प्रस्तुति-- किशोर प्रियदर्शी, धीरज पांडेय
श्रब्य और/अथवा विडियो संकेतों को एक स्थान से सभी दिशाओं में, या किसी एक दिशा में फैलाना प्रसारण (Broadcasting) कहलाता है। दूरस्थ स्थानों पर इन संकेतों को उपयुक्त विधि से ग्रहण किया जाता है एवं आवश्यक परिवर्तनों (प्रवर्धन, डीमोडुलेशन आदि) के बाद कोई श्रब्य या विडियो आदि प्राप्त होता है।
पहले महायुद्ध से पूर्व बेतार केवल दूर-दूर तक संकेत प्रसारित करने का एक साधन मात्र था। उस समय बेतार की कल्पना मनोरंजनएवं लोकशिक्षा के माध्यम के रूप में नहीं की गई थी। यह अन्य वैज्ञानिक आविष्कारों - रेल, वायुयान, जहाज आदि, की भाँति भौगोलिक अंतर को मिटाने की दौड़ में एक महत्वपूर्ण कदम था।
प्रसारण (ब्रॉडकाÏस्टग) का विकास उस समय शूरू हुआ, जब बेतार के सिद्धांत को लोकरंजन के लिये प्रयुक्त किया गया। 1914 से पहले भी शौकिया तौर पर कुछ साहसिक व्यक्ति भाषण एवं संगीत को कुछ दूर तक प्रसारित करने में सफल हो चुके थे। श्रव्यप्रसारण की वास्तविक प्रगति युद्ध के दौरान हुई। युद्धकाल में ही "थर्मियोनिक वाल्ब"का अविष्कार हुआ। 1917 में कैन्टेन डोनिसथोर्प और उनकी पत्नी ने ब्रिटेन के वायरलेस ट्रेनिंग कैंपों के लिये ग्रामोफोन रिकाड़ों का एक साप्ताहिक कार्यक्रम प्रसारित किया, ताकि प्रशिक्षण का नीरस कार्यक्रम रोचक बन सके।
1920 में अमरीका के शौकिया प्रयोगकर्ताओं ने भी छोटे-मोटे संगीतकार्यक्रम प्रस्तुत करना आरंभ कर दिया। प्रसिद्ध एन. डी. के. ए. केंद्र का पहला कार्यक्रम, जिसे यूरोप के श्रोताओं ने सुना, 1921 में प्रसारित किया गया।
ब्रिटेन में भी प्रसारकेंद्र स्थापित करने की माँग हुई; फलस्वरूप 1922 में मारकोनी कंपनी को आध घंटे का साप्ताहिक कार्यक्रम प्रसारित करने की अनुज्ञा मिल गई। शीघ्र ही मारकोनी कंपनी ने एक और स्टेशन संचालित किया जो बाद में लंदन केंद्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
अमरीका में जनसाधारण ने इस नए अधिकार में असाधारण रूप से रुचि दिखाई। उन्होंने अनुभव किया कि यह आविष्कार एक सस्ता और अद्भुत मनोरंजन है और साथ ही साथ घर बैठे शिक्षा प्राप्त करने का उत्तम साधन भी। रेडियो बनानेवालों, इश्तहारवाजों और अखबारवालो ने सोत्साह इसे विकसित करने का प्रयत्न किया। 1924 में अमरीका में 1105 "ट्रांसमिटिंग स्टेशन"काम कर रहे थे। 1926 में सभी रेडियो निर्माताओं ने इकट्ठे होकर "नेशनल ब्राडकाÏस्टग कंपनी"बनाने का निश्चय किया।
यूरोप में प्रसारण का विकास प्रथम महायुद्ध के बाद वेग से होने लगा। युद्ध से क्लांत और टूटी हुई जनता के लिये प्रसारण प्रेरणा एवं मनोरंजन का साधन बना। यूरोप के उन देशों में रेडियो अधिक लोकप्रिय हुआ, जिनकी जनता सुदूर विदेशों में जाकर लड़ी थी, जैसे जर्मनीऔर ब्रिटेनमें। फ्रांसऔर इटलीमें तो कालांतर तक रेडियो एक खेलतमाशे से अधिक कुछ न बन सका।
युद्ध ने राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीयता दोनों भावनाओं के विकास को प्रोत्साहन दिया। अपने देश के प्रति आसक्ति बढ़ी तो अन्य देशों के प्रति उत्सुकता भी। इन दोनों वृत्तियों ने प्रसारण के विकास में सहायता दी। युद्ध के बाद गरीबी, बेरोजगारी, दुख और दीनता ने लोगों के स्वभाव में तेजी से क्रांति पैदा कर दी। स्कैंडिनेवियाई देशों - स्वीडन, नावें, डेन्मार्कहृ की जनता में भी रेडियो लोकप्रिय हुआ। मध्य यूरोप और पूर्वी यूरोप से होते हुए यह प्रभाव बाल्कन प्रदेश में पहुँचा और इसी तरह दक्षिणी अमरीका और सुदूर मेक्सिको में। वहाँ रेडियों का प्रयोग सैनिक शिक्षा के लिये किया गया। रूस ने क्रांति और संघर्ष के बीच प्रसारण का सत्कार किया। वहाँ 1924 में पहला प्रसारण लाइसेंस दिया गया। रूस के जन नेताओं ने इसके क्रांतिकारी शिक्षासाधनों के मूल्य और प्रभावसंपन्नता को पहचाना।
प्रसारण की व्यवस्था विभिन्न देशों की परंपरा एवं शासनपद्धति के अनुरूप भिन्न भिन्न प्रकार से हुई है। ब्रिटेन ने निगम प्रणाली को अपनाया, तो जर्मनी ने रेडियो को शासन का एक अंग, प्रचारयंत्र बनाना हितकर समझा। रूस में भी प्रसारण को प्रचार का शक्तिशाली माध्यम बनाया गया। अमरीका में आर्थिक क्षेत्र की भाँति प्रसारण को भी मुक्त स्पद्र्धा का अखाड़ा बनने दिया गया। भारत में प्रसारण का भी मुक्त स्पद्र्धा का अखाड़ा बनने दिया गया। भारत में प्रसाण शासन का एक सूत्र है।
उस समय भारत में कुल 1,000 रेडियो लाइसेंस थे। 19९९ के अंत तक यह संख्या बढ़कर 6152 तक हो गई। 1932 के अंत में यह 8557 तक पहुँच गई। अप्रैल 1939 तक कुल संख्या 74,000 तक हो गई। सन् 1936 में दिल्ली, 1937 में पेशावरऔर लाहौर, 1938 में लखनऊऔर मद्रास, 1939 में ढाकाऔर त्रिचनापल्लीआदि नए केंद्र खुल गए। मार्च 1930 में इंडियन ब्राकस्टिग कंपनी दीवालिया हो गई थी, इसलिये प्रसारण का अधिकार सरकार ने अपने हाथ में ले लिया; और आई. बी. सी. का नाम इंडिया ब्राडकटिंग सर्विस रख दिया गया। 1936 में इस संख्या का नाम हो गया - 'आल इंडिया रेडियो'जो कालांतर में आकाशवाणीके नाम से प्रसिद्ध हुआ।
भारत के स्वतंत्र होते ही राष्ट्रीय जीवन के अन्य पहलुओं के विकास के साथ रेडियो का भी महत्वपूर्ण विकास हुआ। पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन सांस्कृतिक क्षेत्रों के अनुरूप नए नए प्रसारण केंद्रों की स्थापना हुई, ताकि प्रत्येक प्रदेश अपने अपने वैविध्यपूर्णा जीवन के सौंदर्य को प्रसारण द्वारा अभिव्यक्त कर सके, जिससे प्रत्येक प्रदेश की जनता को उन्नत बनाने के लिये उसके जीवन के नित्यप्रति के उपादनों की सहायता ली जा सके।
इतिहास
हैन्राइख रूडोल्फ हर्ट्ज ने विद्युच्चुंबकीय शक्ति की कल्पना को वैज्ञानिक आधार देकर रेडियो और बेतार के मूलभूत सिद्धांत की खोज करने की दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम उठाया। (1887 ई.) हर्टज से पहले भी ब्रिटिश वैज्ञानिक मैक्सवेलऔर कदाचित् इससे पहले रूसी वैज्ञानिक पाथोफ और भारतीय वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसुने इस क्षेत्र में मौलिक आविष्कार किए थे। किंतु हर्ट्ज ही पहला वैज्ञानिकथा, जो यह सिद्ध करने में सफल हो गया कि विद्यच्चुंबकीय तरंगेंविस्तृत स्थान में अक्षुण्ण और क्रमिक गति कर सकती हैं। उनका व्यवहार प्राय: वैसा ही होता है जैसा उष्णता (heat) अथवा प्रकाश की तरंगों (वेब) का। इसी के आधार पर सन् 1886 में मारकोनी ने विद्युच्चुंबकीय तरंगों द्वारा एक संकेत (सिगनल) को दो मील की दूरी तक भेजने में सफलता प्राप्त की।पहले महायुद्ध से पूर्व बेतार केवल दूर-दूर तक संकेत प्रसारित करने का एक साधन मात्र था। उस समय बेतार की कल्पना मनोरंजनएवं लोकशिक्षा के माध्यम के रूप में नहीं की गई थी। यह अन्य वैज्ञानिक आविष्कारों - रेल, वायुयान, जहाज आदि, की भाँति भौगोलिक अंतर को मिटाने की दौड़ में एक महत्वपूर्ण कदम था।
प्रसारण (ब्रॉडकाÏस्टग) का विकास उस समय शूरू हुआ, जब बेतार के सिद्धांत को लोकरंजन के लिये प्रयुक्त किया गया। 1914 से पहले भी शौकिया तौर पर कुछ साहसिक व्यक्ति भाषण एवं संगीत को कुछ दूर तक प्रसारित करने में सफल हो चुके थे। श्रव्यप्रसारण की वास्तविक प्रगति युद्ध के दौरान हुई। युद्धकाल में ही "थर्मियोनिक वाल्ब"का अविष्कार हुआ। 1917 में कैन्टेन डोनिसथोर्प और उनकी पत्नी ने ब्रिटेन के वायरलेस ट्रेनिंग कैंपों के लिये ग्रामोफोन रिकाड़ों का एक साप्ताहिक कार्यक्रम प्रसारित किया, ताकि प्रशिक्षण का नीरस कार्यक्रम रोचक बन सके।
1920 में अमरीका के शौकिया प्रयोगकर्ताओं ने भी छोटे-मोटे संगीतकार्यक्रम प्रस्तुत करना आरंभ कर दिया। प्रसिद्ध एन. डी. के. ए. केंद्र का पहला कार्यक्रम, जिसे यूरोप के श्रोताओं ने सुना, 1921 में प्रसारित किया गया।
ब्रिटेन में भी प्रसारकेंद्र स्थापित करने की माँग हुई; फलस्वरूप 1922 में मारकोनी कंपनी को आध घंटे का साप्ताहिक कार्यक्रम प्रसारित करने की अनुज्ञा मिल गई। शीघ्र ही मारकोनी कंपनी ने एक और स्टेशन संचालित किया जो बाद में लंदन केंद्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
अमरीका में जनसाधारण ने इस नए अधिकार में असाधारण रूप से रुचि दिखाई। उन्होंने अनुभव किया कि यह आविष्कार एक सस्ता और अद्भुत मनोरंजन है और साथ ही साथ घर बैठे शिक्षा प्राप्त करने का उत्तम साधन भी। रेडियो बनानेवालों, इश्तहारवाजों और अखबारवालो ने सोत्साह इसे विकसित करने का प्रयत्न किया। 1924 में अमरीका में 1105 "ट्रांसमिटिंग स्टेशन"काम कर रहे थे। 1926 में सभी रेडियो निर्माताओं ने इकट्ठे होकर "नेशनल ब्राडकाÏस्टग कंपनी"बनाने का निश्चय किया।
यूरोप में प्रसारण का विकास प्रथम महायुद्ध के बाद वेग से होने लगा। युद्ध से क्लांत और टूटी हुई जनता के लिये प्रसारण प्रेरणा एवं मनोरंजन का साधन बना। यूरोप के उन देशों में रेडियो अधिक लोकप्रिय हुआ, जिनकी जनता सुदूर विदेशों में जाकर लड़ी थी, जैसे जर्मनीऔर ब्रिटेनमें। फ्रांसऔर इटलीमें तो कालांतर तक रेडियो एक खेलतमाशे से अधिक कुछ न बन सका।
युद्ध ने राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीयता दोनों भावनाओं के विकास को प्रोत्साहन दिया। अपने देश के प्रति आसक्ति बढ़ी तो अन्य देशों के प्रति उत्सुकता भी। इन दोनों वृत्तियों ने प्रसारण के विकास में सहायता दी। युद्ध के बाद गरीबी, बेरोजगारी, दुख और दीनता ने लोगों के स्वभाव में तेजी से क्रांति पैदा कर दी। स्कैंडिनेवियाई देशों - स्वीडन, नावें, डेन्मार्कहृ की जनता में भी रेडियो लोकप्रिय हुआ। मध्य यूरोप और पूर्वी यूरोप से होते हुए यह प्रभाव बाल्कन प्रदेश में पहुँचा और इसी तरह दक्षिणी अमरीका और सुदूर मेक्सिको में। वहाँ रेडियों का प्रयोग सैनिक शिक्षा के लिये किया गया। रूस ने क्रांति और संघर्ष के बीच प्रसारण का सत्कार किया। वहाँ 1924 में पहला प्रसारण लाइसेंस दिया गया। रूस के जन नेताओं ने इसके क्रांतिकारी शिक्षासाधनों के मूल्य और प्रभावसंपन्नता को पहचाना।
प्रसारण की व्यवस्था विभिन्न देशों की परंपरा एवं शासनपद्धति के अनुरूप भिन्न भिन्न प्रकार से हुई है। ब्रिटेन ने निगम प्रणाली को अपनाया, तो जर्मनी ने रेडियो को शासन का एक अंग, प्रचारयंत्र बनाना हितकर समझा। रूस में भी प्रसारण को प्रचार का शक्तिशाली माध्यम बनाया गया। अमरीका में आर्थिक क्षेत्र की भाँति प्रसारण को भी मुक्त स्पद्र्धा का अखाड़ा बनने दिया गया। भारत में प्रसारण का भी मुक्त स्पद्र्धा का अखाड़ा बनने दिया गया। भारत में प्रसाण शासन का एक सूत्र है।
भारत में रेडियो प्रसारण
भारतमें रेडियो प्रसारण विधिवत् 23 जुलाई 1927 से शुरू हुआ, जब लार्ड इरविन ने इंडियन ब्राडकास्टिंग कंपनी के बंबई केंद्र का उद्घाटन किया। इससे पहले बहुत सी शौकिया रेडियो एसोसियेशनों ने भारत के विभिन्न स्थानों पर बहुत कम शक्ति वाले ट्रांसमिटर लगाकर प्रसारण के प्रयोग किए थे। 16 मई 1928 को मद्रास में पहला रेडियो क्लब खोला गया और 31 जुलाई से कार्यक्रम प्रसारित होने शुरू हो गए थे। इसके बाद 26 अगस्त को कलकत्ता केंद्र भी खुल गया।उस समय भारत में कुल 1,000 रेडियो लाइसेंस थे। 19९९ के अंत तक यह संख्या बढ़कर 6152 तक हो गई। 1932 के अंत में यह 8557 तक पहुँच गई। अप्रैल 1939 तक कुल संख्या 74,000 तक हो गई। सन् 1936 में दिल्ली, 1937 में पेशावरऔर लाहौर, 1938 में लखनऊऔर मद्रास, 1939 में ढाकाऔर त्रिचनापल्लीआदि नए केंद्र खुल गए। मार्च 1930 में इंडियन ब्राकस्टिग कंपनी दीवालिया हो गई थी, इसलिये प्रसारण का अधिकार सरकार ने अपने हाथ में ले लिया; और आई. बी. सी. का नाम इंडिया ब्राडकटिंग सर्विस रख दिया गया। 1936 में इस संख्या का नाम हो गया - 'आल इंडिया रेडियो'जो कालांतर में आकाशवाणीके नाम से प्रसिद्ध हुआ।
भारत के स्वतंत्र होते ही राष्ट्रीय जीवन के अन्य पहलुओं के विकास के साथ रेडियो का भी महत्वपूर्ण विकास हुआ। पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन सांस्कृतिक क्षेत्रों के अनुरूप नए नए प्रसारण केंद्रों की स्थापना हुई, ताकि प्रत्येक प्रदेश अपने अपने वैविध्यपूर्णा जीवन के सौंदर्य को प्रसारण द्वारा अभिव्यक्त कर सके, जिससे प्रत्येक प्रदेश की जनता को उन्नत बनाने के लिये उसके जीवन के नित्यप्रति के उपादनों की सहायता ली जा सके।
बाहरी कड़ियाँ
- Radio Locator, for American radio station with format, power, and coverage information.
- Arbitron Offers studies on American radio listening habits and basic station information.
- Answers to several questions about radio and television
- Webcaster Portal Promotions, news and listing
- TVNewsday, Current news about the U.S. TV broadcasting industry
- Waveguide Broadcasting News
- Broadcasting Timeline
- Stories about the inventions of Radio and television
- Middle East Broadcast News— ArabianBusiness.com
- C21 Media - daily news about TV broadcasting and production
- Academy of Broadcasting - Radio Jockey Training "Academy of Broadcasting"
- Jim Hawkins' Radio and Broadcast Technology Page - History of broadcast transmitter technology
- Smith Broadcasting - Broadcasters Directory
- Hindi Radio - Listen to Radio Broadcast from Internet.