ा 



जिसने भी किया है, अच्छा नहीं किया । भला क्या जरूरत थी विधायकों के विधानसभा में तम्बाकू खाने और मोबाइल पर ताश खेलने का वीडियो बनाने और फिर सार्वजनिक करने की ? खामखा विधायकों को रूसवा किया । ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया था जो फजीयत करवा दी ? तंबाकू खाना कब से गुनाह हो गया और ताश खेलते से कौन सी राष्ट्रीय हानि होती है ? करोड़ों हिंदुस्तानी ताश खेल रहे हैं और शायद इतने ही तंबाकू भी खाते होंगे। छीछालेदर करने से पहले काहे नहीं सोचा कि जब तक मुंह में तंबाकू है तब तक विधायक जी ने कोई फालतू बात भी तो नहीं की होगी ? जब तक ताश खेलने में व्यस्त रहे तब तक बिला वजह विधान सभा के काम काज में कोई विघ्न भी तो नहीं डाला होगा ? जिस विधान सभा का वीडियो बनाया गया उसके 51 फीसदी विधायक अपराधी छवि के हैं। हो सकता है कि इन दोनो माननीय के खिलाफ भी अपराध वपराध जैसा कोई मामला हो। इस हिसाब से तो दोनो विधायक जब तक अपना मन पसंदीदा कार्य करते रहे, तब तक उनसे किसी को कोई खतरा भी तो नहीं रहा होगा । वाकई जिस भी खुराफाती ने यह वीडियो बनाया, हाय लगेगी उसे लोकतन्त्र की । 


पता नहीं कहां जा रहे हैं हम । हमसे अपने माननीयों की खुशी भी नहीं देखी जाती। विधानसभा और संसद तक पहुंचने को न जाने कितने पापड़ बेलते हैं ये बेचारे ।  प्रदेश के 402 विधायकों में से 205 और 205 विधान परिषद सदस्यों में से 107 ने हाड़ तोड़ मशक्कत की होगी तभी तो उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हो पाए होंगे ?  हत्या, बलात्कार और अपहरण कोई मामूली काम होता है क्या ? इतनी मेहनत की थी तब ही तो ये दिन देखने नसीब हुए । सपा के 71 फीसदी, भाजपा के 44, रालोद के 88 और कांग्रेस व बसपा के सौ फीसदी विधायकों ने खून पसीना एक किया तब जाकर ही तो पुलिस ने उनके माननीय बनने का मार्ग प्रशस्त किया । क्या यूपी, क्या बिहार और क्या बंगाल सभी जगह हाड़ तोड़ मशक्कत करने वाले माननीय भरे नहीं पड़े क्या ? इसे समाज का उत्थान नहीं तो और क्या कहेंगे कि हर नई विधानसभा पुरानी विधानसभा से अधिक इन सुन्दर छवि वाले विधायकों से भरी होती है। वैसे हमारी संसद भी कहां पीछे है ?  वह भी तो इस मामले में हर बार तरक्की करती है। मोदी जी की पिछली सरकार में मात्र 34 फीसदी कथित तौर पर दागी थे मगर इस बार विकास कर 43 परसेंट आपराधिक छवि वाले सांसद हो गए । क्या यह मामूली बात है कि 542 सांसदों में से 233 को कभी पुलिस ढूंढती थी और उनमें से 159 हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे मामलों वांछित रहे मगर अब देश की सबसे बड़ी पंचायत उनके हवाले है  । वैसे यहां भी भाजपा का कोई जवाब नहीं और वह अपने 303 सांसदों में से 116 ऐसी खास छवि वाले सांसद चुनवा कर लाई। केरल राज्य तो जैसे सबका मार्ग प्रशस्त करने के लिए बना है और वहां के 90 परसेंट सांसद इसी ख़ास पहचान वाले हैं। हालांकि पश्चिमी बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश भी उसका अनुसरण कर रहे हैं मगर उन्हें इस मुकाम तक पहुंचने में अभी काफी वक्त लगेगा । क्या यह इतना आसान होता है कि केरल के एक ही सांसद के खिलाफ ही 204 मुकदमे दर्ज़ हों ? इतने तो किसी छोटे मोटे थाने में भी नहीं होते । क्या किसी के लिए आसान होगा इन माननीय जी का रिकॉर्ड तोड़ना ? 


अब आप ही बताइए, आपको क्या लगता है ? क्या हमें सचमुच अपने माननीयो को तंबाकू खाने और ताश खेलने से डिस्टर्ब करना चाहिए ? उस देश में जहां विधान सभाओं और लोकसभा में मारपीट, तोड़फोड़, माइक उखाड़ने और बड़े बड़ों का सिर फाड़ने की परंपरा हो, अश्लील वीडियो देखे जाते हों, वहां किसी माननीय को तंबाकू खाने और वीडियो गेम खेलने जैसे मामूली काम से रोका जाना चाहिए ? क्या हमें शुक्र नहीं करना चाहिए कि चलो किसी बहाने हिल्ले तो लगे, वरना न जाने क्या बवाल काटते ?


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