प्रस्तुति-- स्वामी शरण
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लीडरएक अंग्रेज़ीपत्र है जिसका प्रारंभ मदन मोहन मालवीयजी ने ‘अभ्युदय‘के पश्चात् 24 अक्टूबर, 1910को किया था। 'लीडर'के हिन्दी संस्करण 'भारत'का आरम्भ सन् 1921में हुआ। मालवीय जी ‘लीडर‘ के प्रति सदा संवेदनशील रहे, डेढ़ वर्ष बीतते-बीतते ‘लीडर‘ घाटे की स्थिति में जा पहुंचा। महामना उस दौरान काशी हिंदू विश्वविद्यालयके लिए धन एकत्र करने में लगे हुए थे, जब ‘लीडर‘ के संचालकों ने मालवीय जी को घाटे की स्थिति से अवगत कराया तो वे विचलित हो उठे। उन्होंने कहा कि, ‘‘मैं लीडर को मरने नहीं दूंगा।‘‘ काशी विश्वविद्यालय की स्थापना का कार्य बीच में ही रोककर मालवीय जी ‘लीडर‘ के लिए आर्थिक व्यवस्था के कार्य में जुट गए। पहली झोली उन्होंने अपनी पत्नी के आगे यह कहते हुए फैलाई कि ‘‘यह मत समझो कि तुम्हारे चार ही पुत्रहैं। दैनिक लीडर तुम्हारा पांचवां पुत्र है। अर्थहीनता के कारण यह संकट में पड़ गया है। तो क्या मैं पिताके नाते उसे मरते हुए देख सकता हूं।‘‘ मालवीय जी के अथक प्रयासों से 'लीडर'बच गया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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