प्रस्तुति-- अमित मिश्रा, रतन सेन भारती
लोकतंत्र के तीन मुख्य स्तम्भ है विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में सर्वमान्य तरीके से प्रेस या मीडिया को स्वीकार किया गया है।
वर्तमान में अगर हम सभी व्यवस्थाओं पर नजर डालें तो पता चलता है कि लोकतंत्र के इस चौथे स्तमभ ने बाकी तीनों स्तम्भों पर हावी होने की कोशिश की है।वर्तमान में मीडिया अपना जो चेहरा प्रस्तुत कर रहा है वह अब अपने खतरनाक रूप में सामने आ रहा है। मीडिया अपनी भूमिका को ज्यादा आंक कर एक ऐसी तस्वीर पेश कर रहा है कि लोकतंत्र के बाकी तीनों स्तम्भों की कार्यप्रणाली पर इसका प्रभाव पड़ने लगा है।जब भी मीडिया और समाज की बात की जाती है तो मीडिया को समाज में जागरूकता पैदा करने वाले एक साधन के रूप में देखा जाता है,जो की लोगों को सही व गलत करने की दिशा में एक प्रेरक का कार्य करता नज़र आता है।
भय,भूख, भ्रष्टाचार व महंगाई से त्रस्त जनता का“अन्ना हजारे”के आंदोलन को देश भर में व्यापक जन समर्थन मिलना मीडिया के कारण ही संभव हो सका है अर्थात् यह भी कह सकते हैं कि”जनलोकपाल“पर लोगों को एकजुट करने में मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, लेकिन दूसरी ओर इसी का दूसरा पक्ष यह भी है कि भ्रष्टाचार के कई मुद्दों पर मीडिया घरानों की कई प्रमुख हस्तियों के नाम आने के बाद मीडिया की किरकिरी को भी इस जन आंदोलन में मीडिया ने जनता का साथ देकर दबाने का प्रयास किया है। कुल मिलाकर देखा जाये, तो आज के परिपेक्ष्य में मीडिया की स्थिति एक बिचौलिये से कम नहीं है, आज मीडिया केवल और केवल बिचौलिये का कार्य करने में लिप्त है।
जैसे-जैसे विकास एवं आधुनिकता के नये-नये आयाम स्थापित होते जा रहे है, ठीक उसी प्रकार मीडिया की निष्पक्षता तथा समाचार को जनता के बीच प्रसारित करने की तकनीक में भी कई तरह के परिवर्तन एवं उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठना लाजमी है। वर्तमान में मीडिया जगत में युवाओं की चमक-दमक काफी बढ़ी है,अब इसे युवक-युवतियां अपने उज्जवल कैरियर के रूप में देखने लगे हैं।चमकता-दमकता कैरियर,नेम-फेम की चाह ने युवाओं को काफी हद तक इस ओर खीचा है,जिससे हजारों युवा पत्रकार बनने की चाह लेकर मीडिया जगत में आ रहे हैं और नित्य नये-नये पत्र-पत्रिकाएँ व न्यूज चैनल भी सामने आ रहे हैं।लेकिन समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर पाने में आज ये काफी पीछे रह गये हैं।आज ये पत्रकार उद्योगपतियों व राजनीतिज्ञों के आगे घुटने टेके नज़र आते हैं।सामाजिक सरोकारों से इतिश्री करने के साथ ही पैसा कमाने की होड़ में आम जनता का दर्द व उनकी परेशानियां उद्योग घरानों व राजनीतिज्ञों के रूपये के आगे दबकर रह गये हैं।यहीं कारण है कि पत्रकारिता की निष्पक्षता को लेकर पत्रकार खुद जनता के कटघरे में खड़ा है।आज पत्रकारिता अपने मार्ग से भटक रही है। पत्रकारिता के आधार पर प्राप्त शक्तियों का पत्रकार दुरूपयोग कर रहे हैं। पहले पत्रकार देश में हो रहे घपलों, घोटालों व भ्रष्टाचार को उजागर करते थे लेकिन अब वह इसका हिस्सा बन रहे हैं। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले और कोयला घोटाले में जिस तरह शीर्ष पत्रकारों का नाम आया उससे पत्रकार की गरिमा पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में सभी स्तरों के पत्रकार प्रेस को प्राप्त अधिकारों को अपने विशेषाधिकार समझने लगे हैं और इसका दुरुपयोग कर रहे हैं। स्वयं की सहूलियत के लिए पत्रकार ऐसा करते हैं।उनमें अब समाज के दिशा निर्देशक के बजाए राजनेता के गुण आ रहे हैं।सही मायने में तो मीडिया की भूमिका एक पोस्टमैन की है,लेकिन आज मीडिया का स्वरूप बदल गया है।मीडिया की बागडोर कॉरपोरेट घरानों के हाथों में है।उनके लिए नैतिकता कोई मायने नहीं रखती।
आज इलेक्ट्रॉनिक्स मिडिया ने जो भूमिका निभाई है वो शक के घेरे में है की वो इस अभियान को सफल बनाना चाहते हैं या रोकना चाहते हैं । क्या ये उनकी मजबूरी है की उन्हें 24 घंटे न्यूज़ दिखाने के लिए कुछ गैर जिम्मेदार नेताओ से उनकी राय पूछनी पड़ती है जो बेतुके आरोपों कि जड़ी लगा देता है । जिसका कोई आधार नहीं होता और उसे ब्रकिंग न्यूज़ बनाकर बार बार दिखाया जाता है !ताकि आम लोग जो स्वामी जी बारे में कुछ नहीं जानते वो आरोपों के आधार पर अपनी राय कायम कर सकें। कुछ वरिष्ट पत्रकारों से बातचीत करने पर उन्होंने भी माना की कुछ चैनेल अपनी नैतिकता और फ़र्ज़ को भूलकर मुद्दे से आम इन्सान को हटाना चाहते हैं।क्या ये माना जाए की उन्हें चैनेल के मालिकों की तरफ से कोई दिशा निर्देश था या सरकारी दबाव में ऐसा कर रहे थे ।
निस्संदेह लोगों तक सही और आंखों देखी सही सूचना देना मीडिया की जिम्मेवारी है।अगर त्रासदी का हाहाकार हो, अनर्थ घटित हो रहा हो, हजारों लोग अपने सामने हुए सैकड़ों मौतों से भयभीत हो, भूखे, प्यासे हों भटके हुए राहत के इंतजार में त्राहि-त्राहि कर रहे हों तो मीडिया की भूमिका क्या होनी चाहिए? क्या ऐसे समय वह उसी रूप में अपनी भूमिका निभा सकता है जैसी आम घटनाओं में? पत्रकार भी मनुष्य हैं और उसकी सम्पूर्ण भूमिका का केन्द्र बिन्दु मानव हित ही है। उत्तराखंड त्रासदी में पहली प्राथमिकता लोगों की तलाश, उनको बचाकर सुरक्षित स्थान पर लाना और फिर राहत देना ही हो सकता है। मीडिया की मानवीय और मान्य भूमिका केवल और केवल इस प्राथमिकता को बल देना ही हो सकता है। हर आपदाएं प्रत्येक मीडियाकर्मी से ऐसी ही मानवीय भूमिका की अपेक्षा रखती हैं। यही नहीं अपनी खबरों, उनके लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा, अपनी भाव-भंगिमा….आदि सभी में अति संयम, शालीनता,सतर्कता की आवश्यकता होती है।
मीडिया को हम केवल लताड़ दें, इससे बात नहीं बनने वाली। हालांकि मीडिया को अब जनसामान्य की उन चिंताओं के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है जो मीडिया की प्राथमिकताओं के खिलाफ विकसित हो रही है। मीडिया को अपनी कार्यप्रणाली पर सोचने की जरूरत है कि कैसे वह अब समाज की आवाज बन सके।हालांकि बिना बाजार के मीडिया चल भी नहीं सकता, लेकिन उसे ध्यान रखना होगा कि वह लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करे। लोकहित के लक्ष्य को प्रधानता देते हुए समाज के संपूर्ण तबके पर उसे नजर रखनी होगी। क्योंकि जिसे देश की मीडिया राष्ट्रीय संस्था की तरह पनपी और काम करती रही हो वहां वह सिर्फ बाजार की एजेंट नहीं हो सकती। अर्थात मीडिया को स्वमेव अपनी भूमिका पर फिर सोचना होगा।
विवेक मनचन्दा ,लखनऊ