
समारोह के समापन के तुरंत बाद ही जॉर्ज ने इस घोषणा से सबको चौंका दिया, ‘हमने निर्णय किया है कि भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित की जाए।’
1911 में दिल्ली एक ढहता हुआ पुराना शहर था। चाहरदीवारी से घिरे शहर के बाहर केवल गांव और कुतुब-निजामुद्दीन की दरगाह के पास कुछ बस्तियां थीं।
एडवर्ड लुटियन और हरबर्ट बेकर की देखरेख में 1911 से 1931 के मध्य नई राजधानी ने आकार लिया। लुटियंस और बेकर ने इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन सहित दिल्ली को आधुनिक रूप दिया।
दिल्ली कुल आठ शहरों को मिलाकर बनी है। लेकिन दिल्ली का इतिहास 3000 साल पुराना है। माना जाता है कि पांडवों ने इंद्रप्रस्थ का किला यमुना किनारे बनाया था, लगभग उसी जगह जहां आज मुगल जमाने में बना पुराना किला है।
हर शासक ने दिल्ली को राजधानी के तौर पर अलग पहचान दी। कई बार इस शहर पर हमले भी हुए। शासन के बदलने के साथ-साथ, हर सुल्तान ने इलाके के एक हिस्से पर अपना किला बनाया।
1899 में शुरू हो गई थीं अदालतें
दिल्ली को राजधानी बने सौ साल भले ही आज पूरे हो गए हों, लेकिन यहां ब्रिटिश शासनकाल (वर्ष 1899) से ही आठ अदालतें न्याय मुहैया करा रही थीं। शुरुआत में दिल्ली की ये जिला अदालतें श्रीमती फोर्सटर के घर पर लगती थीं।
1899 में एच अब्दुल रहमान अताउल रहमान बिल्डिंग में कुछ और कमरे किराए पर लिए गए। 1949 में कश्मीरी गेट स्थित पुरानी इमारत को असुरक्षित घोषित किए जाने के बाद 1953 में 22 अधीनस्थ दीवानी अदालतों को 1 स्कीनर्स हाउस स्थित दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कालेज की इमारत और कश्मीरी गेट में स्थानांतरित कर दिया गया।
यह अदालतें 31 मार्च 1958 तक इन्हीं इमारतों में चलती रहीं। 1926 में दिल्ली के अंदर दो प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट तथा एक द्वितीय श्रेणी अवैतनिक मजिस्ट्रेट कार्यरत थे।
1918 में मिली थी पहले एयरपोर्ट की सौगात
दिल्ली को पहले एयरपोर्ट की सौगात 1918 में मिली थी। इस एयरपोर्ट का नाम विक्ट्री एण्ड गवर्नर जनरल आफ इंडिया लार्ड विलिंगटन के नाम पर विलिंगटन एयरपोर्ट रखा गया था। यह देश का दूसरा एवं दिल्ली का पहला एयरपोर्ट था।
विलिंगटन एयरपोर्ट पर 30 नवंबर 1918 को पहली एयरमेल फ्लाइट लैंड हुई और 1927 में इस एयरपोर्ट से विमानों का व्यवसायिक परिचालन शुरू हो गया, लेकिन इस एयरपोर्ट के आधारभूत ढांचे को दुरुस्त करने में दो वर्ष लग गए।
सही मायने में 1930 में इस एयरपोर्ट से विधिवत रूप से व्यवसायिक विमानों का परिचालन शुरू हो सका।
राजधानी से 47 साल पुराना है पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन
राजधानी के रूप में दिल्ली के बसने से करीब 47 वर्ष पूर्व ही पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन को मूर्त रूप दिया जा चुका था। करीब पचास हजार लोगों की आवाजाही के लिए इस रेलवे स्टेशन का निर्माण किया था। इसके करीब 34 वर्ष बाद 1898 में प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के याद में हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन की नींव पड़ी।
इसके दो वर्ष बाद नई दिल्ली स्टेशन की वर्तमान पुरानी बिल्डिंग का निर्माण शुरू हुआ जो 1903 में पूरा हुआ। हालांकि दिल्ली और मथुरा के बीच चलने वाली आठ रेलगाडिय़ां 1884 से ही नई दिल्ली स्टेशन इलाके से पास होती थीं।
बहुत पुराना है शिक्षा से नाता
शिक्षा के क्षेत्र में दिल्ली में जो 100 सालों में घटा उसकी शुरुआत ही बेहद रोचक थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी बनने के पहले ही कॉलेज अस्तित्व में आ चुके थे। दिल्ली विश्वविद्यालय की शुरुआत 1922 में ओल्ड सेक्रेटेरिएट से हुई। उसके साथ जुड़े थे तीन कॉलेज-सेंट स्टीफंस, हिन्दू कॉलेज और रामजस कॉलेज।
तीनों ही कॉलेज विश्वविद्यालय के शुरू होने से पहले से दिल्ली में शिक्षण कार्य में जुटे थे। सेंट स्टीफंस कॉलेज की शुरुआत 1881 और हिन्दू कॉलेज 1899 में अस्तित्व में आया। जबकि, रामजस कॉलेज की शुरुआत डीयू से चंद वर्ष पहले 1917 में शुरू हुई।
1948 में बने सरकारी स्कूल
100 साल पहले दिल्ली में स्कूली शिक्षा की बात करें तो पाठशाला तक सीमित ज्ञान को 1948 में आकर स्कूलों का रूप मिला। 1948 में सरकारी स्कूल अस्तित्व में आए और 1958 में नगर निगम के गठन के साथ ही प्राथमिक शिक्षा की जिम्मेदारी इसे दी गई।
स्कूली शिक्षा को विस्तार मिला दिल्ली सरकार की ओर से शुरू किए गए माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के जरिये। सरकारी शिक्षा व्यवस्था के विस्तार के साथ-साथ निजी संस्थाओं, ट्रस्टों ने भी इस क्षेत्र में कदम बढ़ाए और प्राइवेट स्कूलों की शुरुआत भी सरकारी स्कूली व्यवस्था के साथ हो चली।
आज राजधानी में 2000 से ज्यादा मान्यता प्राप्त निजी स्कूल हैं और गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों की संख्या इससे कहीं ज्यादा पहुंच गई है। हर गली-मोहल्ले में दर्जनों स्कूल शिक्षण कार्य में जुटे हैं।
सरकारी स्कूलों पर नजर डालें तो दिल्ली सरकार के तहत 950 स्कूल आते हैं जिनमें 15 लाख बच्चे को 40 हजार शिक्षक पढ़ा रहे हैं। इनमें ऐसे प्रतिभा विकास विद्यालय भी हैं जिन्हें निजी स्कूलों से टक्कर लेने के लिए और मेधावी छात्रों को बेहतर शिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार ने शुरू किया है।
इसी तरह, नगर निगम के स्कूलों की संख्या 1729 पहुंच गई है, जिसमें 10 लाख बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं और इनकी जिम्मेदारी 21 हजार शिक्षकों के कंधों पर है।
... और इनके सिर बंधा सेहरा
पहला मीडिया केंद्र आकाशवाणी
दिल्ली में पहला रेडियो प्रसारण एक जनवरी १९३६ में अलीपुर रोड जो आज श्यामनाथ मार्ग के नाम से जाना जाता है, उसे यहां के एक किराये के बंगले से शुरू किया गया था।
पांच कमरे के इस बंगले से रोज सुबह छह बजे से ११ बजे तक कोरस और न्यूज प्रसारित किए जाते थे। वर्ष 1948 में पार्लियामेंट स्थित आकाशवाणी केंद्र में इसे स्थानांतरित किया गया।
उस वक्त यहां पार्लियामेंट, रेडक्रास और आकाशवाणी भवन की तीन ही इमारतें थीं। एक नवम्बर १९५९ में इसी में दिल्ली का प्रथम दूरदर्शन केंद्र भी बना।
कोरोनेशन पार्क
बुरारी से थोड़ा आगे और जीटी रोड से थोड़ा पहले स्थित यह कोरोनेशन पार्क दिल्ली का पहला पार्क कहा जा सकता है। यहीं पर १२ दिसम्बर १९११ में तत्कालीन वायसराय किंग जॉर्ज पंचम ने दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा की थी।
पार्क के बीचों बीच १७० स्क्वायर फीट का एक चबूतरा है, जिस पर पहुंचने के लिए ३१ सीढिय़ां चढऩी होती हैं। इस पर जार्ज पंचम की साठ फुट की मूर्ति लगी है।
अंसल प्लाजा
वर्ष १९९९ में बना यह अंसल प्लाजा मॉल पॉश मार्केट साउथ एक्स के काफी करीब है। यहां तकरीबन सभी बड़े ब्रांडों के शो रूम मौजूद हैं। बेसमेंट पार्किंग की सुविधा वाले इस पहले मॉल में अच्छे रेस्त्रां, पब सहित एक एम्फी थिएटर भी है, जहां छोटे-बड़े कई कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। यहां आज आधा दर्जन से अधिक मॉल बन चुके हैं।
रीगल थियेटर
कनॉट प्लेस में जो बिल्डिंग सबसे पहले बनी वह थी रीगल थियेटर की। इसका स्वरूप रंगमंच और सिनेमा को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। यह वो दौर था जब यहां रंगमंच का लुत्फ उठाने के लिए बड़े-बड़े नेता व रजवाड़ों के लोग शाही बग्घियों में आते थे। काफी समय के बाद यहां नया शो और मैटिनी शो में फिल्में भी दिखाई जाने लगीं।
यह वह समय था जब नया शो शुरू होने से पहले हवन किए जाते थे। इसके बाद १९४० में कनॉट प्लेस में प्लाजा सिनेमा घर खुला, जिसके मालिक जाने-माने अभिनेता व निर्देशक सोहराब मोदी थे।
वायसराय हाउस
वायसराय हाउस, यानि आज का राष्ट्रपति भवन। रायसीना हील्स पर इसे बनाने के लिए २० हजार मजदूर लगाए गए थे। बारह एकड़ में फैली इस इमारत में ३४० कमरे, २२७खंभे, ३३ आंगन, ३७ फव्वारे बने जिसे पूरा करने में १७ साल का वक्त लगा।
इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का श्रेय एडविन लुटियन व हार्बेट बेकर को जाता है। इसके स्थापत्य में भारतीय वास्तुशिल्प को भी ध्यान रखकर बनाया गया।
एंग्लो एरेबिक स्कूल
दिल्ली के तीन सौ साल पुराने इस स्कूल की स्थापना १६९६ में की गई थी। इसकी स्थापना मदरसा जगुद्दीन खान ने की थी। इन्होंने दिल्ली कॉलेज, जिसे आज जाकिर हुसैन कॉलेज के नाम से जाना जाता है की नीवं रखी थी।
दिल्ली का सबसे पुराने अस्पतालों में गिनी जाने वाली यह इमारत कभी ब्रिटिश ऑफिसर का घर हुआ करती थी। ब्रिटिश ऑफिसर फ्रेजर भारतीय संस्कृति और यहां के लोगों को पसंद करते थे, जिस वजह से उसने अपना घर ब्रिटिश समाज से दूर इस स्थान पर बनवाया था।
वर्ष १८३५ में फ्रेजोन का कत्ल हो गया और इस इमारत पर ग्वालियर के महाराज दौलत राव सिंधिया के साले हिन्दू राव ने अधिकार कर लिया। तब से यह इसी नाम से प्रचलित हुआ।
ब्रिटिश राज के दौरान यह फिर अंग्रेजों के कब्जे में आया और छावनी के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। बाद में बीसवीं सदी के शुरुआती समय में इसे अस्पताल के रूप में प्रयोग किया गया जो अब तक दिल्ली के प्रमुख अस्पतालों में गिना जाता है।
लग्जरी होटल इंपीरियल
लुटियन द्वारा नई दिल्ली के निर्माण के समय ही इस होटल की नींव रखी गई थी। यही वह ऐतिहासिक होटल है, जहां देश के बटवारे से पहले जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी, मो. अली जिन्ना और लॉर्ड माउंटबेटन ने मीटिंग की थी और देश के बटवारे का निर्णय लिया गया था।
यमुना पर बना पहला ब्रिज
पुरानी राजधानी रही कलकत्ता को दिल्ली से जोडऩे के लिए रेलवे का विस्तार किया गया। इसके तहत इस पुल का निर्माण मील का पत्थर साबित हुआ। यमुना के ऊपर बनाए गए इस ब्रिज को १८६६ मे बनाया गया था, जिसकी कुल लागत १६,१६,३३५ पौंड थी।इसकी लम्बाई २६४० फीट थी । बाद में इसे दो स्टोरी का बनाया गया जो यमुना के दोनों तरफ के लोगों को एक दूसरे से जोड़ती थी।
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