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सालगिरह पर याद शाहजहाबाद बनाने वाले की / विवेक शुक्ल

 


दिल्ली से करीब 500 किलोमीटर दूर लाहौर । कड़ाके की सर्दी का मौसम था, पर 5 जनवरी 1592 को लाहौर में सब तरफ गर्मजोशी और उत्साह का माहौल था। उस मुबारक दिन जन्म हुआ था मुगल बादशाह जहांगीर के पुत्र शाहजहां का। शाहजहां आगे चलकर मुगल सल्तनत के पांचवे शंहशाह बने। शाहजहां ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। उनकी वजह से 90 सालों के बाद दिल्ली देश की फिर से राजधानी बनी। हुमायूं के दौर के बाद शाहजहां ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। शाहजहां ने दिल्ली में शाहजहांबाद को तामीर करवाया, जिसे हम अब दिल्ली-6 भी कहते हैं। उन्होंने जामा मस्जिद और लाल किला जैसी बुलंद इमारतें तो बनवाई हीं। आप जिस दिल्ली-6 में अव्यवस्था, अराजकता और नागरिक सुविधाओं को चरमराता हुआ देखते हैं, उससे बहुत अलग था शाहजहां का शाहजहांबाद। उसका निर्माण पूरी प्लानिंग के साथ हुआ था। उसे 14 दरवाजों ने घेरा हुआ था। दरअसल वे आगरा और अपने जन्म स्थान के बीच किसी जगह को तलाश रहे थे जहां पर वे अपनी राजधानी बना सके। ये बातें हैं 1639 की है। वह तब आगरा से अपनी राजधानी शिफ्ट करने का मन बना चुके थे।


 शाहजहां,शाहजहांबाद के बल्लीमरान के वाशिंदे


शाहजहां ने वास्तुकारों, इंजीनियरों तथा ज्योतिषियों को निर्देश दिए थे वे नई राजधानी के लिए कोई उपयुक्त जगह तलाश करें। उन्हें आर्किटेक्चर के संसार में हो रहे नए-नए प्रयोगों को जानने की इच्छा रहती थी। उनकी चाहत थी कि वेनई राजधानी को एक आदर्श शहर के रूप में विकसित करें। शाहजहांबाद के गंभीरता से अध्य़यन करने वाले इतिहासकार स्टीफन ब्लैक ने एक जगह लिखा है कि दिल्ली को राजधानी बनाने के पीछे शाहजहां के दिमाग में दो बातें चल रही थीं। पहली, दिल्ली पहले भी कई राजाओं/सल्तनतों की राजधानी रह चुकी थी। दूसरी, दिल्ली का भूगोल वास्तु शास्त्र की दृष्टि से उपयुक्त था। शाहजहां ने 1639 में शाहजहांबाद के रूप में अपनी नई राजधानी बनानी चालू की। यह 9 सालों के बाद 1648 में बन गई। कहते हैं कि जब शाहजहांबाद की बसावट चालू हुई तो बल्लीमरान के आसपास बहुत खुला मैदान था। वहां पर पंजाब  से  आए  मुसलमान आकर बसने लगे  थे .अंग्रेजी की लेखिका सादिया देहलवी इस समाज से थीं। वक्त के साथ शाहजहां में नई इमारतें बनती रहीं। 


शाहजहांबाद की शान लाल किला


बेशक, शाहजहांबाद की सबसे खास इमारत लाल किला बनी। इसके लिए 29 अप्रैल, 1639 खास तारीख है। उस दिन मुगल बादशाह शाहजहां ने लाल किले की बुनियाद रखने के आदेश जारी किए थे। वह उनके शासनकाल का 12 वां वर्ष था। शाहजहां की जीवनी ‘बादशाहनामा’ में बताया गया है कि शाहजहां ने कुछ हिन्दू ज्योतिषियों और मुस्लिम धर्मगुरुओं की सलाह के बाद सलीमगढ़ के पास लाल किला का निर्माँण करने का निर्णय लिया था।  शाहजहां ने लाल किले के डिजाइन की जिम्मेदारी उस्ताद हामिद और उस्ताद अहमद को सौंपी थी। दरअसल शाहजहां अपनी पत्नी मुमताज के ताज महल परिसर में बनाए गए मकबरे के डिजाइन से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने लाल किले के डिजाइन की बड़ी जिम्मेदारी इन दोनों वास्तुकारों को दे दी। इतिहासकार राना साहवी कहती हैं – “ इन दोनों के ज्ञान और क्षमताएं निर्विवाद थीं। इसलिए ही शाहजहां ने इन पर भरोसा किया। लाल किले जैसी शानदार इमारत इन दोनों की काबिलियत की तस्दीक करती है।”


लाल किला को बनाने कौन-कौन आए थे

सर सैयद अहमद खान ने दिल्ली की खासमखास इमारतों पर लिखी अपनी किताब “असरारुस्नादीद” (पूर्वजों की निशानियां) में बताया है कि लाल किले के निर्माण के लिए 50 लाख रुपये रखे गए थे। शाहजहां ने लाल किले के निर्माण से जुड़े लोगों को साफतौर पर बता दिया था कि वे चाहते हैं कि इसका निर्माण शीघ्र हो। उनके इस आदेश के बाद देश भर के निर्माण क्षेत्र के विशेषज्ञों ने दिल्ली में डेरा जमा लिया। दोनों मुख्य वास्तुकारों को सहयोग देने के लिए संगतराश,पत्थरों पर भित्ति चित्र बनाने वाले कारीगर,मूर्तिकार और दूसरे तमाम मजदूरों ने दिन-रात काम करना शुरू कर दिया। लगभग 9 सालों के बाद लाल किला बनकर तैयार हुआ। तब ये जानकारी शाहजहां को दी गई। शाहजहां उस समय काबुल के दौर पर थे। वे तुरंत दिल्ली आए। उन्होंने 15 अक्तूबर, 1645 को इस बुलंद इमारत को पहली बार देखा। वे इसे देखते ही प्रसन्न हो गए ।  कम लोगों को पता होगा कि मुगल दौर की इस बेहतरीन  इमारत को किला ए मुबारक भी कहा जाता था। 1857 की  क्रांति के दौरान इस पर गोरे सैनिकों ने हमला करके इसे  बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया था।


कब शाहजहां ने रखी जामा मस्जिद की आधारशिला


शाहजहां का जिक्र हो और जामा मस्जिद की बात ना हो यह कैसे हो सकता है। शाहजहां के निर्देशों पर बनी जामा मस्जिद में 25 जुलाई 1657 से नमाज अदा की जा रही है। शाहजहां ने 6 अक्तूबर,1650 को जामा मस्जिद की आधारशिला रखी थी। जामा मस्जिद का निर्माण शाहजहां के खासमखास वजीर सैद उल्ला तथा फजील खान की देखरेख में चला। जामा मस्जिद का निर्माण छह सालों में पूरा हुआ था और इस पर 10 लाख रुपए खर्च हुए थे। इसके लिए लाल रंग के बलुआ पत्थर विभिन्न राजाओं और नवाबों ने दिए थे। जामा मस्जिद के तीन संगमरमर के गुबंद हैं, जिन पर काली पट्टी है। इससे जामा मस्जिद को अलग पहचान मिलती है। इसक तीन दरवाजे हैं पूर्व, दक्षिण तथा उत्तर की दिशाओं मेंI आप करीब तीस सीढ़ियों को चढ़ने के बाद जामा मस्जिद में दाखिल होते हैं। यहां पर ईद उल जुहा पर पहली बार 25 जुलाई 1657 को नमाज अदा की गई थी। फिजाओं में खुशी की बयार बह रही थी।


शाहजहां की उस बेगम ने बनवाई कौन सी मस्जिद


 अगर शाहजहां ने जामा मस्जिद का निर्माण करवाया तो उनकी एक बेगम फतेहपुरी ने शाहजहाबाद में फतेहपुरी मस्जिद को बनवाया।मुगल काल में दो तरह की मस्जिदें मुख्य रूप से तामीर हुईं। पहली, जिन्हें शंहशाह के हुक्म से तामीर करवाया गया। जामा मस्जिद इस श्रेणी में आती है। दूसरी श्रेणी में वे मस्जिदें आती हैं जो शहशाह की बेगमें या बेटियों ने तामीर करवाईं। फतेहपुरी इसी श्रेणी में आती है। दिल्ली को इतनी बुलंद मस्जिद देनी वाली फतेहपुरी बेगम के नाम से बहुत कम दिल्ली वाले वाकिफ हैं।  बेशक जामा मस्जिद के बाद ये राजधानी की सबसे भव्य मस्जिद मानी जाएगी। शाहजहां, ताजमहल और उनकी बेगमों का जिक्र होता है तो सिर्फ और मुमताज  की ही बात होती है। हालांकि शाहजहां की मुमताज बेगम के अलावा तीन और बेगमें थीं। उनमें फतेहपुरी बेगम भी थीं। उनकी कब्र आगरा में है। इस बीच, फतेहपुरी मस्जिद में सिर्फ एक गुंबद है। उसके साथ हैं दो 80 फीट ऊंची मीनारें हैं। फतेहपुरी मस्जिद के अंदर लाल पत्थर के स्तंभ बने हुए हैं। इसमेंएक कुंड भी है जो सफेद संगमरमर का है। इससे जुड़े उलेमाओं ने आजादी की पहली जंग में बढ़- चढ़कर भाग लिया था। अंग्रेज़ों ने फतेहपुरी मस्जिद को 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद नीलाम कर दिया था। तब इसे दिल्ली के रईस लाला छुन्नामल ने 19 हजार रुपये में खरीद लिया था ।

Vivek Shukla,  Navbharattimes,  5.1.22


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