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रवि अरोड़ा की नजर से....

 


शो मैन की वापसी  /  रवि अरोड़ा 





हिन्दी फिल्मों का शो मैन राज कपूर को कहा जाता है मगर देश का दुर्भाग्य है कि आजादी के 75 साल बाद भी हम थियेटर यानी रंगमंच अथवा नाटक का शो मैन नहीं ढूंढ पाए । हालांकि रंगमंच के ऐसे पचासों बड़े नाम हैं जो इस उपाधि का दावा कर सकते हैं मगर पता नहीं क्यों मुझे वे सभी हमारे महामानव के समक्ष बहुत छोटे जान पड़ते हैं। अब आप पूछ सकते हैं कि भला महामानव जी का नाटक से क्या लेना देना ? तो जनाब आपको उनकी अपनी किताब 'एग्जाम वॉरियर'पढ़नी चाहिए। इसमें उन्होंने स्वयं लिखा है कि बचपन में उनका नाटक से बेहद लगाव था । हो सकता है कि आपको अभी भी विश्वास न हो और आप भी मेरी तरह इसे चाय बेचने, भीख मांगने और मगरमच्छ पकड़ने जैसा ही कुछ समझें । मगर उन पर लिखी गई किताब 'द मैन ऑफ द मोमेंट'में भी लेखक एम वी कामथ ने इसकी तस्दीक की है कि स्कूल के दिनों में महामानव जी ने 'पीलू फूल'नाम का एक नाटक न केवल लिखा था अपितु उसका निर्देशन और उसमें अभिनय भी किया था । चलिए इसे भी छोड़िए और संसद के उद्घाटन को ही देख लीजिए । किसी सुपर डुपर नाटक से कम था क्या पूरा शो ?


चूंकि नाटकों से मेरा भी पुराना नाता रहा है अतः मैं रंगमंच की थोड़ी बहुत बारीकियां समझता हूं। रत्ती भर ही सही मगर मैं यह भी जानता हूं कि किसी अच्छे नाटक में क्या क्या गुण होने चाहिए । मगर हाय रे ! मेरी किस्मत, एक दशक तक नाटक लिखने, निर्देशित करने और इक्का दुक्का में अभिनय करने के बावजूद मैं आज तक यह नहीं सीख पाया कि कैसे फिक्शन को रियल जैसा बनाया जाए और कैसे सच्चे इतिहास को घंटे घड़ियालों के नाद के बीच दफ्न कर दिया जाए ?  मगर अब मैं फक्र के साथ स्वीकार करता हूं कि सभी 64 कलाओं में निपुण हमारे महामानव जी के लिए तो यह भी जैसे कोई नैसर्गिक गुण ही है। 


संसद के उद्घाटन की किसी नाटक से तुलना के लिए आप मुझे क्षमा करें मगर जनाब नाटकों को आप भी कृपा हल्के में न लें। ईसा से सैंकड़ों साल पहले ही भरत मुनि ने जिस नाट्य शास्त्र की रचना की थी उसे ऋषि मुनियों ने पांचवें वेद की संज्ञा दी थी। बेशक हम मामूली लोग नाटकों को साधारण कला मानें मगर महामानव जी हमारे सरीखे बौने नहीं हैं अतः अपने एक एक कदम को नाटक ही बना कर दम लेते हैं। अब जब संसद का उद्घाटन हो तो भला वे भला इसमें क्यों चूकते ?  उन्हें भलीभांति मालूम है कि भव्य सेट रंगमंच की पहली बड़ी जरूरत है। बताइए कहीं कोई कमी दिखी ताज़ा तरीन सेट में आपको ? नाटक को लुभावना बनाने के कलाकार का मेकअप और कॉस्टयूम उम्दा होना चाहिए । इस कसौटी पर भी क्या महामानव जी दशकों से नंबर ही नहीं बने हुए हैं ?  डायलॉग डिलीवरी में तो कोई उनके सामने टिकता ही कहां है ? शब्दों के उतार चढ़ाव के हुनर से वे थकी सी स्क्रिप्ट को भी रोचक बनाने की सलाहियत रखते हैं। मंच पर लाइट इफेक्ट में कोई कमी न रह जाए इस लिए सौ पचास कैमरों की फ्लैश लाइट के बावजूद अपनी कार में अंदर की लाइटें तक जला लेते हैं और वीराने में भी फ़्लैश लाइटें देखते ही हाथ हिलाने लगते हैं। सफल नाटक में प्रॉपर्टी यानी तामझाम की बड़ी भूमिका होती है यह भला उनसे बेहतर कौन जानता होगा ? शायद इसी लिए ही तो इस नाटक में सेंगोल को झाड़ पोंछ कर उन्होंने धारण किया । नाटक में उनकी महारत ही तो कहेंगे कि दर्शकों और अपने बीच वे किसी अन्य अभिनेता को आने ही नहीं देते । भूले भटके कोई आ जाए तो फिर उसका क्या हश्र होता है, यह सबको पता है। रंगमंच का कोई ऐसा कोना वे नहीं छोड़ते जहां से दर्शक उन्हें देख न सकें। यही नहीं सफल अभिनेता की तरह वे अपने से अधिक नामी गिरामी व्यक्ति को भी कोई भूमिका नाटक में नहीं लेने देते और स्क्रिप्ट में परिवर्तन करा कर सारे डायलॉग अपने खाते में डलवा लेते हैं । सुपर स्टार सरीखा उनका एक ही फंडा है कि मुख्य भूमिका नहीं तो नाटक नहीं। बेशक हर नाटक में संगीत नहीं हो सकता मगर महामानव जी संगीत की बैक डोर एंट्री कराना भी खूब जानते हैं। हालांकि भक्ति संगीत गाने वाले उनके आगे पीछे चलते ही हैं मगर राज्याभिषिक का नाटक हो तो घंटे घड़ियाल वालों की भी मंच पर एंट्री कराना उन्हें आता है। बताइए क्या अब भी आप उन्हें नाटक का शो मैन स्वीकार नहीं करेंगे? चलिए मत करिए मगर मैं तो महामानव जी का कायल हो चुका हूं कि कैसे विवादों में फंसा नाटक भी उन्होंने जैसे तैसे हिट करवा दिया । वाकई बड़े शो मैन हैं हमारे महामनव जी ।


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 बीच में राम चंदर 


बचपन में हम उम्र मित्रों के साथ मस्ती करते हुए हम बच्चों ने एक दूसरे को चिढ़ाने के अजब गज़ब नुस्खे सीख रखे थे। यदि किसी बच्चे को सब के केंद्र में बैठने की जगह मिल जाए तो वह यह कह कर दूसरे बच्चों चिढ़ाता था- आस पास बंदर-बीच में राम चंदर । बैठने को यदि दूसरों से अधिक ऊंची जगह किसी बच्चे को मिल जाए तो वह बड़े फक्र से घोषणा कर देता था- राजा राजा ऊपर-फलाने फलाने नीचे । हमें तब पता ही कहां था कि खेलते कूदते जो तब कहा सुना जा रहा है, वही जीवन का सत्य है । सचमुच आस पास पड़े लोग बन्दर सरीखे ही तो हैं और जो केन्द्र में बैठा है, वही राम चंदर है। जिसे ऊंची जगह अथवा पद मिल जाए, वह राजा है और जो नीचे रह गए वे और कुछ नहीं बल्कि फलाने हैं ।  अब भाजपा सांसद और डब्ल्यूएफआई के निवर्तमान अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह को ही देख लीजिए । वे ऊंच पर तो हैं ही, बीच में भी जमे हुए हैं सो आंदोलन रत महिला पहलवानों को जैसे चाहे चिढ़ा सकते हैं। बेचारे पहलवान आस पास तो क्या कोने में भी नहीं हैं इसलिए सिरे से फलाने ही साबित हो रहे हैं। वैसे बृज भूषण की किस्मत कितनी अच्छी रही जो वे 2014 में सपा छोड़ कर भाजपा में आ गए और राम चंदर हो गए । खुदा न खास्ता यदि आज भी सपा में होते तो शर्तिया आजम खां, मनीष सिसोदिया और सतेंद्र जैन जैसे सलाखों की बदौलत हड्डियों के ढांचे में तब्दील हो चुके होते । 


राजा और राम चंदर बनने के कितने फायदे हैं, यह जांचने को बृज भूषण शरण सिंह से बेहतर कोई दूसरा उदाहरण आपके पास हो तो बताइए। देश भर के लोग जब पहलवानों के साथ हों। सुप्रीम कोर्ट खुद उनकी एफआईआर कराने को सक्रिय हुआ हो। उनके लिए यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग भारत को अल्टीमेटम दे रहा हो और यही नहीं राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की एक बड़ी बिरादरी खुल कर पहलवानों के पक्ष में पंचायतें कर रही हो मगर फिर भी नेता जी से पूछताछ तक न हो ?


 आन्दोलनरत महिला पहलवान जो आरोप लगा रही हैं, वे इतने गंभीर हैं यदि इन नेता जी की जगह कोई विपक्षी नेता होता तो शर्तिया 24 घंटे भी न बीतते और उसका खेल ख़त्म कर दिया जाता । छापे, धरपकड़, बुलडोजर और न जाने क्या क्या करतब देखने को मिलते। सोचिए भला सीबीआई, आईटी और ईडी जैसे विभाग जब बिना बात अपने 100 में से 95 छापे विपक्षियों के यहां ही मारते हों, तब भला इन नेताजी का चिठ्ठा क्यों नहीं खोलते ? चिट्ठा भी वह जिसमें हत्या, हत्या का प्रयास और अपहरण जैसे दर्जनों मामले ही नहीं टाडा जैसा दाग भी हो तो उनका भला क्या हश्र होता ? और तो और दिल्ली पुलिस ने ही उनके इतने रिमांड लिए होते कि गिना ही न जाता । पिछले 9 सालों में पहले के मुकाबले चार गुना अधिक छापे मारने वाली सीबीआई और ईडी ने भाजपा शासन में 121 नेताओं पर छापे मारे और उनमें से भी 115 केवल विपक्षी ही थे तो भला इतना बड़ा शिकार कोई छुट्टा क्यों छोड़ता ? हां यदि छापे के बाद धुलाई पार्टी में आ जाते, तब शायद हिमंत बिस्वा की तरह मुख्य मंत्री ही बन जाते । वैसे पता नहीं आप किसी नतीजे पर पहुंचे हों अथवा नहीं मगर मेरी अकल में तो अच्छी तरह घुस गया है कि बीच में बैठो और शान से राजा और राम कहलवाओ। आस पास छिटके नहीं कि कोई भी बन्दर बना देगा ।


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