Quantcast
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

नीदरलैंड्स ने इंडोनेशिया से माफी मांगी





प्रस्तुति-- अखौरी प्रमोद

अब्दुल खालिक को वो पल हल्का सा याद है जब 70 साल पहले डच सैनिक उनके पिता को गांव से ले गए थे ताकि उन्हें मौत की सजा दी जाए.
आज 75 साल के हो चुके खालिक बताते हैं, "उन्होंने मुझे कहा था कि बेटा घर चलो."सुलावेसी द्वीप के बुलुकुम्बा जिले में बातचीत के दौरान खलिक की आंखें दूर कहीं अतीत में देख रही हैं. तब गांव से ले जाने के अगले ही दिन उनके पिता को गोली मार दी गई थी. 1940 में नीदरलैंड्स और इंडोनेशिया के बीच संघर्ष में मारे गए लोगों में से एक उनके पिता भी थे.
इंडोनेशिया उपनिवेशवाद से निकलने के लिए आजादी की लड़ाई लड़ रहा था. यह दौर था 1946 से 47 का. डच सैनिक सुलावेसी पर अपना कब्जा फिर से जमाना चाहते थे. इंडोनेशिया के स्वतंत्रता युद्ध का यह सबसे बुरा दौर था. इसमें इंडोनेशिया के लिए लड़ रहे, उस समय विद्रोही कहे जाने वाले कई सौ लोग मारे गए.
इतिहास का काला पन्ना
कुछ विधवाओं के पिछले साल मुआवजा जीतने के बाद नीदरलैंड्स ने आजादी की लड़ाई के दौरान मौत की सजाओं के लिए माफी मांगी और वादा किया कि मारे गए लोगों के जीवनसाथियों को मुआवजा देंगे. लेकिन इतिहास का यह काला पन्ना खुलने के बाद डच सेना के अत्याचारों का अध्याय एक बार और खुला और नए सिरे से और मुआवजे की मांग उठाई जाने लगी.
आजादी की उस लड़ाई के बाद ही इंडोनेशिया डच उपनिवेश से आजाद हो कर एक आजाद देश बना. खालिक और बाकी लोग मांग कर रहे हैं कि मारे गए लोगों की विधवाओं को ही नहीं उनके बच्चों को भी मुआवजा मिलना चाहिए. ये लोग अपना मुकदमा नीदरलैंड्स की अदालत में ले गए हैं. अगस्त में द हेग में उनके मुकदमे की सुनवाई होगी.
खालिक कहते हैं, "यह अन्याय है. गिरफ्तार लोग जेल में बंद लोग और मारे गए लोग समान थे, घटनाएं एक जैसी थी फिर बच्चों के साथ अलग व्यवहार क्यों."उन्होंने कहा कि वह मुआवजा अपने 32 नाती पोतों और एक पड़पोते के साथ बांटेंगे.
82 साल के शाफियाह पतुरुसी ने सुलावेसी में अपने पिता और भाई को खोया. उन्होंने कहा, "मैं डच लोगों से न्याय चाहता हूं क्योंकि पिता को खोने का दर्द पति को खोने के दर्द से बुरा अगर न भी हो तो उतना ही गहरा तो है."
समय निकल रहा है
नीदरलैंड्स की मानवाधिकार वकील जिन्होंने इंडोनेशियाई विधवाओं के लिए मुआवजा जीता है, वह कुछ बच्चों के लिए भी लड़ रही हैं. उन्हें सफलता की उम्मीद है लेकिन साथ ही उन्होंने चेतावनी भी दी है कि यह मुश्किल भी हो सकता है क्योंकि समय निकलता जा रहा है.
नीदरलैंड्स के एक फाउंडेशन में काम करने वाले जेफरी पोंडाग मुआवजे के लिए लड़ने वालों की मदद कर रहे हैं. वे कहते हैं कि धन के अलावा हम चाहते हैं कि डच सरकार उपनिवेश के काले सच को भी उजागर करे ताकि वहां के लोगों को भी पता हो कि उन्होंने जो किया वह गलत था. नीदरलैंड्स की सरकार ने इसके जवाब में कहा, "जिस तरह से इंडोनेशिया और डच अलग हुए हैं, उस दर्दनाक दौर के लिए डच सरकार ने बार बार माफी मांगी है."
धुंधली यादें
डच सेना के कप्तान रेमंड वेस्टरलिंग सुलावेसी की हत्याओं के जिम्मेदार हैं. उनके आदेश से सेना पहले तो इस द्वीप के गांवों को घेर लेती. फिर संदिग्ध लड़ाकों को ढूंढा जाता और फिर बिना किसी मुकदमे के मार दिया जाता. महीनों तक चले इस अभियान में कितने लोग मारे गए इसके आंकड़े पर विवाद हैं. इंडोनेशिया में कुछ लोग मानते हैं कि इसमें करीब 40,000 लोग मारे गए जबकि ऐतिहासिक शोधों के मुताबिक ये आंकड़ा तीन से चार हजार के करीब का है.
ये ऑपरेशन काफी विवादास्पद हुआ और इसके कारण वेस्टरलिंग को 1948 में हटा दिया गया. लेकिन युद्ध अपराधी के तौर पर उन पर कभी मुकदमा नहीं चला. सुलावेसी की पुरानी पीढ़ी की यादें अभी भी ताजा हैं.
एएम/आईबी (एएफपी)

DW.DE


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>