अतीत का अध्ययन
प्रस्तुति - डॉ. ममता शरण
इतिहास का प्रयोग विशेषतः दो अर्थों में किया जाता है।जैसे एक है प्राचीन अथवा विगत काल की घटनाएँ और दूसरा उन घटनाओं के विषय में धारणा भारतीय संस्कृति में इतिहास शब्द (इति + ह + आस ; अस् धातु, लिट् लकार अन्य पुरुष तथा एक वचन) का तात्पर्य है "ऐसा वस्तुत: हुआ है "। यूनान के लोग इतिहास के लिए Ιστορία (अंग्रेज़ी: history) शब्द का प्रयोग करते थे। "हिस्टरी"का शाब्दिक अर्थ "बुनना"था। अनुमान होता है कि ज्ञात घटनाओं को व्यवस्थित ढंग से बुनकर ऐसा चित्र उपस्थित करने की कोशिश की जाती थी जो सार्थक और सुसंबद्ध हो। भारतीय इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है।
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भारतीय संस्कृति में किसी भी अनुष्ठान से पहले जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते अमुक। बोलते हैं, इसका अर्थ क्या है?
विज्ञान और अन्वेषण से पता चला है कि कोई 500 लाख साल पहले भारतीय उपमहाद्वीप , एशिया से अलग एक पृथक महादीप था जो कालांतर में आकर एशिया से जुड़ गया । इसी कारण हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ जो दो महाद्वीप के टकराव से एक कृत्रिम पर्वत है।
भारतीय कालगणना के हिसाब से 2023 में,कल्प के आरंभ से 197,29,49,123 वर्ष , सृष्टि के आरंभ से 195,58,85,123 वर्ष, कलियुग 5123 वर्ष और विक्रम संवत से 2079 वर्ष बीत चुके हैं । यह गणना भारतीय पंचाग से लिया गया है । भारत वर्ष का प्राचीन काल में एक सुनियोजित और क्रमानुसार इतिहास था जो सत्य घटनाओं पर आधारित था । इसे पुराण के नाम से जाना जाता है। विदेशी आक्रांताओं ने उन सारी पुस्तकों को जला दिया या नष्ट कर दिया जिसमे भारत का इतिहास दर्ज था । नालंदा विश्वविद्यालय, तक्षशीला विश्वविद्यालय में लूटपाट कर इस्लामिक लुटेरों ने मानव विकास की क्रमानुकुल इतिहास सहित कई ज्ञान विज्ञान की पुस्तकों को नष्ट कर दिया है । आज का इतिहास अंग्रेजों द्वारा रचित इतिहास है जो मानवता के विकास को क्रमानुकूल नही दिखाता।
इसलिए आज के इतिहास शब्द का अर्थ है - परम्परा से प्राप्त उपाख्यान समूह (जैसे कि लोक कथाएँ), वीरगाथा (जैसे कि महाभारत) या ऐतिहासिक साक्ष्य।[1] इतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं उसमें अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखनेवाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है।[2] दूसरे शब्दों में मानव की विशिष्ट घटनाओं का नाम ही इतिहास है।[3] या फिर प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली, मानवजाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन इतिहास है।[4] इन घटनाओं व ऐतिहासिक साक्ष्यों को तथ्य के आधार पर प्रमाणित किया जाता है।
आम तौर पर यह समझा जाता है कि इतिहास की परंपरा सूत व चारण परंपरा से विकसित हुई, जिनके स्तुति काव्य स्वाभाविक रूप से राजाओं और उनके पूर्वजों के वीरता के कृत्यों, विजय और धार्मिकता की कहानियों पर केंद्रित था। इस तरह के पाठ और, बाद में, शिलालेख और साहित्यिक रचनाएँ, सम्राट की महानता और अक्सर उसके दिव्य-वंश की पुष्टि करने का काम करते। यह है एक शैली है जिसमें अतिशयोक्ति को किसी भी प्रकार से दोष नहीं माना जाता। परिणामस्वरूप, रघुवंश और भरत वंश के राजवंशों की यशकाव्य की यह रचनाएं हैं एकत्र होकर अंततः रामायण और महाभारत के स्मारकीय इतिहास-काव्यों में विकसित हुईं।[5]
इतिहास के मुख्य आधार युगविशेष और घटनास्थल के वे अवशेष हैं जो किसी न किसी रूप में प्राप्त होते हैं। जीवन की बहुमुखी व्यापकता के कारण स्वल्प सामग्री के सहारे विगत युग अथवा समाज का चित्रनिर्माण करना दुःसाध्य है। सामग्री जितनी ही अधिक होती जाती है उसी अनुपात से बीते युग तथा समाज की रूपरेखा प्रस्तुत करना साध्य होता जाता है। पर्याप्त साधनों के होते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि कल्पनामिश्रित चित्र निश्चित रूप से शुद्ध या सत्य ही होगा। इसलिए उपयुक्त कमी का ध्यान रखकर कुछ विद्वान् कहते हैं कि इतिहास की संपूर्णता असाध्य सी है, फिर भी यदि हमारा अनुभव और ज्ञान प्रचुर हो, ऐतिहासिक सामग्री की जाँच-पड़ताल को हमारी कला तर्कप्रतिष्ठत हो तथा कल्पना संयत और विकसित हो तो अतीत का हमारा चित्र अधिक मानवीय और प्रामाणिक हो सकता है। सारांश यह है कि इतिहास की रचना में पर्याप्त सामग्री, वैज्ञानिक ढंग से उसकी जाँच, उससे प्राप्त ज्ञान का महत्त्व समझने के विवेक के साथ ही साथ ऐतिहासक कल्पना की शक्ति तथा सजीव चित्रण की क्षमता की आवश्यकता है। स्मरण रखना चाहिए कि इतिहास न तो साधारण परिभाषा के अनुसार विज्ञान है और न केवल काल्पनिक दर्शन अथवा साहित्यिक रचना है। इन सबके यथोचित संमिश्रण से इतिहास का स्वरूप रचा जाता है।