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संघर्षशील, जुझारू जन सेवक डॉ हीरालाल साहा का जाना / विजय केसरी

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🙏श्रद्धांजली🙏


झारखंड के जाने-माने लब्ध प्रतिष्ठित चिकित्सक डॉ हीरालाल  का अचानक इस दुनिया से  विदा होना एक अपूरणीय क्षति है । डॉक्टर हीरालाल साहा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों बेमिसाल रहा । वे  एक प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक थे। वे जीवन पर्यंत  जनहित के मुद्दों को विभिन्न मंचों से उठाते रहे थे।‌ वे एक प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक के साथ एक मंजे हुए कथाकार व साहित्यकार थे। उनकी कई कहानियां और संस्मरण देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। उनकी लगभग बीस  से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। झारखंड से प्रकाशित हिंदी की  लब्ध प्रतिष्ठित पत्रिका 'प्रसंग'के प्रबंध संपादक भी थे। उनका जन्म 6 जनवरी 1938 को रामगढ़ जिला अंतर्गत ग्राम चक्रवाली, गोला में हुआ था। उन्होंने  प्रारंभिक शिक्षा  ग्राम चक्रवाली और  हायर सेकेंडरी हजारीबाग जिला स्कूल से पूरा किया था । वे बचपन से ही पढ़ने में  तेज थे । वे पढ़ लिख कर  जीवन में कुछ अलग करना चाहते थे। हायर सेकेंडरी अच्छे अंक से उत्तीर्ण होने के बाद उनका मन चिकित्सा सेवा में जाने को हो गया।  उनकी मां भी चाहती थी कि हीरा लाल एक सफल डॉक्टर बने । मां की इच्छा एवं हायर सेकंडरी की परीक्षा में अच्छे अंक आने के बाद वे डॉक्टरी की पढ़ाई की ओर मुड़ गए थे। उन्होंने पटना मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस, दरभंगा मेडिकल कॉलेज से एम.एस, इंग्लैंड(ग्लासगो) से एफ.आर.सी.एस, शिकागो से एफ .आई. सी .एस किया था। मेडिकल की हर परीक्षाओं में डॉक्टर हीरालाल  बेहतर अंक प्राप्त कर उत्तीर्ण होते रहे थे। 

वे विविध मेडिकल कॉलेजों से मेडिकल की डिग्रियां लेने के बाद बिहार स्वास्थ्य सेवा के लिए चुन लिए गए थे। 1962 से 1973 तक एक डॉक्टर के रूप में बिहार के विभिन्न जिलों के अस्पतालों में अपनी सेवा दी थी । इस दरमियान वे कई बड़े ऑपरेशन भी किए थे, जो पूरी तरह सफल रहे थे।  जिसकी चर्चा आज भी होती है । पटना में रहते हुए उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के निजी चिकित्सक के रूप में अपनी सेवा दी थी। एक शल्य चिकित्सक के रूप में उनकी प्रसिद्धि धीरे-धीरे कर फैलती जा रही थी। उन्होंने खुद को शल्य चिकित्सा में और तराशने के लिए इंग्लैंड की ओर रुख किया। यहीं उन्होंने एफ.आर.सी.एस की पढ़ाई पूरी की थी. पढ़ाई करते हुए उन्होंने इंग्लैंड के रॉयल लिवरपूल हॉस्पिटल में सीनियर रजिस्टार इन सर्जरी के रूप में यादगार सेवा दिया था ।  वे इंग्लैंड में लगभग 10 वर्षों तक रहे थे।  यहां वे इंग्लैंड के नामी-गिरामी चिकित्सकों के साथ बड़े-बड़े ऑपरेशन किए थे । यहां पर उन्होंने काफी नाम अर्जित किया था । अंग्रेज डॉक्टर उन्हें बहुत पसंद करते थे ।विभिन्न शल्य चिकित्सा सेवा में उनकी राय भी लिया करते थे। वे यहां एक बेहतर शल्य चिकित्सक के रूप में ख्याति अर्जित जरूर कर रहे थे । लेकिन उनका मन इंग्लैंड में नहीं लग रहा था। वे चाहते थे कि जन्मभूमि का ऋण अदा करूं। वे भारत आकर भारत वासियों की सेवा करना चाहते थे। वे इंग्लैंड से 1983 में भारत आ गए थे। कर्म भूमि के रूप में उन्होंने हजारीबाग जिला का चुनाव किया था। यहां उन्होंने पॉपुलर मेडिकल दवाखाना में एक चिकित्सक के रूप में अपनी  चिकित्सा सेवा की शुरुआत की थी। देखते ही देखते कुछ सालों में वे हजारीबाग के लोकप्रिय चिकित्सक बन गए।

इसी कालखंड में उन्होंने कुणाल नर्सिंग होम एंड रिसर्च सेंटर की स्थापना की थी। उनका उद्देश्य था कि कम से कम पैसे में गरीब लोगों का इलाज उनके नर्सिंग होम में हो। छोटी-छोटी बीमारियों में लोग बड़े-बड़े शहरों में महंगी इलाज कराने के लिए चले जाते हैं। इसे रोकने के लिए उन्होंने कुणाल नर्सिंग होम एंड रिसर्च सेंटर को हर तरह से तैयार किया।  जिस तरह बड़े-बड़े महानगरों में चिकित्सा की व्यवस्था है,  उस तरह की तमाम सुविधाओं से अपने नरसिंह होम को लैस किया। उन्होंने कुणाल नर्सिंग होम की स्थापना के 37 वर्षों के दौरान  लगभग एक लाख से अधिक सफल ऑपरेशन कर संपूर्ण भारत में इतिहास रच दिया था। एक लाख से अधिक सफल ऑपरेशन करने पर इन्हें कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया गया था। कुणाल नर्सिंग होम के माध्यम से उन्होंने गरीब लाचार लोगों की बड़ी खिदमत की । कई लोगों का उन्होंने मुफ्त ऑपरेशन भी किया। मृत्यु से कुछ माह पूर्व तक वे चिकित्सा सेवा से जुड़े हुए थे। 

छः माह पूर्व ही उन्होंने अपने घुटने का ऑपरेशन करवाया था । उसके बाद लगातार उनके स्वास्थ्य में गिरावट आ रही थी। पिछले दिनों उनके सबसे छोटे पुत्र कुणाल साहा का अचानक निधन हो जाने से वे  बहुत दुखी थे।  इसका गम को वे  बर्दाश्त नहीं कर पाए और इसी गम में  इस दुनिया से चले गए। आज से लगभग 20 दिनों पूर्व मैं और समाजसेवी ओम प्रकाश गुप्ता उनसे मिलने के लिए गए हुए थे । वे अपने पुत्र के निधन से बहुत दुःखी दिख रहे थे। उन्होंने अपने बेटे को बचाने का हर संभव प्रयास भी किया था। लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो पाए थे।  जिसका उन्हें बेहद पीड़ा हो रही थी । उन्होंने यह भी कहा कि सौ वर्ष पूरा करने के बाद ही, मैं मरूंगा । मुझे अभी बहुत काम करना है।

डॉक्टर हीरालाल साहा एक आशावादी व्यक्ति थे।  उन्हें कभी भी निराश और हताश नहीं देखा । वे विपरीत परिस्थितियों में भी हंसना और मुस्कुराना जानते थे। उन्होंने जटिल से जटिल ऑपरेशन अपने कुणाल नर्सिंग होम एंड रिसर्च सेंटर में किया था। उन्होंने कहा था कि जब रोगी ठीक हो जाता है, तब लगता है कि इस धरा पर आना सफल हुआ है। रोगी के चेहरे की मुस्कान देखकर डॉक्टर हीरालाल साहा को आगे और काम करने की प्रेरणा मिलती रही थी। रोगियों के साथ उनका व्यवहार बहुत ही मधुर होता था।  बाबू - बाबू ,बेटी - बेटी कहकर रोगियों से मिलते थे। वे अपने पेशेंट से कहते थे कि तुम बहुत जल्द ही ठीक हो जाओगे।  बिल्कुल घबराओ नहीं। डॉक्टर साहा आ गया है।  डॉक्टर साहा की यह बात सुनकर  रोगियों के चेहरे पर खुशी दिखाई देने लगती थी। 

वे देश में प्रचलित शिक्षा  एवं स्वास्थ्य व्यवस्था से बहुत दुखी थे।  वे देश की स्वास्थ्य एवं शिक्षा व्यवस्था में भारी परिवर्तन करना चाहते थे।  इस निमित उन्होंने  समय-समय पर देश के महामहिम  राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को अपने पत्रों के माध्यम से अवगत कराया था। वे एक शल्य चिकित्सक के साथ वरिष्ठ समाजसेवी थे। उनका मत था कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे पर समाज के सभी वर्ग के लोगों को समान रूप से हक होना चाहिए। इंग्लैंड में जिस तरह शिक्षा और स्वास्थ्य केंद्रीय सरकार के अधीन है, भारत में भी यह नीति लागू होनी चाहिए , ताकि तमाम देशवासियों को एक प्रकार की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा मिल सके । वे चाहते थे कि देश की राज्य सरकारें  शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले मैं केंद्र सरकार की नीतियों का पालन करें । देश के सभी छात्रों को पढ़ने का समान अवसर मिलना चाहिए। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा पूरी तरह मुक्त होनी चाहिए।  जिसका खर्च केंद्र सरकार वहन करें। 

डॉक्टर हीरालाल साहा एक कर्मठ चिकित्सक के साथ मिलन मिलनसार व्यक्ति थे । वे सामाजिक जन मुद्दों पर हमेशा मुखर होकर अपनी बातों को रखा करते थे।  जनहित के मुद्दे को लेकर हमेशा संघर्षरत भी रहे थे । प्रांत की बुनियादी सुविधाओं को दुरुस्त करने के लिए लगातार संघर्ष करते रहे थे। व्यवसायियों की हितों के रक्षा के लिए व्यवसायिक संगठनों के साथ मिलकर लगातार संघर्षरत रहे थे । व्यवसायियों की  हितों की रक्षा के लिए उन्होंने हजारीबाग चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज की स्थापना की थी । वे इस संस्था के संस्थापक उपाध्यक्ष थे । उन्होंने रोटरी क्लब जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था से जुड़कर अपनी यादगार सेवा दी थी। वे ब्लड बैंक के लिए भी लगातार काम करते रहे थे।  इसके साथ ही वे वैश्य समाज में  जागरण के लिए वैश्य संगठन से भी जुड़े रहे थे । समाज में व्याप्त जात पात, दहेज प्रथा, कुरीति आदि का विरोध करते रहे थे । 

डॉक्टर हीरालाल साहा  निश्चित तौर पर बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे । समाजसेवा, लेखन, फोटोग्राफी, यायावरी, मिशनरी ऑफ चैरिटी आदि के प्रति इनकी रूचि सदा लोगों को अपनी ओर ध्यान आकृष्ट करता रहेगा। उन्होंने साहित्यिक संस्था 'परिवेश'के लगभग 50 से अधिक गोष्ठियों में महत्वपूर्ण व्याख्यान दिया था। सामाजिक , आध्यात्मिक संस्था सागर भक्ति संगम के सक्रिय सदस्य के रूप में इन्होंने कई सामाजिक कार्यों को पूरा किया था ।  साहित्य के प्रति इनकी रूचि देखते बनती थी।  उन्होंने 'प्रखंड जीवन और डॉक्टर',  'इंग्लैंड में दस वर्ष'(संस्मरण ).'मोनी की शादी'( उपन्यास) 'दिन का उजाला रात का अंधेरा'( कहानी संग्रह), 'झारखंड का सितारा',  'अधूरी दीपावली',  'वेल्स की देवी'(उपन्यास )पश्चिमी  बयार का झोंका'( कहानी संग्रह), 'एक गांव के लड़के की कहानी' (आत्मकथा ) 'त्रासदी के 72 घंटे'( संस्मरण) आदि पुस्तकों की रचना कर समाज को अनुपम उपहार प्रदान किया। उनकी कृतियां सदा उनके ना रहने पर भी लोगों से संवाद करती रहेंगी। डॉक्टर हीरालाल साहा का जाना समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। समाज ने एक कर्मठ, जुझारू, संघर्षशील, जन सेवक को खो दिया है।


विजय केसरी,

(कथाकार / स्तंभकार)

 पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301.

 मोबाइल नंबर :-92347 99550.


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