Submitted by admin on Thu, 2014-09-18 15:01

समाचार4मीडिया ब्यूरो
‘आज की हिंदी पत्रकारिता’ के विषय पर आगरा की संस्था हिंदी गौरव और केंद्रीय हिंदी संस्थान ने संयुक्त रूप से एक संगोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम का आयोजन आगरा स्थित केंद्रीय हिंदी संस्थान के नज़ीर सभागार में किया गया। इस अवसर पर कुछ प्रमुख हिंदी पत्रकारों को सम्मानित भी किया गया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक प्रो. मोहन ने की। मंच पर अलीगढ़ से आए ‘अभिनव प्रसंगवश’ लघु पत्रिका के संपादक डॉ. वेदप्रकाश अभिताभ, हिंदी संस्थान के प्राध्यापक डॉ. विद्याशंकर शुक्ल और डॉ. देवेन्द्र शुक्ल, हिंदी गौरव की ओर से शालिनी कुलश्रेष्ठ और मनीष जैन उपस्थित थे।
हिंदी गौरव का परिचय देते हुए मनीष जैन ने कहा कि हिंदी गौरव हिंदी के गौरव के लिए चलाई जा रही एक देशव्यापी मुहिम है। हिंदी गौरव नामक हमारी वेबसाइट में दुनिया भर की खबरें हिंदी में पढ़ी जा सकती हैं। सत्ताइस देशों में अनूदित इन खबरों के साथ हम साठ भाषाओं में काम कर रहे हैं।
‘अभिनव प्रसंगवश’ के संपादक डॉ. वेदप्रकाश अभिताभ ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे पास हिंदी पत्रकारिता की एक क्रांतिकारी विरासत मौजूद है। इस विरासत में भारतीय अस्मिता के लिए कड़ा संघर्ष रहा है। हिंदी पत्रकारिता अब तक मिशनरी भाव से की जाती रही है किंतु अब इसमें व्यावसायिकता का समावेश हो गया है। बावजूद इसके, इसमें अभी भी मूल्यों को बचाने का संघर्ष मौजूद है। इस परंपरा को प्रभाष जोशी और राजेंद्र यादव जैसे लोगों ने आगे बढ़ाया है।
केंद्रीय हिंदी संस्थान के डॉ. देवेंद्र शुक्ल ने कहा कि पत्रकारिता की जिस विरासत पर आज की पत्रकारिता गर्व करना चाहती है, उसे सबसे पहले उस विरासत को हासिल करने की योग्यता अर्जित करनी चाहिए।
डॉ. विद्याशंकर शुक्ल का कहना था कि हिंदी पत्रकारिता के बहाने हिंदी को पूरे भारत से जोड़ने की जरूरत है। इस दृष्टि से पूर्वोत्तर भारत में हिंदी की भूमिका महत्वपूर्ण है।
वहीं केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक प्रो. मोहन ने कहा कि आज दुनिया के लगभग 90 देशों में हिंदी के पठन-पाठन की व्यवस्था है। मीडिया ने हिंदी को वैश्विक बना दिया है।
प्रो. मोहन ने कहा कि अगर पूरे भारत में एक ही भाषा में संप्रेषण हुआ होता तो हिन्दुस्तान 1857 में ही आजाद हो गया होता, 1947 तक इंतजार नहीं करना पड़ता। आजादी के संघर्ष के दौरान हिंदी जैसे-जैसे मिश्रित और संप्रेषण योग्य हुई, हम आजादी के उतने ही निकट आए।