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बाल गंगाधर तिलक

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 पुण्यतिथि पर विशेष


बाल गंगाधर तिलक 

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 ०१अगस्त/पुण्य-तिथि

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लोकमान्य तिलक का पूरा नाम बाल गंगाधर तिलक था। उनका जन्म २३ जुलाई, १८५६ को चितपावक नामक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री गंगाधर तिलक राव एक कुशल अध्यापक थे। बाल्यावस्था में ही तिलक माता-पिता के स्नेह से वंचित हो गए थे।


 १८९९ में उन्होंने बी.ए., एल.एल.बी. की उपाधि प्राप्त की। बाल्यावस्था से ही वे अत्यन्त स्वाभिमानी व प्रतिभा सम्पन्न थे। राष्ट्र-भक्ति के भाव से प्रेरित होकर उन्होंने जनवरी,१८८० में एक विद्यालय प्रारंभ किया। प्रारंभ में केवल इसमें १८ छात्र थे। वे एक शिक्षा शास्त्री भी थे। १८९० में डेकन एजुकेशन सोसायटी में तथा फर्ग्यूसन कॉलेज की स्थापना कर उन्होंने शिक्षा प्रचार -प्रसार के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया।


 १८८१ में तिलक जी ने *मराठा* तथा *केसरी* पत्रों का प्रकाशन कर स्वाधीनता की ज्योति को जन-जन तक फैलाया। इन पत्रों में उन्होंने बड़ौदा और कोल्हापुर राज्यों के सामन्तवादी अत्याचारों की आलोचना की। अतः इन पर मुकद्दमा चलाया गया तथा उन्होंने जनसाधारण को जगाने तथा उनमें एकता और राष्ट्रीयता का भाव जगाने के लिए गणपति तथा शिवाजी महोत्सव मनाने की परंपरा प्रारंभ की।


 १८९६ में महाराष्ट्र में प्लेग की महामारी फैली। हज़ारों लोग इसकी चपेट में आए। भूचाल और अकाल के कारण जन-जीवन दूभर हो गया। इस पर भी ब्रिटिश शासन जोर जबरदस्ती करके शोषित एवं पीड़ित लोगों से लगान वसूल करने लगा। जिस से जनता क्रुद्ध हो गई।


तिलक अंग्रेजी शासन के इन जघन्य कृत्यों की खुलकर आलोचना करने लगे। इस से प्रेरित होकर क्रांतिकारियों ने रैंड तथा अयस्टर्ड नामक दो अंग्रेज़ अधिकारियों की गोली मारकर हत्या कर दी। तिलक पर राजद्रोह का मुकद्दमा चलाया गया तथा उन्हें १८ मास की सज़ा सुनाई गई।


१८८५ में कांग्रेस की स्थापना हुई। १८८९ में लोकमान्य उस में सम्मिलित हुए तथा उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को विभिन्न रूपों में गतिमान बनाया।


तिलक कांग्रेस में गरम दल के नेता थे। उन्होंने ही सर्वप्रथम यह नारा दिया कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, हम इसे लेकर रहेंगे।


 १९०८ में तिलक जी को राजद्रोह की सज़ा में ०६ वर्ष के लिए मांडले जेल भेज दिया गया। उन पर एक हज़ार रुपए का जुर्माना भी किया गया। इस का सम्पूर्ण देशवासियों ने विरोध किया। मांडले जेल में रह कर ही उन्होंने "गीता रहस्य"नामक पुस्तक लिखी।


 १९१५ में जब यह पुस्तक प्रकाशित हुई तो एक सप्ताह में इसकी पाँच हज़ार प्रतियाँ बिक गयी। श्रीमद्भागवत गीता पर प्रवृत्ति-मार्गी व्याख्या की यह एकमेव अद्वितीय पुस्तक है।


१९१६ में होम रूल की स्थापना की गई। ०१मई १९१६ को लोकमान्य पर पुनः मुकद्दमा चलाया गया तथा एक वर्ष के लिए सदाचरण का बॉण्ड भरवाया गया।


२३ जुलाई, १९१६ को उनका ६१वां जन्म-दिवस पूरे देश में बड़े धूम-धाम से मनाया गया तथा एक लाख रुपए की थैली उन्हें भेंट की गई।

 

तिलक जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे एक स्वातंत्र्य-वीर योद्धा थे और एक प्रकाण्ड विद्वान दार्शनिक भी। वे एक शिक्षा शास्त्री थे और एक पत्रकार भी। कट्टर सनातनी ब्राह्मण होते हुए भी वे समरसता तथा सामाजिक न्याय के पक्षधर थे। वे कहते थे - "अस्पृश्यता को अपने समाज में क़ायम रखना ईश्वर के सामने पाप करने जैसा है।"

卐"आर्केटिक होम ऑफ वेदाज्"तथा "गीता रहस्य"नामक पुस्तक लिखकर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि उनमें लेखन की अद्भुत प्रतिभा थी।

 

उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में नरम पंथ का अंत कर गरम पंथ का प्रतिपादन किया। अतः १९०५ से १९२० तक वे राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व करते रहे। इसलिए इस युग को तिलक युग कहा जाता है।

 

महात्मा गांधी ने उन्हें अपना राजनीतिक गुरु स्वीकार करते हुए लिखा है - आने वाली पीढ़ियां उन्हें आधुनिक भारत के जन्म दाता के रूप में याद करेंगी।


तिलक जी ने हिन्दुत्व को राष्ट्रीयता का माध्यम बनाया तथा भारत की प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति की पुनर्स्थापना कर राष्ट्रीय जनजागरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया ! 


वे पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली के घोर विरोधी थे तथा कहा करते थे कि कोई भी व्यक्ति या समाज अपनी प्रकृति तथा अपने परम्परागत स्वाभाविक रूप को विस्मृत करके जीवित नहीं रह सकता।


०१ अगस्त १९२० को मात्र ६४ वर्ष की आयु में इस महापुरुष की जीवन लीला समाप्त हो गई।


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