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प्रस्तुति-- अमित कुमार , अभिषेक रसतोगी
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पार्टी
के शीर्ष दलित नेता बंगारू लक्ष्मण का शनिवार शाम निधन हो गया.
इस दलित नेता को इतिहास में ‘स्टिंग पत्रकारिता’ के सबसे बड़े शिकार के रूप में याद किया जाएगा .
एक पत्रिका के स्टिंग ऑपरेशन के कारण नेता का राजनीतिक करियर समाप्त हो गया और वह दोबारा उभर नहीं सके .
दलित परिवार में 17 मार्च 1939 में जन्मे लक्ष्मण किशोरावस्था से ही राजनीति में सक्रि य रहे और वकालत की . शुरूआती दिनों में वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे .
1969 में जनसंघ की स्थापना के समय लक्ष्मण संस्था का हिस्सा थे और बाद में संगठन भाजपा में बदल गई और वह भाजपा के शीर्ष दलित नेता बनकर उभरे .
सक्रिय राजनीति में आने से पहले वह आंध्र प्रदेश विद्युत बोर्ड से जुड़े रहे और मजदूर संघ में भी सक्रिय रहे .
इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौराप विपक्ष के कार्यकर्ताओं के साथ 1975 में वह भी जेल गए .
राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बनने से पहले लक्ष्मण भाजपा के आंध्र प्रदेश शाखा से जुड़े रहे . बाद में वह पार्टी के राष्ट्रीय सचिव रहे और 2000 में पहली दलित अध्यक्ष भी बने .
वह 1996 से 2002 तक राज्यसभा के सदस्य रहे और अटल बिहार वाजपेयी के नेतृत्व में 1999 और 2000 में राजग की सरकार के दौरान वह केन्द्रीय रेल राज्य मंत्री रहे .
2000-01 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर रहते हुए तहलका ने उन्हें रक्षा सौदे में एक लाख रूपए का रिश्वत लेते हुए कैमरे पर पकड़ा था . इस स्टिंग के बाद उन्होंने भाजपा अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया और इसके साथ ही सक्रि य राजनीति से उनका अंत हो गया .
दिल्ली की एक अदालत ने 2012 में इस मामले में लक्ष्मण को चार वर्ष कैद की सजा सुनायी लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें जमानत मिल गई .
लक्ष्मण की पत्नी सुशीला ने राजस्थान के जालोर से भाजपा की टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीता है .
इस मामले में सजा सुनाए जाने के बाद लक्ष्मण भाजपा के किसी कार्यक्र म में बिरले ही नजर आए .
लेकिन बाद में तहलका के संस्थापक-संपादक तरूण तेजपाल को यौन शोषण के मामले में गोवा में गिरफ्तार किया गया तो लक्ष्मण ने एक बयान जारी कर कहा था, ‘‘अब मैं दोषमुक्त हो गया .’’