भारत की पत्रकारिता शिक्षा का नया अध्याय / प्रो. रामजी लाल जांगिड
रविवार, 30 जून 2024
आज से ठीक 37 साल पहले (यानी 30 जून 1987 को )
मैंने भारत में पत्रकारिता शिक्षा का नया अध्याय भारत सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्रालय के अन्तर्गत स्वशासी शिक्षा केन्द्र भारतीय जन संचार संस्थान, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नया परिसर, नई दिल्ली में पूर्णकालिक स्नातकोत्तर हिन्दी पत्रकारिता डिप्लोमा पाठ्यक्रम
शुरू करके लिखा था।
पूरे देश में उस समय यह अपने ढंग का और किसी भी भारतीय भाषा में पहला तथा एक मात्र प्रयास था।
इसके द्वारा पत्रकारिता शिक्षा का लाभ भारत के हिन्दीभाषी क्षेत्रों और ओडिशा के गांवों तथा कस्बों में हाशिए पर पड़े हुए वर्गों की प्रतिभाओं तक पहुंच सका। पहली कक्षा (1987-88) में तीन छात्राएं थी। इस कक्षा की एक प्रतिभावान छात्रा बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हंसराज कालेज की लोकप्रिय प्राचार्या प्रोफेसर (डा.) रमा के नाम से जानी गई।
उसने पत्रकारिता, लेखन और पत्रकारिता शिक्षा में नाम कमाया। उसे अन्य संस्थाओं के अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय ने भी सम्मानित किया। अनुसूचित जाति की एक छात्रा भी इस पाठ्यक्रम के कारण आकाशवाणी की अधिकारी बन सकी।
इस कक्षा में वास्तविक पत्रकार बनने वाले जगदीश चंद्र आर्य ने लगभग एक दर्जन विश्वविद्यालयों से विभिन्न विषयों की उपाधियां प्राप्त कीं।
समाज के दबे कुचले वर्ग से आने के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता बनने वाले इस वास्तविक पत्रकार की सरलता, ईमानदारी, जुझारूपन, निडरता और करुणा की प्रशंसा जितनी की जाएं उतनी कम है। वह हमेशा वंचितों और शोषितों के साथ खड़ा रहा है।
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हरियाणा के एक छोटे से गांव में जन्मे जगदीश के घरवालों ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उनका बेटा पश्चिम रेलवे का वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी और देश के सर्वोच्च न्यायालय का वकील बनेगा तथा उसका नाम भारत के पूर्व रेल मंत्री श्री पवन बंसल और पूर्व विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज के साथ पंजाब विश्वविद्यालय पूर्व छात्र संघ द्वारा बनाए गए अतिथि घर के संस्थापकों की सूची में शामिल होगा।
जगदीश की याददाश्त और हाज़िर जवाबी गज़ब की है।
डा. भीमराव आम्बेडकर की सीख संगठित बनो, शिक्षित बनो और आगे बढ़ो 'पर चलने वाला अनुसूचित जाति का हरियाणा का ही इसी कक्षा का दूसरा छात्र हरीश कुमार है। उसने हमारे संस्थान से पत्रकार बनने के बाद जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से पी.एच.डी की और वर्ष 1998 में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक में पत्रकारिता व जन संचार विभाग की स्थापना की। उसने अपनी मेहनत और पक्के इरादे के बल पर इस विभाग को हरियाणा और पंजाब में सर्वश्रेष्ठ बनाने का लक्ष्य रखा है। अभी वह अपने विश्वविद्यालय का डीन है।
मैं हरीश का तीन बातों के लिए प्रशंसक हूं
1, सबसे पहला अच्छा काम उसने अपनी बीमार पत्नी की बेहतर देखभाल करके और अपना गुर्दा दान देकर किया।
दूसरा अच्छा काम उसने अपनी बेटी और बेटे को भारत के प्रसिद्ध शिक्षा केंद्रों में भर्ती करा कर किया।
तीसरा अच्छा काम भारत के विभिन्न राज्यों के विश्वविद्यालयों का कार द्वारा दौरा करके हाई वे पर बने ढ़ाबों की जानकारी सोशल मीडिया पर लगातार डालकर किया।
एक अनुसूचित जाति का इस कक्षा का तीसरा छात्र है रामेश्वर दयाल
सांध्य टाइम्स से लम्बे समय तक जुड़े रहने के बाद अब वह अमरीकी समाचार चैनल का सम्पादक बन गया है। दिल्ली के चांदनी चौक की गलियों में कैसा सामूहिक जीवन रहा है, किस दुकान की मिठाई और चाट का स्वाद कैसा है यह उसे अच्छी तरह मालूम है।
उसने भी अपने परिवार की नई पीढ़ी को इंग्लैंड के विश्वविद्यालय में पहुंचाया है। वह कम बोलता है। आजकल कभी कभार टीवी पर भी विशेषज्ञ के तौर पर आता है।