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स्वतंत्रता का इतिहास पत्रकारिता की अनुगूंज : नरेश कौशल
Posted On September - 19 - 2011

रेवाड़ी में रविवार को बाबू बालमुकुंद गुप्त स्मृति समारोह के दौरान साहित्यकार रघुविंद्र को सम्मानित करते हुए हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक श्याम सखा श्याम व मध्य में दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल व हरिराम आर्य व डा. चंद्र त्रिखा (दायें)।
उक्त विचार दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल ने आज यहां बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य एवं संरक्षण परिषद द्वारा नगर के किशन लाल पब्लिक कालेज परिसर में आयोजित मूर्धन्य पत्रकार बाबू बालमुकुंद गुप्त स्मृति समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। मुख्यातिथि हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डा. श्याम सखा श्याम थे व साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डा. चन्द्र त्रिखा विशिष्ट अतिथि थे। अध्यक्षता हरियाणा स्वतंत्रता सेनानी सम्मान समिति के अध्यक्ष हरिराम आर्य ने की।
श्री कौशल ने कहा कि आज पत्रकारिता के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। पत्रकारिता में अमूल्यन का दौर जारी है। कलम की विश्वसनियता को बरकरार रखने के लिए इमानदार प्रयास करने होंगे तथा क्रंातिकारी कलमकार बाबू बालमुकुंद गुप्त की निर्भीकता, साधना व राष्ट्रीयता को अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता के अतीत का इतिहास राष्ट्रीय पुनर्जागरण व स्वाधीनता संग्राम का इतिहास रहा है। दास्तां की जिस जंजीर में बूढ़े भारत को 1857 में जकड़ लिया था, उस जंजीर को तोड़ कर फेंकने की उद्दाम भावना से प्रेरित होकर ही हिन्दी के पत्रकार संघर्ष की भूमिका में उतरे थे। सांस्कृतिक उत्थान एवं राष्ट्रीय चेतना के विकास में समाचार पत्रों व पत्रकारों का जो योगदान रहा है, वह भुलाया नहीं जा सकता।
श्री कौशल ने स्व. गुप्त को याद करते हुए कहा कि उनकी नौकरी इसलिए छुड़वाई गई थी कि उनके मालिक को यह आशंका थी कि गुप्त जी मालिकों की गैर मौजूदगी में सरकार के खिलाफ लेख लिखेंगे। इसी तरह बालकृष्ण भट्ट व द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी को भी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था।
श्री कौशल ने कहा कि यह संयोग ही माना जाएगा कि लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, डा. राजेन्द्र प्रसाद व जवाहर लाल नेहरू जैसे स्वतंत्रता सेनानी राजनेता होने से पहले पत्रकार थे। उन्होंने कहा कि यूं तो जन जागरण का प्रारंभिक प्रयास भारतेंदुकालीन पत्रकारिता ने किया। लेकिन राष्ट्रीयता के आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य 20वीं सदी की पत्रकारिता ने ही किया था। लेकिन दुख का विषय है कि इतिहासकारों ने इतिहास लिखते समय हिन्दी पत्रकारिता के इस योगदान को ज्यादा महत्व नहीं दिया। लेकिन यह हमारा सौभाग्य ही है कि जिला रेवाड़ी के गांव गुडिय़ानी स्थित गुप्त जी की तालाबंद हवेली के ताले तोड़ कर इसमें रौनक लौटाने में दैनिक ट्रिब्यून के उस सम्पादकीय का महत्वपूर्ण योगदान था, जो उनकी 104वीं पुण्य तिथि पर लिखा गया था। श्री कौशल ने कहा कि गुप्त जी की पावन स्मृति को अखंड ज्योति में बदलने में तत्कालीन मुख्यमंत्री बनारसीदास गुप्त, स्व. मंत्री बलवंत राय, डा. चन्द्र त्रिखा, विजय सहगल, सत्यवीर नाहडिय़ा, श्याम बाबू गुप्त, रघुविन्द्र यादव जैसे महानुभावों का योगदान रहा है।
श्री कौशल ने गुप्त जी की तीखी कलम की चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने अपने लेखों से कहीं अधिक अपनी कविताओं व व्यंग्य लेखों के माध्यम से ऐसे तीखे व्यंग्य बाण चलाएं है, जो गुलामी की जंजीरों को काटने में बहुत ही सटीक रहे। महात्मा गांधी से प्रेरणा लेकर उन्होंने स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने, स्वावलंबी बनने की सीख देशवासियों को अपनी रचनाओं के माध्यम से दी। खेद की बात है कि देश को स्वतंत्रता दिलाने वाले सैकड़ों पत्रकारों ने जन कल्याण के अभियान का ध्वज फहराते रहने के लिए अंग्रेज सरकार के अनेक अत्याचार सहे लेकिन सरकार और इतिहास ने ऐसे स्वतंत्रता सेनानी पत्रकारों की लगभग उपेक्षा ही की है।
उन्होंने कहा कि हमारी मातृ भाषा नहीं रहेगी तो संस्कृति नष्ट हो जाएगी। हमारी भाषाओं को खतरा खड़ा हो गया है, इसके बावजूद हिन्दी को कोई नहीं रोक पाएगा। अंग्रेजी बोलने वालों का गुजारा हिन्दी के बगैर नहीं है। पूरा बाजारवाद हिन्दी पर आधारित है।
मुख्यातिथि श्याम सखा श्याम ने कहा कि साहित्य एवं पत्रकारिता एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों में रचनात्मकता आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। हिन्दी पत्रकारिता सदा से ही राष्ट्रीय सरोकारों से जुड़ी रही है। हिन्दी पत्रकारिता के मसीहा तथा हिन्दी गद्य के कहे जाने वाले गुप्त जी के लेखन में उक्त दोनों पहलू शामिल रहे हैं। उनका यह योगदान दोनों धाराओं में चिरस्मरणीय रहेगा। उन्होंने कहा कि गुप्त जी के साहित्य के संरक्षण के साथ-साथ संवर्धन की भी जरूरत है। विश्वविद्यालयों में पीठ स्थापित होगी। ऐसा उन्हें विश्वास है। उन्होंने कहा कि दिसंबर माह में अकादमी का एक प्रतिनिधिमंडल गुप्त जी के गांव गुडिय़ानी जाएगा और वहां 2-3 दिन रुक कर उनके हवेली रूपी तीर्थ का अवलोकन करेगा। उन्होंने इसे साहित्यिक तीर्थ का दर्जा दिया। हरियाणा साहित्य अकादमी की परियोनाओं पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि युवाओं को साहित्य से जोडऩा, साहित्य की चेतना यात्रा आयोजित करना तथा लोकसाहित्य का संरक्षण एवं संवर्धन करना अकादमी की प्राथमिकता होगी। विशिष्ट अतिथि डा. चन्द्र त्रिखा ने हिन्दी पत्रकारिता में गुप्त जी के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि उनका लेखन राष्ट्रीयता का पर्याय रहा है। कार्यक्रम में पंचकूला से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार डा. एमएल मैत्रेय ने भी अपने विचार रखे। मंच संचालन परिषद के महासचिव सत्यवीर नाहडिय़ा ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ लोक साहित्यकार रोहित यादव की नव प्रकाशित कृतियों अहीरवाल के लोकगीत, वनस्पति जगत के दोहे तथा जीव जंतुओं की अजब-गजब दुनिया व गुप्त जी की स्मृति में रघुविन्द्र यादव द्वारा संपादित साहित्यिक पत्रिका बाबू जी का भारत मित्र का विमोचन किया गया। रघुविन्द्र को साहित्य के क्षेत्र में तथा नरेश चौहान को साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में बाबू बाल मुकुंद गुप्त पुरस्कारों से नवाजा गया।
इस अवसर पर वरिष्ठ गीतकार विपिन सुनेजा के संगीत निर्देशन में गुप्त जी रचनाओं की प्रस्तुति बेहद सराही गई। इस मौके पर परिषद द्वारा हिन्द दिवस पर आयोजित प्रतियोगिताओं के विजेता विद्यार्थियों को भी पुरस्कृत किया गया। मेधावी छात्रा सविता सोनी को विशेष रूप से सम्मानित किया गया। समारोह में कोलकाता से पधारे गुप्त जी के वशंज विमल गुप्त, समारोह स्वागत अध्यक्ष सतेन्द्र प्रसाद गुप्ता, परिषद के अध्यक्ष श्याम सुंदर सिंहल, राकेश गर्ग, डा. प्रवीन खुराना, मनफूल शर्मा, ईश्वर सिंह यादव, मुकुट अग्रवाल, डा. तारा सक्सेना, डा. आदेश सक्सेना, प्रो. रमेशचन्द शर्मा, रमेश सिद्धार्थ, आलोक भांडोरिया, शमशेर कोसलिया, बलबीर मुनि, रमेश कौशिक, श्रीनिवास शर्मा शास्त्री, प्रो. अनिरुद्ध यादव, सुधीर भार्गव आदि विशेष रूप से उपस्थित थे। समारोह में रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, गुडग़ांव, झज्जर, रोहतक तथा हिसार से आए साहित्य प्रेमियों ने हिस्सा लिया।