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नरेन्द्र मोदी को देखिए तकनीक के सहारे

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प्रस्तुति राकेश गांधी धीरेन्द्र रॉय

नरेन्द्र मोदी
Narendra Modi taking oath.jpg
प्रधानमन्त्री पद की शपथ लेते नरेन्द्र मोदी

Taking office
२६ मई २०१४
Presidentप्रणव मुखर्जी
Succeedingमनमोहन सिंह

गुजरात के १४वें मुख्यमन्त्री
In office
७ अक्तूबर २००१ – २२ मई २०१४
Governorसुन्दरसिंह भण्डारीकैलाशपति मिश्रबलराम जाखड़नवलकिशोर शर्माएस. सी. जमीरकमला बेनीवाल
पूर्वा धिकारीकेशूभाई पटेल
उत्तरा धिकारीआनंदीबेन पटेल

जन्म17 सितम्बर १९५० (आयु 63)वड़नगर, गुजरात, भारत
राजनीतिक दलभारतीय जनता पार्टी
जीवन संगीजसोदाबेन चिमनलाल[1]
विद्यालय कॉलेजदिल्ली विश्वविद्यालयगुजरात विश्वविद्यालय
धर्महिन्दू
हस्ताक्षर
जालस्थलआधिकारिक जालस्थल
नरेन्द्र दामोदरदास मोदी (, गुजराती: નરેંદ્ર દામોદરદાસ મોદી; जन्म: १७ सितम्बर, १९५०) भारतके वर्तमान प्रधानमन्त्रीहैं। भारत के राष्‍ट्रपतिप्रणव मुखर्जीने उन्हें २६ मई २०१४ को भारत के प्रधानमन्त्रीपद की शपथ दिलायी।[2][3]वे स्वतन्त्र भारत के १५वें प्रधानमन्त्री हैं तथा इस पद पर आसीन होने वाले स्वतंत्र भारत में जन्मे प्रथम व्यक्ति हैं।
उनके नेतृत्व में भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टीने २०१४ का लोकसभा चुनावलड़ा और २८२ सीटें जीतकर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की।[4]एक सांसदके रूप में उन्होंने उत्तर प्रदेशकी सांस्कृतिक नगरी वाराणसीएवं अपने गृहराज्य गुजरात के वडोदरासंसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और दोनों जगह से जीत दर्ज़ की।[5][6]
इससे पूर्व वे गुजरातराज्य के १४वें मुख्यमन्त्रीरहे। उन्हें उनके काम के कारण गुजरात की जनता ने लगातार ४ बार (२००१ से २०१४ तक) मुख्यमन्त्री चुना। गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञानमें स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त नरेन्द्र मोदी विकास पुरुष के नाम से जाने जाते हैं और वर्तमान समय में देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से हैं।।[7]माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर भी वे सबसे ज्यादा फॉलोअर वाले भारतीय नेता हैं।[8]टाइमपत्रिका ने मोदी को पर्सन ऑफ़ द ईयर २०१३ के ४२ उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया है।[9]
अटल बिहारी वाजपेयीकी तरह नरेन्द्र मोदी एक राजनेताऔर कवि हैं। वे गुजराती भाषाके अलावा हिन्दी में भी देशप्रेम से ओतप्रोत कविताएँ लिखते हैं।[10][11]

अनुक्रम

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निजी जीवन[संपादित करें]


नरेन्द्र मोदी को उनके 64वें जन्मदिन (17 सितम्बर 2013) पर मिठाई खिलाती उनकी माँ हीराबेन मोदी
नरेन्द्र मोदी का जन्म तत्कालीन बॉम्बे राज्यके महेसाना जिलास्थित वडनगरग्राम में हीराबेन मोदी और दामोदरदास मूलचन्द मोदी के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में १७ सितम्बर १९५० को हुआ था।[12]वह पूर्णत: शाकाहारीहैं।[13]भारत पाकिस्तान के बीच द्वितीय युद्धके दौरान अपने तरुणकाल में उन्होंने स्वेच्छा से रेलवे स्टेशनों पर सफ़र कर रहे सैनिकों की सेवा की।[14]युवावस्था में वह छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषदमें शामिल हुए | उन्होंने साथ ही साथ भ्रष्टाचार विरोधी नव निर्माण आन्दोलन में हिस्सा लिया। एक पूर्णकालिक आयोजक के रूप में कार्य करने के पश्चात् उन्हें भारतीय जनता पार्टीमें संगठन का प्रतिनिधि मनोनीत किया गया।[15]किशोरावस्था में अपने भाई के साथ एक चाय की दुकान चला चुके मोदी ने अपनी स्कूली शिक्षा वड़नगरमें पूरी की।[12]उन्होंने आरएसएस के प्रचारक रहते हुए 1980 में गुजरात विश्वविद्यालयसे राजनीति विज्ञानमें स्नातकोत्तर परीक्षा दी और एम॰एससी॰की डिग्री प्राप्त की।[16]
अपने माता-पिता की कुल छ: सन्तानों में तीसरे पुत्र नरेन्द्र ने बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में अपने पिता का भी हाथ बँटाया। [17][18]बड़नगर के ही एक स्कूल मास्टर के अनुसार नरेन्द्र हालाँकि एक औसत दर्ज़े का छात्र था, लेकिन वाद-विवाद और नाटक प्रतियोगिताओं में उसकी बेहद रुचि थी।[17]इसके अलावा उसकी रुचि राजनीतिक विषयों पर नयी-नयी परियोजनाएँ प्रारम्भ करने की भी थी।[19]
13 वर्ष की आयु में नरेन्द्र की सगाई जसोदा बेन चमनलाल के साथ कर दी गयी और जब उनका विवाह हुआ, वह मात्र 17 वर्ष के थे। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार पति-पत्नी ने कुछ वर्ष साथ रहकर बिताये।[20]परन्तु कुछ समय बाद वे दोनों एक दूसरे के लिये अजनबी हो गये क्योंकि नरेन्द्र मोदी ने उनसे कुछ ऐसी ही इच्छा व्यक्त की थी।[17]जबकि नरेन्द्र मोदी के जीवनी-लेखक ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है:[21]
"उन दोनों की शादी जरूर हुई परन्तु वे दोनों एक साथ कभी नहीं रहे। शादी के कुछ बरसों बाद नरेन्द्र मोदी ने घर त्याग दिया और एक प्रकार से उनका वैवाहिक जीवन लगभग समाप्त-सा ही हो गया।"
पिछले चार विधान सभा चुनावों में अपनी वैवाहिक स्थिति पर खामोश रहने के बाद नरेन्द्र मोदी ने कहा कि अविवाहित रहने की जानकारी देकर उन्होंने कोई पाप नहीं किया। नरेन्द्र मोदी के मुताबिक एक शादीशुदा के मुकाबले अविवाहित व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ जोरदार तरीके से लड़ सकता है क्योंकि उसे अपनी पत्नी, परिवार व बालबच्चों की कोई चिन्ता नहीं रहती।[22]हालांकि नरेन्द्र मोदी ने शपथ पत्र प्रस्तुत कर जसोदाबेन को अपनी पत्नी स्वीकार किया है।[23]

प्रारम्भिक सक्रियता और राजनीति[संपादित करें]

नरेन्द्र जब विश्वविद्यालय के छात्र थे तभी से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघकी शाखा में नियमित जाने लगे थे। इस प्रकार उनका जीवन संघ के एक निष्ठावान प्रचारक के रूप में प्रारम्भ हुआ [16][24]उन्होंने शुरुआती जीवन से ही राजनीतिक सक्रियता दिखलायी और भारतीय जनता पार्टीका जनाधार मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभायी। गुजरात में शंकरसिंह वघेलाका जनाधार मजबूत बनाने में नरेन्द्र मोदी की ही रणनीति थी।
अप्रैल १९९० में जब केन्द्र में मिली जुली सरकारों का दौर शुरू हुआ, मोदी की मेहनत रंग लायी, जब गुजरातमें १९९५ के विधान सभाचुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने बलबूते दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। इसी दौरान दो राष्ट्रीय घटनायें और इस देश में घटीं। पहली घटना थी सोमनाथसे लेकर अयोध्यातक की रथयात्रा जिसमें आडवाणीके प्रमुख सारथी की मूमिका में नरेन्द्र का मुख्य सहयोग रहा। इसी प्रकार कन्याकुमारीसे लेकर सुदूर उत्तर में स्थित काश्मीरतक की मुरली मनोहर जोशीकी दूसरी रथ यात्रा भी नरेन्द्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। इसके बाद शंकरसिंह वघेलाने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया, जिसके परिणामस्वरूप केशुभाई पटेलको गुजरात का मुख्यमन्त्रीबना दिया गया और नरेन्द्र मोदी को दिल्लीबुला कर भाजपामें संगठन की दृष्टि से केन्द्रीय मन्त्री का दायित्व सौंपा गया।
१९९५ में राष्ट्रीय मन्त्री के नाते उन्हें पाँच प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम दिया गया जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। १९९८ में उन्हें पदोन्नत करके राष्ट्रीय महामन्त्री (संगठन) का उत्तरदायित्व दिया गया। इस पद पर वह अक्तूबर २००१ तक काम करते रहे। भारतीय जनता पार्टी ने अक्तूबर २००१ में केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात के मुख्यमन्त्री पद की कमान नरेन्द्र मोदी को सौंप दी।

गुजरातके मुख्यमन्त्री के रूप में[संपादित करें]


2012 में जामनगरकी एक चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए नरेन्द्र मोदी का चित्र
नरेन्द्र मोदी अपनी विशिष्ट जीवन शैली के लिये समूचे राजनीतिक हलकों में जाने जाते हैं। उनके व्यक्तिगत स्टाफ में केवल तीन ही लोग रहते हैं, कोई भारी-भरकम अमला नहीं होता। लेकिन कर्मयोगी की तरह जीवन जीने वाले मोदी के स्वभाव से सभी परिचित हैं इस नाते उन्हें अपने कामकाज को अमली जामा पहनाने में कोई दिक्कत पेश नहीं आती। [25]उन्होंने गुजरात में कई ऐसे हिन्दू मन्दिरों को भी ध्वस्त करवाने में कभी कोई कोताही नहीं बरती जो सरकारी कानून कायदों के मुताबिक नहीं बने थे। हालाँकि इसके लिये उन्हें विश्व हिन्दू परिषदजैसे संगठनों का कोपभाजन भी बनना पड़ा, परन्तु उन्होंने इसकी रत्ती भर भी परवाह नहीं की; जो उन्हें उचित लगा करते रहे।[26]वे एक लोकप्रिय वक्ता हैं, जिन्हें सुनने के लिये बहुत भारी संख्या में श्रोता आज भी पहुँचते हैं। कुर्ता-पायजामा व सदरी के अतिरिक्त वे कभी-कभार सूट भी पहन लेते हैं। अपनी मातृभाषा गुजरातीके अतिरिक्त वह राष्ट्रभाषा हिन्दीमें ही बोलते हैं।[27]
मोदी के नेतृत्व में २०१२ में हुए गुजरात विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया। भाजपा को इस बार ११५ सीटें मिलीं।

गुजरात के विकास की योजनाएँ[संपादित करें]

मुख्यमन्त्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के विकास[28]के लिये जो महत्वपूर्ण योजनाएँ प्रारम्भ कीं व उन्हें क्रियान्वित कराया, उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
  • पंचामृत योजना[29] - राज्य के एकीकृत विकास की पंचायामी योजना,
  • सुजलाम् सुफलाम् - राज्य में जलस्रोतों का उचित व समेकित उपयोग, जिससे जल की बर्बादी को रोका जा सके,
  • कृषि महोत्सव– उपजाऊ भूमि के लिये शोध प्रयोगशालाएँ,
  • चिरंजीवी योजना– नवजात शिशु की मृत्युदर में कमी लाने हेतु,
  • मातृ-वन्दना– जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु,
  • बेटी बचाओ– भ्रूण-हत्या व लिंगानुपात पर अंकुश हेतु,
  • ज्योतिग्राम योजना– प्रत्येक गाँव में बिजली पहुँचाने हेतु,
  • कर्मयोगी अभियान– सरकारी कर्मचारियों में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा जगाने हेतु,
  • कन्या कलावाणी योजना– महिला साक्षरता व शिक्षा के प्रति जागरुकता,
  • बालभोग योजना– निर्धन छात्रों को विद्यालय में दोपहर का भोजन,[30]

मोदी का वनबन्धु विकास कार्यक्रम[संपादित करें]

उपरोक्त विकास योजनाओं के अतिरिक्त मोदी ने आदिवासी व वनवासी क्षेत्र के विकास हेतु गुजरात राज्य में वनबन्धु विकास[31]हेतु एक अन्य दस सूत्री कार्यक्रम भी चला रक्खा है जिसके सभी १० सूत्र निम्नवत हैं:
१-पाँच लाख परिवारों को रोजगार, २-उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता, ३-आर्थिक विकास, ४-स्वास्थ्य, ५-आवास, ६-साफ स्वच्छ पेय जल, ७-सिंचाई, ८-समग्र विद्युतीकरण, ९-प्रत्येक मौसम में सड़क मार्ग की उपलब्धता और १०-शहरी विकास।

श्यामजीकृष्ण वर्मा की अस्थियों का भारत में संरक्षण[संपादित करें]

नरेन्द्र मोदी ने प्रखर देशभक्त श्यामजी कृष्ण वर्माव उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत की स्वतन्त्रता के ५५ वर्ष बाद २२ अगस्त २००३ को स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवासे स्वदेश वापस मँगाया[32]और माण्डवी (श्यामजी के जन्म स्थान) में क्रान्ति-तीर्थके नाम से एक पर्यटन स्थल बनाकर उसमें उनकी स्मृति को संरक्षण प्रदान किया।[33]मोदी द्वारा १३ दिसम्बर २०१० को राष्ट्र को समर्पित इस क्रान्ति-तीर्थ को देखने दूर-दूर से पर्यटकगुजरात आते हैं।[34]गुजरात सरकार का पर्यटन विभाग इसकी देखरेख करता है।[35]

आतंकवाद पर मोदी के विचार[संपादित करें]

१८ जुलाई २००६ को मोदी ने एक भाषण में आतंकवाद निरोधक अधिनियमजैसे आतंकवाद-विरोधी विधान लाने के विरूद्ध उनकी अनिच्छा को लेकर भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंहकी आलोचना की। मुंबई की उपनगरीय रेलों में हुए बम विस्फोटोंके मद्देनज़र उन्होंने केंद्र से राज्यों को सख्त कानून लागू करने के लिए सशक्त करने की माँग की।[36]उनके शब्दों में -
"आतंकवाद युद्ध से भी बदतर है। एक आतंकवादी के कोई नियम नहीं होते। एक आतंकवादी तय करता है कि कब, कैसे, कहाँ और किसको मारना है। भारत ने युद्धों की तुलना में आतंकी हमलों में अधिक लोगों को खोया है।"[36]
नरेंद्र मोदी ने कई अवसरों पर कहा था कि यदि भाजपा केंद्र में सत्ता में आई, तो वह सन् २००४ में उच्चतम न्यायालयद्वारा अफज़ल गुरुको फाँसी दिए जाने के निर्णय का सम्मान करेगी। भारत के उच्चतम न्यायालय ने अफज़ल को २००१ में भारतीय संसद पर हुए हमले के लिए दोषी ठहराया था एवं ९ फ़रवरी २०१३ को तिहाड़ जेल में उसे लटकाया गया।[37]

विवाद एवम् आलोचनाएँ[संपादित करें]

२००२ के गुजरात दंगे[संपादित करें]


23 दिसम्बर 2007 की प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया के सवालों का उत्तर देते हुए नरेन्द्र मोदी
२७ फरवरी २००२ को अयोध्यासे गुजरात वापस लौट कर आ रहे कारसेवकों को गोधरास्टेशन पर खड़ी ट्रेन में एक हिंसक भीड़ द्वारा आग लगा कर जिन्दा जला दिया गया। इस हादसे में 59 कारसेवक मारे गये थे।[38]रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप समूचे गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। मरने वाले ११८० लोगों में अधिकांश संख्या अल्पसंख्यकों की थी। इसके लिये न्यूयॉर्क टाइम्सने मोदी प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया।[27]कांग्रेससहित अनेक विपक्षी दलों ने नरेन्द्र मोदी के इस्तीफे की माँग की।[39][40]मोदी ने गुजरात की दसवीं विधानसभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। परिणामस्वरूप पूरे प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।[41][42]राज्य में दोबारा चुनाव हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टीने मोदी के नेतृत्व में विधान सभा की कुल १८२ सीटों में से १२७ सीटों पर जीत हासिल की।
अप्रैल २००९ में भारत के उच्चतम न्यायालयने विशेष जाँच दल भेजकर यह जानना चाहा कि कहीं गुजरात के दंगों में नरेन्द्र मोदी की साजिश तो नहीं।[27]यह विशेष जाँच दल दंगों में मारे गये काँग्रेसी सांसदऐहसान ज़ाफ़री की विधवा ज़ाकिया ज़ाफ़री की शिकायत पर भेजा गया था।[43]दिसम्बर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने एस०आई०टी० की रिपोर्ट पर यह फैसला सुनाया कि इन दंगों में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।[44]
उसके बाद फरवरी २०११ में टाइम्स ऑफ इंडियाने यह आरोप लगाया कि रिपोर्ट में कुछ तथ्य जानबूझ कर छिपाये गये हैं[45]और सबूतों के अभाव में नरेन्द्र मोदी को अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता।[46][47]इंडियन एक्सप्रेसने भी यह लिखा कि रिपोर्ट में मोदी के विरुद्ध साक्ष्य न मिलने की बात भले ही की हो किन्तु अपराध से मुक्त तो नहीं किया।[48]द हिन्दूमें प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ़ इतनी भयंकर त्रासदी पर पानी फेरा अपितु प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न गुजरात के दंगों में मुस्लिम उग्रवादियों के मारे जाने को भी उचित ठहराया।[49]भारतीय जनता पार्टीने माँग की कि एस०आई०टी० की रिपोर्ट को लीक करके उसे प्रकाशित करवाने के पीछे सत्तारूढ काँग्रेस पार्टी का राजनीतिक स्वार्थ है इसकी भी उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच होनी चाहिये।[50]
सुप्रीम कोर्ट ने बिना कोई फैसला दिये अहमदाबाद के ही एक मजिस्ट्रेट को इसकी निष्पक्ष जाँच करके अबिलम्ब अपना निर्णय देने को कहा।[51]अप्रैल 2012 में एक अन्य विशेष जाँच दल ने फिर ये बात दोहरायी कि यह बात तो सच है कि ये दंगे भीषण थे परन्तु नरेन्द्र मोदी का इन दंगों में कोई भी प्रत्यक्ष हाथ नहीं।[52] 7 मई 2012 को उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जज राजू रामचन्द्रन ने यह रिपोर्ट पेश की कि गुजरात के दंगों के लिये नरेन्द्र मोदी पर भारतीय दण्ड संहिताकी धारा १५३ ए (1) (क) व (ख), १५३ बी (1), १६६ तथा ५०५ (2) के अन्तर्गत विभिन्न समुदायों के बीच बैमनस्य की भावना फैलाने के अपराध में दण्डित किया जा सकता है।[53]हालँकि रामचन्द्रन की इस रिपोर्ट पर विशेष जाँच दल (एस०आई०टी०) ने आलोचना करते हुए इसे दुर्भावना व पूर्वाग्रह से परिपूर्ण एक दस्तावेज़ बताया।[54]
२६ जुलाई २०१२ को नई दुनियाके सम्पादक शाहिद सिद्दीकी को दिये गये एक इण्टरव्यू में नरेन्द्र मोदी ने साफ शब्दों में कहा - "२००४ में मैं पहले भी कह चुका हूँ, २००२ के साम्प्रदायिक दंगों के लिये मैं क्यों माफ़ी माँगूँ? यदि मेरी सरकार ने ऐसा किया है तो उसके लिये मुझे सरे आम फाँसी दे देनी चाहिये।"मुख्यमन्त्री ने गुरुवार को नई दुनिया से फिर कहा- “अगर मोदी ने अपराध किया है तो उसे फाँसी पर लटका दो। लेकिन यदि मुझे राजनीतिक मजबूरी के चलते अपराधी कहा जाता है तो इसका मेरे पास कोई जबाव नहीं है।"
यह कोई पहली बार नहीं है जब मोदी ने अपने बचाव में ऐसा कहा हो। वे इसके पहले भी ये तर्क देते रहे हैं कि गुजरात में और कब तक गुजरे ज़माने को लिये बैठे रहोगे? यह क्यों नहीं देखते कि पिछले एक दशक में गुजरात ने कितनी तरक्की की? इससे मुस्लिम समुदाय को भी तो फायदा पहुँचा है।
लेकिन जब केन्द्रीय क़ानून मन्त्री सलमान खुर्शीदसे इस बावत पूछा गया तो उन्होंने दो टूक जबाव दिया - "पिछले बारह वर्षों में यदि एक बार भी गुजरात के मुख्यमन्त्री के खिलाफ़ एफ०आई०आर० दर्ज़ नहीं हुई तो आप उन्हें कैसे अपराधी ठहरा सकते हैं? उन्हें कौन फाँसी देने जा रहा है?"[55]
बाबरी मस्ज़िदके लिये पिछले ५४ सालों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे ९२ वर्षीय मोहम्मद हाशिम अंसारी के मुताबिक भाजपा में प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के प्रान्त गुजरातमें सभी मुसलमान खुशहाल और समृद्ध हैं। जबकि इसके उलट कांग्रेसहमेशा मुस्लिमों में मोदी का भय पैदा करती रहती है।[56]


२०१४ लोकसभा चुनाव[संपादित करें]

प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार[संपादित करें]


नरेन्द्र मोदी को बधाई देते मुरली मनोहर जोशी (१३ सितम्बर २०१३ का एक चित्र)
गोआमें भाजपा कार्यसमिति द्वारा नरेन्द्र मोदी को 2014 के लोक सभा चुनावअभियान की कमान सौंपी गयी थी।[57]१३ सितम्बर २०१३ को हुई संसदीय बोर्ड की बैठक में आगामी लोकसभा चुनावों के लिये प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। इस अवसर पर पार्टी के शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवाणीमौजूद नहीं रहे और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंहने इसकी घोषणा की।[58][59]मोदी ने प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद चुनाव अभियान की कमान राजनाथ सिंहको सौंप दी। प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने के बाद मोदी की पहली रैली हरियाणाप्रान्त के रिवाड़ीशहर में हुई।[60]
एक सांसद प्रत्याशी के रूप में उन्होंने देश की दो लोकसभा सीटों वाराणसीतथा वडोदरासे चुनाव लड़ा और दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से विजयी हुए।[61][62][63]

लोक सभा चुनाव २०१४ में मोदी की स्थिति[संपादित करें]


रिवाड़ी की रैली को सम्बोधित करते हुए नरेन्द्र मोदी
न्यूज़ एजेंसीज व पत्रिकाओं द्वारा किये गये तीन प्रमुख सर्वेक्षणों ने नरेन्द्र मोदी को प्रधान मन्त्री पद के लिये जनता की पहली पसन्द बताया था। [64][65][66]एसी वोटर पोल सर्वे के अनुसार नरेन्द्र मोदी को पीएम पद का प्रत्याशी घोषित करने से एनडीएके वोट प्रतिशत में पाँच प्रतिशत के इजाफ़े के साथ १७९ से २२० सीटें मिलने की सम्भावना व्यक्त की गयी। [66]सितम्बर २०१३ में नीलसन होल्डिंग और इकोनॉमिक टाइम्सने जो परिणाम प्रकाशित किये थे उनमें शामिल शीर्षस्थ १०० भारतीय कार्पोरेट्स में से ७४ कारपोरेट्स ने नरेन्द्र मोदी तथा ७ ने राहुल गान्धीको बेहतर प्रधानमन्त्री बतलाया था।[67][68]नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेनमोदी को बेहतर प्रधान मन्त्री नहीं मानते ऐसा उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था। उनके विचार से मुस्लिमों में उनकी स्वीकार्यता संदिग्ध हो सकती है जबकि जगदीश भगवती और अरविन्द पानगढ़िया को मोदी का अर्थशास्त्र बेहतर लगता है।[69]योग गुरु स्वामी रामदेवव मुरारी बापू जैसे कथावाचक ने नरेन्द्र मोदी का समर्थन किया।[70]
पार्टी की ओर से पीएम प्रत्याशी घोषित किये जाने के बाद नरेन्द्र मोदी ने पूरे भारत का भ्रमण किया। इस दौरान तीन लाख किलोमीटर की यात्रा कर पूरे देश में ४३७ बड़ी चुनावी रैलियाँ, ३-डी सभाएँ व चायपर चर्चा आदि को मिलाकर कुल ५८२७ कार्यक्रम किये। चुनाव अभियान की शुरुआत उन्होंने २६ मार्च २०१४ को मां वैष्णो देवीके आशीर्वाद के साथ जम्मूसे की और समापन मंगल पाण्डेकी जन्मभूमि बलियामें किया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत की जनता ने एक अद्भुत चुनाव प्रचार देखा।[71]यही नहीं, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने २०१४ के चुनावों में अभूतपूर्व सफलता भी प्राप्त की।

परिणाम[संपादित करें]

चुनाव में जहाँ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन३३६ सीटें जीतकर सबसे बड़े संसदीय दल के रूप में उभरा वहीं अकेले भारतीय जनता पार्टी ने २८२ सीटों पर विजय प्राप्त की। काँग्रेस केवल ४४ सीटों पर सिमट कर रह गयी और उसके गठबंधन को केवल ५९ सीटों से ही सन्तोष करना पड़ा।[72]नरेन्द्र मोदी स्वतन्त्र भारत में जन्म लेने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जो सन २००१ से २०१४ तक लगभग १३ साल गुजरात के १४वें मुख्यमन्त्री रहे और हिन्दुस्तानके १५वें प्रधानमन्त्री बने।
एक ऐतिहासिकतथ्य यह भी है कि नेता-प्रतिपक्ष के चुनाव हेतु विपक्ष को एकजुट होना पड़ेगा क्योंकि किसी भी एक दल ने कुल लोकसभा सीटों के १० प्रतिशत का आँकड़ा ही नहीं छुआ।

भाजपा संसदीय दल के नेता निर्वाचित[संपादित करें]


भारतीय संसद भवन में प्रवेश करने से पूर्व प्रणाम करते हुए नरेन्द्र मोदी
२० मई २०१४ को संसद भवन में भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित भाजपा संसदीय दल एवं सहयोगी दलों की एक संयुक्त बैठक में जब लोग प्रवेश कर रहे थे तो नरेन्द्र मोदी ने प्रवेश करने से पूर्व संसद भवनको ठीक वैसे ही जमीन पर झुककर प्रणाम किया जैसे किसी पवित्र मन्दिरमें श्रद्धालु प्रणाम करते हैं। संसद भवन के इतिहास में उन्होंने ऐसा करके समस्त सांसदों के लिये उदाहरण पेश किया। बैठक में नरेन्द्र मोदी को सर्वसम्मति से न केवल भाजपा संसदीय दल अपितु एनडीए का भी नेता चुना गया। राष्ट्रपति ने नरेन्द्र मोदी को भारत का १५वाँ प्रधानमन्त्री नियुक्त करते हुए इस आशय का विधिवत पत्र सौंपा। नरेन्द्र मोदी ने सोमवार २६ मई २०१४ को प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली।[3]

वडोदरा सीट से इस्तीफ़ा दिया[संपादित करें]

नरेन्द्र मोदी ने २०१४ के लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक अन्तर से जीती गुजरात की वडोदरा सीट से इस्तीफ़ा देकर संसद में उत्तर प्रदेश की वाराणसी सीट का प्रतिनिधित्व करने का फैसला किया और यह घोषणा की कि वह गंगाकी सेवा के साथ इस प्राचीन नगरी का विकास करेंगे।[73]

भारत के प्रधानमन्त्री[संपादित करें]

ऐतिहासिक शपथ ग्रहण समारोह[संपादित करें]

नरेन्द्र मोदी का २६ मई २०१४ से भारत के १५वें प्रधानमन्त्री का कार्यकाल राष्ट्रपति भवनके प्रांगण में आयोजित शपथ ग्रहण के पश्चात प्रारम्भ हुआ।[74]मोदी के साथ ४५ अन्य मन्त्रियोंने भी समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ ली।[75]प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी सहित कुल ४६ में से ३६ मन्त्रियों ने हिन्दी में जबकि १० ने अंग्रेज़ी में शपथ ग्रहण की।[76]समारोह में विभिन्न राज्यों और राजनीतिक पार्टियों के प्रमुखों सहित सार्कदेशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया गया।[77][78]इस घटना को भारतीय राजनीति की राजनयिक कूटनीति के रूप में भी देखा जा रहा है।
सार्क देशों के जिन प्रमुखों ने समारोह में भाग लिया उनके नाम इस प्रकार हैं।[79]
ऑल इण्डिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) और राजग का घटक दल मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कझगम (एमडीएमके) नेताओं ने नरेन्द्र मोदी सरकार के श्रीलंकाई प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने के फैसले की आलोचना की।[90][91]एमडीएमके प्रमुख वाइको ने मोदी से मुलाकात की और निमंत्रण का फैसला बदलवाने की कोशिश की जबकि कांग्रेस नेता भी एमडीएमके और अन्ना द्रमुक आमंत्रण का विरोध कर रहे थे।[92]श्रीलंका और पाकिस्तान ने भारतीय मछुवारों को रिहा किया। मोदी ने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित देशों के इस कदम का स्वागत किया।[93]
इस समारोह में भारत के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया गया था। इनमें से कर्नाटक के मुख्यमंत्री, सिद्धारमैया (कांग्रेस) और केरल के मुख्यमंत्री, उम्मन चांडी (कांग्रेस) ने भाग लेने से मना कर दिया।[94]भाजपा और कांग्रेस के बाद सबसे अधिक सीटों पर विजय प्राप्त करने वाली तमिलनाडु की मुख्यमंत्रीजयललिताने समारोह में भाग न लेने का निर्णय लिया जबकि पश्चिम बंगाल के मुख्यमन्त्रीममता बनर्जीने अपनी जगह मुकुल रॉयऔर अमित मिश्राको भेजने का निर्णय लिया।[95][96]
वड़ोदरा के एक चाय विक्रेता किरण महिदा, जिन्होंने मोदी की उम्मीदवारी प्रस्तावित की थी, को भी समारोह में आमन्त्रित किया गया। अलवत्ता मोदी की माँ हीराबेन और अन्य तीन भाई समारोह में उपस्थित नहीं हुए, उन्होंने घर में ही टीवी पर लाइव कार्यक्रम देखा।[97]

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण उपाय=[संपादित करें]

भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंध=[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

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इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

बाह्य सूत्र[संपादित करें]

आधिकारिक
राजनीतिक कार्यालय
पूर्वाधिकारीकेशुभाई पटेलगुजरात के मुख्यमंत्री
६ अक्टूबर २००१–२१ मई २०१४
उत्तराधिकारीआनंदीबेन पटेल
पूर्वाधिकारीमनमोहन सिंहभारत के प्रधानमंत्री
वर्तमान

२६ मई २०१४ से
पदस्थ





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